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Jaipur 18 साल बाद चंद्रग्रहण से शुरू हुए श्राद्ध और सूर्यग्रहण से होंगे खत्म

 
Jaipur 18 साल बाद चंद्रग्रहण से शुरू हुए श्राद्ध और सूर्यग्रहण से होंगे खत्म

जयपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर  श्राद्धपक्ष की शुरुआत चंद्र ग्रहण से हुई थी और इसका समापन सूर्य ग्रहण के साथ होगा। हालांकि यह दोनों ही ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देने वाले है, लेकिन यह विशेष संयोग कई सालों बाद देखने को मिल रहा है। ज्योतिषि चर्चाओं में श्राद्ध पक्ष के बीच आए ग्रहण को खास महत्व दिया जा रहा है। गत 18 सितंबर को प्रतिपदा श्राद्ध पर चंद्र ग्रहण लगा था, जबकि 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या के श्राद्ध पर सूर्य ग्रहण रहेगा।इससे पहले वर्ष 2006 में श्राद्ध पक्ष का आरंभ व समापन चंद्र ग्रहण व सूर्य ग्रहण साथ हुआ था। यानी 18 साल पहले ऐसा संयोग बना है। उस दौरान भी विश्व स्तर पर कई राजनीतिक उठा पटक हुए थे। पितृपक्ष पखवाड़े में दो ग्रहण तो आए हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि यह दोनों ही ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देंगे। दुनिया के अलग-अलग देशों में यह दिखेंगे और इनका प्रभाव भी वहीं देखने को मिलेगा।

बंशीधर ज्योतिष पंचांग के निर्माता ज्योतिषाचार्य दामोदर शर्मा ने बताया कि 2 अक्टूबर को आश्विन अमावस्या है। अमावस्या पर वर्ष का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण लगने वाला है। यह सूर्य ग्रहण कंकण सूर्य ग्रहण होगा, जो कि कन्या राशि और हस्त नक्षत्र में लगने जा रहा है। इस दौरान तीन ग्रहों पर राहु की सीधी दृष्टि रहने वाली है। ग्रह इस दौरान कन्या राशि में बुध, केतु और सूर्य रहेंगे। ग्रहण का यह संयोग 18 साल पहले बना था।पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि ज्योतिषी ग्रंथ बृहत्संहिता में ग्रहण के बारे में भविष्यवाणियां की गई हैं। साल का आखिरी सूर्य ग्रहण एक वलयाकार ग्रहण होगा। यह तब होता है जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा हो, लेकिन इसकी दूरी धरती से दूर हो। धरती से दूर होने के कारण चंद्रमा छोटा दिखता है। इस कारण यह इतना बड़ा नहीं होता कि पूरे सूर्य की किरणों को रोक ले। इस वजह इसके चारों ओर एक रिंग जैसी आकृति दिखाई देती है। सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर की रात्रि 9:13 बजे से मध्य रात्रि 3:17 बजे तक रहेगा। सूर्य ग्रहण की कुल अवधि: 6 घंटे 04 मिनट रहेगी।

सर्व पितर अमावस्या पर ऐसे करें पितरों का तर्पण

सर्व पितर अमावस्या के दिन सबसे पहले दोपहर में हाथ में जल, कुशा आैर काले तिल लेकर दक्षिण की आेर मुख करके पितरों के नाम से स्मरण कर जल को छोड़े। उसक बाद पुरोहितों (ब्रह्मणों) को ससम्मान भोजन करवाए। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के अनुसार दक्षिणा, कपड़े, अनाज, गाय का दान-पुण्य करना चाहिए।

पितरों का श्राद्ध नहीं निकाल सकें तो सर्वपितृ अमावस्या को श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं

भाद्र पद पूर्णिमा से चल रहे श्राद्ध पक्ष में जो लोग पितरों के लिए श्राद्ध नहीं कर पाए, वे बुधवार को सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध व तर्पण कर सकते हैं। इसके साथ जिन लोगों को पितरों का श्राद्ध निकालने की तिथि ज्ञात नहीं हो तो वो भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध मना सकते हैं। पराशर स्मृति में उल्लेख है कि यदि कोई देशांतर में मर जाए और उसकी मृत्यु-तिथि ज्ञात न हो कि तो उसके लिए अमावस्या को मृत्यु-तिथि मानकर उस दिन जल-तर्पण, पिंडदान एवं श्राद्ध करना चाहिए। धार्मिक ग्रंथ लघु-हारीत का कथन है कि यदि किसी भी श्राद्ध में कोई अवरोध हो जाए तो आश्विन की अमावस्या को श्राद्ध कृत्य संपादित कर देना चाहिए। कूर्मपुराण में उल्लेख है कि धार्मिक मान्यता के अनुसार अमावस्या के दिन पितर वायव्य रूप धारण कर अपने पुराने निवास के द्वार तक आते हैं और देखते हैं कि उनके कुल के लोगों द्वारा श्राद्ध किया जाता है या नहीं? ऐसा वे सूर्यास्त तक देखते हैं।