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जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए तैयार हो रही भारत की पहली 'अरावली ग्रीन वॉल', जानिए इसकी खासियत और कैसे करेगी काम ?

जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए तैयार हो रही भारत की पहली 'अरावली ग्रीन वॉल', जानिए इसकी खासियत और कैसे करेगी काम ?
 
जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए तैयार हो रही भारत की पहली 'अरावली ग्रीन वॉल', जानिए इसकी खासियत और कैसे करेगी काम ?

जलवायु परिवर्तन आज एक वैश्विक संकट बन गया है, जिसका असर हर क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। भारत में, खास तौर पर पश्चिमी राज्यों- राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली जैसे इलाकों में गर्मी, सूखा और रेगिस्तानीकरण की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इस गंभीर खतरे से निपटने के लिए भारत सरकार और राज्यों ने मिलकर एक महत्वाकांक्षी परियोजना- 'अरावली ग्रीन वॉल' शुरू की है। इसका उद्देश्य न केवल बढ़ते रेगिस्तानीकरण को रोकना है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से लड़ना भी है।

क्या है अरावली ग्रीन वॉल परियोजना?
अरावली ग्रीन वॉल परियोजना भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य अरावली पर्वत श्रृंखला में हरित पट्टी विकसित करना है। यह पट्टी अरावली की लंबाई के समानांतर करीब 1,400 किलोमीटर और 5 से 10 किलोमीटर चौड़ी होगी, जो गुजरात से दिल्ली तक फैली होगी। इस परियोजना का लक्ष्य वन क्षेत्र को बढ़ाना, पारिस्थितिकी संतुलन बनाना और रेगिस्तान की ओर बढ़ रहे हरियाणा और दिल्ली जैसे क्षेत्रों को हरित क्षेत्र से बचाना है।

जलवायु संकट और बढ़ता मरुस्थलीकरण
राजस्थान का थार रेगिस्तान तेजी से पूर्व की ओर बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, यदि समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की गई तो अगले कुछ दशकों में हरियाणा और दिल्ली का बड़ा हिस्सा भी मरुस्थलीकरण की चपेट में आ सकता है। इससे न केवल कृषि भूमि नष्ट होगी, बल्कि जल उपलब्धता और वायु गुणवत्ता पर भी गंभीर असर पड़ेगा। यह भी देखा गया है कि खनन गतिविधियों और अरावली में वनों की कटाई ने इस प्राकृतिक अवरोध की ताकत को कमजोर कर दिया है, जिसके कारण रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने वाली दीवार लगभग टूट गई है।

कैसे काम करेगी ग्रीन वॉल?
अरावली ग्रीन वॉल के तहत करोड़ों पेड़ लगाए जाएंगे, जिसमें खेजड़ी, बबूल, नीम, शीशम और अर्जुन जैसे पेड़ों की स्थानीय प्रजातियां शामिल होंगी। इससे न केवल हरियाली बढ़ेगी बल्कि स्थानीय जैव विविधता भी संरक्षित रहेगी। इसके अलावा यह परियोजना जल संरक्षण, मिट्टी के कटाव को रोकने और सूक्ष्म जलवायु को बेहतर बनाने में भी मददगार होगी। परियोजना में शामिल राज्य सरकारें, वन विभाग, पर्यावरण कार्यकर्ता, ग्रामीण समुदाय और गैर-सरकारी संगठन मिलकर काम कर रहे हैं। कई इलाकों में सामुदायिक वनरोपण भी किया जा रहा है, ताकि स्थानीय लोग भी इस अभियान से जुड़ सकें।

अर्थव्यवस्था और रोजगार पर भी असर
अरावली ग्रीन वॉल सिर्फ पर्यावरण संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण इलाकों में रोजगार सृजन का भी जरिया बन रही है। वृक्षारोपण, रखरखाव, जैविक खाद उत्पादन, नर्सरी प्रबंधन और जल संरक्षण कार्यों में हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा। यह ग्रामीण विकास के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से लड़ने की दोहरी रणनीति है।

क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना ​​है कि अगर इस परियोजना को सही तरीके से लागू किया गया तो यह आने वाले सालों में 'ग्रीन बैरियर' का काम करेगी, जो न सिर्फ रेगिस्तान के विस्तार को रोकेगी, बल्कि उत्तर भारत की जलवायु को भी संतुलित रखेगी। आईआईटी दिल्ली में पर्यावरण प्रोफेसर डॉ. राकेश गुप्ता कहते हैं, "अरावली ग्रीन वॉल जैसी परियोजनाएं देश के पर्यावरणीय भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसका तापमान, वायु गुणवत्ता और जल स्रोतों पर सकारात्मक असर पड़ेगा।" 

जनभागीदारी ही सफलता की कुंजी होगी
इस परियोजना की सफलता के लिए केवल सरकार के प्रयास ही पर्याप्त नहीं होंगे, बल्कि आम जनता की भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। वृक्षारोपण और संरक्षण में स्थानीय निवासियों को शामिल करके, बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाकर और सामाजिक संगठनों की भागीदारी से यह ग्रीन वॉल एक स्थायी समाधान बन जाएगा।