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Jaipur शेखावाटी के मिजाज से तय होगा राजस्थान का मुखिया,जानिए क्यों

 
 शेखावाटी के मिजाज से तय होगा राजस्थान का मुखिया,जानिए क्यों 

 जयपुर न्यूज़ डेस्क, के शेखावाटी को जाटलैंड कहा जाता है। सीकर, झुंझुनू और चूरू जिलों में कुल मिलाकर इस क्षेत्र में 25 नवंबर को इलेक्ट्रोनिक रंग चढ़ना शुरू हो गया है। हेरिटेज और हवेलियों के लिए मशहूर शेखावाटी के इलाके की बीच पार्टी और दिग्गजों की जीत-हार और सरकार बनाना-बिगाड़ने का गुण गणित संयोजन का जोर जोर से लगाया गया है। इस जाट बहुल इलाके को कांग्रेस का सबसे मजबूत किला माना जाता है, लेकिन मोदी लहर में शेखावत ने बाजी पलटने में देर भी नहीं की। इस क्षेत्र से ही प्रदेश के मुख्यमंत्रियों का मिज़ाज तय होता है। यहां जिस अस्थिरता और पार्टी का प्रभाव थोड़ा भी मजबूत हुआ तो समझिए प्रदेश में उसी की सरकार बनने जा रही है।

जयपुर से सीकर, झुंझुनू और चूरू तक लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर हर दुकान और दुकान पर लोग अपने अंदाज में नजर डालते आए। किसी को अपने नेता का कार्य पसंद नहीं आया तो किसी कार्य से इतनी खुश नजर आई कि उसे फिर से प्रचार के लिए बना दिया गया है। नामांकन के बीच लोग दीपावली प्रमाण की तैयारी में हैं। सीकर के सीताफल सीट से आने वाले रत्न लाल बागड़ी कहते हैं कि इस बार किसी के लिए भी अवसर नहीं है। बगावत करने वाले सबसे ज्यादा है, ऑर्केस्ट्रा को सीट बचाना मुश्किल हो रही है। जिले की हर सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बागी चेहरे चुनाव के लिए ताल ठोक रहे हैं। झुंझुनू जिले के मंडावा सीट के रहने वाले गौरव शर्मा का कहना है कि चुनाव का असली रंग तो दीपावली के बाद ही पता चलता है। विधायकों से लेकर किसान और आम लोग दीपावली की तैयारी और अपने लक्ष्य में काम करने में अनोखे हैं, लेकिन इस बार का चुनाव होने वाला है। प्रदेश का अगला सीएम कौन होगा? इससे ज्यादा हमें मतलब नहीं है. हमारा अगला अधिकारी कौन होगा? इसमें हमें शामिल करना है। क्योंकि हमारा काम तो अपने विधायक से पढ़ना है। चूरू शहर के प्रमुख विश्लेषक कहते हैं कि इस बार वोट का ट्रेंड बदल रहा है। लोग जातिगत गुणांक के अलावा विचारधारा की बोलचाल और स्वभाव को भी ध्यान में रखते हुए वोट करेंगे।


सालासर बालाजी और खाटूश्याम व रानी सती
चूरू जिले के सालासर बालाजी मंदिर में गणपति के लोग मन्नतें पूरी करने के लिए आते हैं। इसी तरह से सीकर के खाटूश्याम में भी दिल्ली, यूपी, हरियाणा सहित सरस्वती से लोग दर्शन करने के लिए आएं। झुंझुनू का रानी सती मंदिर विश्वनाथ के अग्रवाल समाज की आस्था का केंद्र है।राजस्थान और शेखावत का नाम आते ही भैरों सिंह शेखावत का नाम स्वत: ही जंप पर आ जाता है। शेखावत सीकर जिले के दातारामगढ़ विधानसभा सीट के अंतर्गत आने वाले खाचरियावास गांव के रहने वाले थे। आज़ादी के बाद पहली विधानसभा से ही विधायक बन गये थे। 1977 में पहली बार जनता पार्टी राजस्थान के सीएम बनी। उनके बाद 1990 और 1993 में शेखावत के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। 2002-07 के बीच में भी रहे।

बिजली, पैसा और पॉलिटिक्स की भी चाशनी
शेखावाटी में पावर, पैसा और पॉलिटिक्स की भी चाशनी दिखती है। ब्यूरोसीक्रेसी से लेकर सत्ता के केंद्र में शेखावाटी के लोग रहते हैं। यहां लोगों के पास पास की कोई कमी नहीं है। इलाके के लोग बड़ी संख्या में खाड़ी में मजदूर से लेकर बड़े पैमाने पर मजदूर बैठे हुए हैं। मुस्लिम और अन्य समाज के लोग भी इन देशों में पैसे खरीदते हैं। बाहर से बहुत सारा पैसा आने के कारण मूल्यांकन अच्छा है।

शिक्षा का हब भी बन गया
राजस्थान में कोटा के बाद सबसे ज्यादा कोचिंग सेंटर सीकर में हैं। पिछले दिनों एक कोचिंग सेंटर पर नोएडा के इंट्रेस्ट से सीकर और सबसे ज्यादा चर्चा हुई थी। इसे भी राजस्थान की राजनीति से जोड़ा जा रहा है। यह कोचिंग संस्थान अपने यहां पढ़ने वाले छात्रों से साक्षात्कार में मिलने वाले नंबर के कारण भी चर्चा कर रहा है। अब चुनाव में भी चर्चा का केंद्र है. सीकर में स्कूल, काॅलेज़ और कई निजी विश्वविद्यालय भी खुले। इससे दूसरे राज्य के छात्र और शिक्षक भी यहां आ रहे हैं।

जाट और मुस्लिम गठबंधन
राजस्थान और शैले पर शेखावाटी से आने वाला जाट समाज जिस ओर वोट करता है, उसी दल की सरकार बनने की संभावना प्रबल होती है। कांग्रेस ने यहां जाट और मुस्लिम समाज का गठबंधन तैयार किया है। इसके दम पर सत्ता में आने का दावा किया जाता है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जाट सिर्फ कांग्रेस का ही साथ दे रहे हैं। 2013 विधानसभा, 2014 और 2019 के आम चुनाव में शेखावाटी ने फ्रैंक बीजेपी के पक्ष में वोट किया था। 2013 में भाजपा की सरकार बनी थी। जबकि दो बार से आम चुनाव में प्रदेश की सभी पिछड़ा वर्ग भाजपा को मिल रही है। शेखावाटी में सीकर के प्लाजा, चूरू के राजगढ़ और झुंझुनू में हरियाणवी राजनीति का असर भी देखने को मिलता है।

 
सीकर जिलों के आठ मुख्य खंडेला, धोद, सीकर, लक्ष्मणगढ़, नीमकाथाना, दांतारामगढ़, श्रीमाधोपुर और मिशिगन में पिछली बार कांग्रेस ने सातवीं बार कांग्रेस की स्थापना की थी। खंडेला से साकेत महादेव सिंह खंडेला कांग्रेस से तो पिछली बार कांग्रेस के सुधा मील भाजपा से लड़ रहे हैं। लक्ष्मणगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के सामने भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया हैं। डोटासरा की समस्या यह है कि प्रदेश के राष्ट्रपति के अन्य जिले भी यहां हैं। दोनों के लिए असंतोष सबसे बड़ी चुनौती है। कुछ वेबसाइट पर वोटर देख रहे हैं कि स्वीट कौन है? यह महत्वपूर्ण है, जो उनके दुःख सुख में शामिल हो। जो विधायक पांच साल में कभी-कभार चले गए। उनका काम नहीं हुआ। उनकी प्रतिकृति भारी मशीनरी सामने आ रही है।