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राजस्थान के सबसे पवित्र स्थलों में एक गोविन्द देव जी मंदिर, 3 मिनट के शानदार वीडियो में जाने इसका इतिहास और पौराणिक कथा

राजस्थान के सबसे पवित्र स्थलों में एक गोविन्द देव जी मंदिर, 3 मिनट के शानदार वीडियो में जाने इसका इतिहास और पौराणिक कथा
 
राजस्थान के सबसे पवित्र स्थलों में एक गोविन्द देव जी मंदिर, 3 मिनट के शानदार वीडियो में जाने इसका इतिहास और पौराणिक कथा

जयपुर, जिसे पिंक सिटी कहा जाता है, न केवल अपनी भव्य इमारतों और ऐतिहासिक दुर्गों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां के मंदिर भी गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़े हुए हैं। उन्हीं में से एक है – गोविन्द देव जी मंदिर, जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर केवल जयपुरवासियों की आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि पूरे भारत से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला स्थल है। गोविन्द देव जी मंदिर का इतिहास, स्थापत्य और उससे जुड़ी पौराणिक कथा इसे एक अनूठा धार्मिक स्थल बनाते हैं।


इतिहास की परतों में छिपा गोविन्द देव जी मंदिर
गोविन्द देव जी मंदिर का इतिहास जयपुर रियासत के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय से जुड़ा है। उन्होंने 18वीं शताब्दी में जब जयपुर नगर की स्थापना की, तो इस मंदिर को विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा के लिए बनवाया। गोविन्द देव जी की प्रतिमा को वृंदावन से जयपुर लाया गया था। यह प्रतिमा स्वयं श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप की सात मूल विग्रहों में से एक मानी जाती है, जिन्हें स्वयं व्रजवासी संत श्री रूप गोस्वामी ने स्थापित किया था।

माना जाता है कि गोविन्द देव जी की यह मूर्ति स्वयं श्रीकृष्ण के रूप का हूबहू प्रतिबिंब है और यह मूर्ति वृंदावन से औरंगजेब की आक्रामक नीतियों के समय सुरक्षित रूप से जयपुर लाई गई थी। जय सिंह द्वितीय ने इसे अपने सिटी पैलेस के पास बड़े प्रेम और आदर के साथ स्थापित करवाया ताकि वे प्रतिदिन भगवान के दर्शन कर सकें। यह मंदिर आज भी जयपुर के सिटी पैलेस परिसर के भीतर ही स्थित है।

पौराणिक कथा: गोविन्द देव जी की दिव्य उत्पत्ति
गोविन्द देव जी से जुड़ी कथा बेहद प्रेरणादायक और श्रद्धा से भरी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद, जब कलियुग शुरू हुआ, तो भक्तों के लिए उनके वास्तविक स्वरूप के दर्शन दुर्लभ हो गए। इस समय संत श्री रूप गोस्वामी, जो चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख शिष्यों में से थे, वृंदावन में श्रीकृष्ण की भक्ति और आराधना में लीन थे। उन्होंने स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण को देखा और उनकी प्रेरणा से गोविन्द देव जी की मूर्ति को शिल्पित करवाया।मूर्ति में भगवान श्रीकृष्ण के बचपन और युवावस्था के सुंदर स्वरूप का अद्भुत समावेश किया गया। माना जाता है कि यह मूर्ति ऐसी है, जैसा स्वरूप स्वयं श्रीकृष्ण ने अपनी परनानी माता को दर्शन देते समय धारण किया था।वृंदावन में गोविन्द देव जी की पूजा वर्षों तक होती रही, लेकिन जब मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिरों को नष्ट करना शुरू किया, तब इस मूर्ति को गोपनीय तरीके से जयपुर लाया गया। यह मूर्ति अब जयपुर में विराजमान है और आज भी रोजाना भक्तों को उसी श्रद्धा से दर्शन देती है।

आस्था और पूजा विधि
गोविन्द देव जी मंदिर में प्रतिदिन हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। यहां की 'मंगला आरती', जो सुबह ब्रह्म मुहूर्त में होती है, विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह वह समय होता है जब भगवान को उठाया जाता है, उन्हें श्रृंगार कराया जाता है और भक्तों को प्रथम दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। इसके बाद दिनभर में छह से सात बार आरती और भोग लगते हैं।मंदिर में गौ-संरक्षण, कृष्ण जन्माष्टमी, राधाष्टमी और फूलों की होली जैसे पर्व अत्यंत भव्य रूप से मनाए जाते हैं। मंगलवार और शनिवार को यहां भक्तों की संख्या असाधारण रूप से बढ़ जाती है।

वास्तुकला और परिसर का महत्व
गोविन्द देव जी मंदिर राजस्थान की राजपूताना शैली और मुगल स्थापत्य का सुंदर संगम है। लाल पत्थर और सफेद संगमरमर से बने इस मंदिर में सुंदर नक्काशी, छज्जे, स्तंभ और विशाल मंडप श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। मंदिर परिसर साफ-सुथरा, विशाल और हरियाली से घिरा हुआ है, जहां बैठकर भक्त शांति और ध्यान का अनुभव करते हैं।इस मंदिर का एक अनूठा पहलू यह है कि सिटी पैलेस से सीधे दर्शन हो सकते हैं – यानी राजा जय सिंह द्वारा मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि वे अपने महल से ही प्रभु के दर्शन कर सकें।

आज के युग में मंदिर की भूमिका
आज जब समाज में भौतिकता और तनाव का बोलबाला है, गोविन्द देव जी मंदिर एक ऐसा स्थान है जहां भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है। यहां आने वाले श्रद्धालु न केवल पूजा करते हैं, बल्कि भगवान के मधुर भजनों, घंटियों की गूंज और भक्तों की भावनाओं में एक अलौकिक ऊर्जा का अनुभव भी करते हैं।सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस दौर में भी मंदिर की लोकप्रियता कम नहीं हुई। रोजाना हजारों श्रद्धालु मंदिर की वेबसाइट या यूट्यूब चैनल के जरिए भी ऑनलाइन दर्शन करते हैं।