Jaipur 500 करोड़ सालाना खर्च, सड़क किनारे लगे रहते कचरे के ढेर
संसाधन बढ़े, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं
शहर के 250 वार्डों में 500 से अधिक हूपर घर से कचरा उठाने के लिए चल रहे हैं, और सड़क किनारे से कचरा उठाने के लिए 200 से अधिक हूपर का उपयोग किया जा रहा है। नाइट स्वीपिंग के लिए नए वाहनों की खरीद हुई है, लेकिन नियमित सफाई में समस्या बनी हुई है। कचरे से बिजली बनाने के लिए वेस्ट टू एनर्जी और सीएंडडी प्लांट के लिए योजनाएं वर्षों से चल रही हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं आया है। 5% हिस्से में गीला और सूखा कचरा अलग करने का काम अब तक नहीं हुआ है, जबकि अन्य शहरों में यह काम प्रभावी ढंग से किया जा रहा है।
इंदौर बनाम जयपुर
जब इंदौर जैसे शहर सफाई के मामले में नंबर एक बनकर खड़े हैं, वहीं जयपुर की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। इंदौर में स्वच्छता का परचम लहरा रहा है, जबकि यहां हम ठहराव की स्थिति में हैं।
इलेक्ट्रॉनिक कचरे की चिंता
जब मैंने ये सब देखा, तो मन में सवाल उठने लगे कि इलेक्ट्रॉनिक कचरे का क्या हाल होगा? यह कचरा मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक है, और इसके निस्तारण की स्थिति भी चिंताजनक है।वैश्विक जागरूकता की कमी
पिछले वर्षों में मैंने 60 से अधिक देशों की यात्रा की है और देखा है कि वहां के लोग, चाहे गरीब से गरीब हों, स्वच्छता के प्रति जागरूक और अनुशासित रहते हैं। लेकिन हम जयपुर में कहां जा रहे हैं? कचरा निस्तारण के मानकों की पालना नहीं हो रही है। सूखे व गीले कचरे का पृथक्करण भी नहीं किया जा रहा है।