अफीम की खेती में नवाचार: किसान अपना रहे आधुनिक तकनीक, उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाने की उम्मीद
काले सोने के नाम से ख्यात अफीम की फसल में अब किसान पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर नवाचार और आधुनिक तकनीक अपना रहे हैं। बदलते समय और बढ़ती लागत को देखते हुए किसान अफीम की खेती में नई तकनीकों का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे न केवल उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है, बल्कि पानी और संसाधनों की भी बचत हो रही है।
इस वर्ष कई किसानों ने अफीम की फसल में मल्चिंग, ड्रिप सिंचाई और मिनी स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाया है। खेतों में प्लास्टिक मल्चिंग शीट बिछाने से नमी लंबे समय तक बनी रहती है और खरपतवार की समस्या भी काफी हद तक कम हो जाती है। इससे फसल को पोषक तत्व अधिक प्रभावी तरीके से मिलते हैं और पौधों की बढ़वार बेहतर होती है।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली के जरिए पौधों की जड़ों तक नियंत्रित मात्रा में पानी और खाद पहुंचाई जा रही है। इससे पानी की बर्बादी रुक रही है और फसल को जरूरत के अनुसार सिंचाई मिल रही है। वहीं, मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम से खेत में समान रूप से पानी का छिड़काव हो रहा है, जिससे पौधों को बेहतर वातावरण मिल रहा है।
किसानों का कहना है कि इन तकनीकों को अपनाने से लागत में शुरुआती बढ़ोतरी जरूर होती है, लेकिन लंबे समय में यह खर्च वसूल हो जाता है। एक किसान ने बताया कि मल्चिंग और ड्रिप सिस्टम से पानी की खपत में लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक की बचत हो रही है, जबकि पौधों की संख्या और उनकी गुणवत्ता में भी सुधार देखा जा रहा है।
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अफीम जैसी संवेदनशील और नियंत्रित फसल में आधुनिक तकनीकों का उपयोग खेती को अधिक वैज्ञानिक और लाभकारी बना सकता है। इससे न केवल उत्पादन में बढ़ोतरी होगी, बल्कि मौसम की मार से होने वाले नुकसान को भी कम किया जा सकेगा। खासकर बदलते मौसम और जल संकट के दौर में यह तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
