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खाटू श्याम मंदिर कैसे आया अस्तित्व में? वीडियो में जानिए महाभारत के वीर बर्बरीक से खाटू बाबा बनने तक का अद्भुत सफर

खाटू श्याम मंदिर कैसे आया अस्तित्व में? वीडियो में जानिए महाभारत के वीर बर्बरीक से खाटू बाबा बनने तक का अद्भुत सफर
 
खाटू श्याम मंदिर कैसे आया अस्तित्व में? वीडियो में जानिए महाभारत के वीर बर्बरीक से खाटू बाबा बनने तक का अद्भुत सफर

राजस्थान का खाटू श्याम मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। भारत के अन्य राज्यों से भी लोग अपनी मनोकामना लेकर यहां आते हैं। खाटू श्याम मंदिर के अस्तित्व में आने के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी है।

कौन हैं बाबा खाटू श्याम
खाटू श्याम दरअसल भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक हैं। उन्हें खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। बर्बरीक में बचपन से ही एक वीर और महान योद्धा के गुण थे और उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करके उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे। इसी वजह से उन्हें तीन बाण धारी भी कहा जाता है।

क्या है मान्यता
इस मंदिर के बारे में एक बहुत ही खास और अनोखी बात प्रचलित है। कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है उसे हर बार बाबा श्याम का एक नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को उनके आकार में भी बदलाव देखने को मिलता है।

बर्बरीक कैसे बने खाटू श्याम
महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी मां अहिल्यावती के सामने इस युद्ध में जाने की इच्छा जताई थी। जब उनकी मां ने इसके लिए अनुमति दे दी तो उन्होंने उनसे पूछा, 'मैं युद्ध में किसका साथ दूं?' इस प्रश्न पर उनकी मां ने सोचा कि कौरवों के पास तो विशाल सेना है, स्वयं भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य, अंगराज कर्ण जैसे महान योद्धा हैं, उनके सामने पांडव अवश्य हार जाएंगे। अत: उन्होंने बर्बरीक से कहा कि 'तुम उसका साथ दो जो हार रहा हो।' बर्बरीक ने मां को वचन दिया कि वह ऐसा ही करेगा और वह युद्ध भूमि के लिए निकल पड़ा। भगवान कृष्ण युद्ध का अंत जानते थे, अत: उन्होंने सोचा कि यदि बर्बरीक कौरवों को हारता देख उनका साथ देने लगा तो पांडवों की हार निश्चित है। तब भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक से उसका सिर दान में मांग लिया। बर्बरीक सोचने लगा कि एक ब्राह्मण मेरा सिर क्यों मांगेगा? यह सोचकर उसने ब्राह्मण के समक्ष अपने वास्तविक रूप के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। भगवान कृष्ण ने उसे अपने विराट रूप में दर्शन दिए। इस पर उसने अपनी तलवार निकाली और अपना सिर श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया। श्री कृष्ण ने झट से उसका सिर अपने हाथ में उठा लिया और उस पर अमृत छिड़क कर उसे अमर कर दिया। उसने श्री कृष्ण से संपूर्ण युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की, तो भगवान ने उसका सिर युद्ध भूमि के पास सबसे ऊंची पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया, जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध देख सकता था।

कैसे हारे का सहारा बने खाटू श्याम
युद्ध समाप्त होने के बाद सभी पांडव जीत का श्रेय लेने लगे। अंत में जब सभी निर्णय के लिए श्री कृष्ण के पास गए तो उन्होंने कहा, "मैं स्वयं व्यस्त था, इसलिए किसी की वीरता नहीं देख पाया। चलो ऐसा करते हैं, सभी बर्बरीक के पास जाते हैं।" वहां पहुंचकर भगवान कृष्ण ने उससे पांडवों की वीरता के बारे में पूछा, तब बर्बरीक के सिर ने उत्तर दिया, "प्रभु, युद्ध में आपका सुदर्शन चक्र नाच रहा था और जगदंबा रक्त पी रही थीं, मैंने इन लोगों को कहीं नहीं देखा।" बर्बरीक का उत्तर सुनकर सभी की आंखें झुक गईं। तब श्री कृष्ण उससे प्रसन्न हुए और उसका नाम श्याम रखा। भगवान कृष्ण ने अपनी कला और शक्तियाँ प्रदान करते हुए कहा, "इस बर्बर धरती पर तुमसे बड़ा दानी न कभी हुआ है और न कभी होगा। अपनी माँ को दिए वचन के अनुसार तुम हारे हुए का सहारा बनोगे। लोग तुम्हारे दरबार में आएंगे और जो भी माँगेंगे, पाएँगे।" इस तरह खाटू श्याम मंदिर अस्तित्व में आया।