झालावाड़: कड़ाके की ठंड में कांटों और पत्थरों के बीच मिला नवजात, इंसानियत ने बचाई नन्ही जान
झालावाड़ शहर के भोई मोहल्ले में गुरुवार रात उस समय इंसानियत को झकझोर देने वाली घटना सामने आई, जब करीब 7 डिग्री सेल्सियस की कड़ाके की सर्दी में एक नवजात शिशु को कांटों और पत्थरों के बीच लावारिस हालत में पड़ा पाया गया। ठंडी हवाओं, अंधेरे और सुनसान माहौल के बीच मिली इस मासूम की हालत देखकर हर किसी का दिल पसीज गया। समय रहते लोगों की नजर पड़ने से नवजात की जान बच सकी।
स्थानीय लोगों के अनुसार, गुरुवार रात भोई मोहल्ले से गुजर रहे कुछ लोगों को झाड़ियों के पास से बच्चे के रोने की धीमी आवाज सुनाई दी। जब उन्होंने पास जाकर देखा तो कांटों और पत्थरों के बीच कपड़े में लिपटा एक नवजात शिशु पड़ा हुआ था। ठंड की वजह से बच्चे का शरीर ठिठुर रहा था और उसकी हालत बेहद नाजुक नजर आ रही थी। यह दृश्य देखकर वहां मौजूद लोग स्तब्ध रह गए।
सूचना मिलते ही स्थानीय लोगों ने बिना देर किए पुलिस और एंबुलेंस को जानकारी दी। मौके पर पहुंची पुलिस की मदद से नवजात को तुरंत झालावाड़ के जिला अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों की टीम ने उसका प्राथमिक उपचार शुरू किया। अस्पताल सूत्रों के अनुसार, नवजात को ठंड से बचाने के लिए वार्मर में रखा गया है और फिलहाल उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है। डॉक्टरों का कहना है कि समय पर इलाज न मिलता तो बच्चे की जान को गंभीर खतरा हो सकता था।
इस घटना ने एक बार फिर समाज की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस उम्र में एक नवजात को मां की गोद, गर्माहट और सुरक्षा की जरूरत होती है, उसी उम्र में उसे निर्दयता से मौत के मुंह में छोड़ दिया गया। 7 डिग्री तापमान, खुले आसमान के नीचे कांटों और पत्थरों के बीच पड़ा यह मासूम, मानो इंसानी क्रूरता की गवाही दे रहा था।
पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। नवजात को वहां किसने और किन हालात में छोड़ा, इसकी पड़ताल की जा रही है। आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले जा रहे हैं ताकि दोषियों की पहचान की जा सके। पुलिस का कहना है कि नवजात को छोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
वहीं, इस घटना के बाद इलाके में लोगों के बीच गहरी नाराजगी और दुख का माहौल है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर किसी कारणवश बच्चे को पालना संभव नहीं था, तो उसे इस तरह मरने के लिए छोड़ देना अमानवीय है। सरकार द्वारा बनाए गए संरक्षण गृह और अस्पताल ऐसे मामलों के लिए मौजूद हैं, जहां सुरक्षित तरीके से नवजात को सौंपा जा सकता है।
जब क्रूरता अपनी हदें पार कर जाती है, तब इंसानियत ही आखिरी सहारा बनती है। भोई मोहल्ले में लोगों की सतर्कता और संवेदनशीलता ने एक मासूम की जिंदगी बचा ली। अब उम्मीद की जा रही है कि प्रशासन न सिर्फ दोषियों को सजा दिलाएगा, बल्कि ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए भी ठोस कदम उठाएगा।
