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कैसे पड़ा 'आमेर किले' का ये नाम ? 3 मिनट के वायरल क्लिप में देखे इस भव्य किले के नाम के पीछे छिपी पौराणिक और ऐतिहासिक रहस्यगाथा

कैसे पड़ा 'आमेर किले' का ये नाम ? 3 मिनट के वायरल क्लिप में देखे इस भव्य किले के नाम के पीछे छिपी पौराणिक और ऐतिहासिक रहस्यगाथा
 
कैसे पड़ा 'आमेर किले' का ये नाम ? 3 मिनट के वायरल क्लिप में देखे इस भव्य किले के नाम के पीछे छिपी पौराणिक और ऐतिहासिक रहस्यगाथा

राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 11 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों में स्थित है आमेर का भव्य किला। यह किला न केवल अपनी स्थापत्य कला, राजसी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके नाम "आमेर" के पीछे भी एक बेहद रोचक और रहस्यमयी कथा छिपी हुई है, जिसे जानकर किसी का भी इतिहास और संस्कृति के प्रति आकर्षण और गहरा हो सकता है।

आमेर किला जिसे आमतौर पर “Amber Fort” कहा जाता है, राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि "आमेर" शब्द केवल एक स्थान या नगर का नाम नहीं, बल्कि इसके पीछे पौराणिक और धार्मिक महत्व भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि आमेर नाम की उत्पत्ति "अम्बिकेश्वर" नामक शिवलिंग से हुई है, जो आज भी किले के समीप एक प्राचीन मंदिर में स्थापित है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार इस स्थान का नाम पहले अम्बेर या अम्बिकेश्वर था, जो बाद में अपभ्रंश होकर आमेर बन गया।

इतिहासकारों के अनुसार, आमेर की स्थापना 967 ईस्वी के आसपास मेना वंश के राजा अलन सिंह चौहान ने की थी। लेकिन इस जगह की असली पहचान तब बनी जब कच्छवाहा वंश के राजा भगवंत दास और उनके पुत्र मान सिंह प्रथम ने यहां राज किया। राजा मान सिंह, जो मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे, उन्होंने आमेर को एक सुरक्षित और शाही राजधानी के रूप में विकसित किया। परंतु आमेर के नाम को लेकर जो कथा प्रसिद्ध है, वह इसे और भी दिलचस्प बना देती है।

लोककथाओं के अनुसार, बहुत समय पहले इस क्षेत्र में एक तपस्वी ऋषि रहा करते थे, जो शिव उपासक थे और उन्हीं के आदेश पर उन्होंने यहां अम्बिकेश्वर महादेव की स्थापना की थी। यह स्थान तब एक तपोभूमि के रूप में जाना जाता था। शिवलिंग की स्थापना के कारण इस स्थान को "अम्बिकेश्वर" कहा गया और यहीं से आमेर नाम की शुरुआत मानी जाती है। कहते हैं कि आमेर की भूमि पर जो भी शासन करता, उसे शिव का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता। इसी वजह से कच्छवाहा राजाओं ने भी इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और शिव मंदिर को राजसी संरक्षण दिया।

कहा जाता है कि आमेर किले के निर्माण के समय भी वास्तुशास्त्र और धार्मिक विधानों का विशेष ध्यान रखा गया था। किले के प्रवेश द्वार, दीवारों पर उकेरे गए देवी-देवताओं के चित्र और यहां तक कि पानी के कुंडों तक में भी धार्मिक संकेत देखे जा सकते हैं। यही नहीं, आज भी आमेर किले के पास स्थित अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर में शिवभक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, खासतौर पर सावन के महीनों में।

वर्तमान में आमेर किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल है और इसे देखने हर साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। किले की भव्यता जितनी दर्शनीय है, उतनी ही गूढ़ और प्रेरणादायक इसकी कहानी भी है। आमेर का यह ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व न केवल राजस्थान की गौरवशाली परंपरा को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे एक स्थान का नामकरण केवल भूगोल से नहीं, बल्कि उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत से भी जुड़ा होता है।

इस प्रकार आमेर किला केवल एक ऐतिहासिक दुर्ग नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवंत विरासत है जो धर्म, इतिहास और शौर्य को एक साथ समेटे हुए है। अगर आप कभी जयपुर जाएं, तो आमेर किले की भव्यता के साथ-साथ वहां स्थित अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर में जरूर जाएं, और महसूस करें उस पौराणिक शक्ति को जिसने इस स्थान को "आमेर" नाम दिया।