पहला चुनाव जीतते ही मंत्री बन गई थीं गिरिजा व्यास, 1991 का चुनाव बना ‘टर्निंग प्वाइंट’, पलट दिया पुरा करियर

लम्बे समय तक मेवाड़ की राजनीति की धुरी रहीं गिरिजा व्यास 1977 से 1984 तक उदयपुर जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रहीं। इस पद पर रहते हुए उनकी कार्यशैली ने राष्ट्रीय नेतृत्व को भी प्रभावित किया। एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले इस कांग्रेस नेता से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी काफी प्रभावित हुए। राजीव गांधी के दौर में जब नई सोच की बात हो रही थी, तब 1985 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में युवाओं और महिलाओं को मौका दिया गया था। इस चुनाव में 16 महिलाएं विजयी हुईं। इससे पहले 1980 में सदन में पहुंचने वाली महिलाओं की अधिकतम संख्या 10 थी, जो 1985 में टूट गई। विजयी महिला विधायकों में से एक गिरिजा व्यास थीं, जो पहली बार चुनाव जीतीं और मंत्री भी बनीं। तत्कालीन हरिदेव जोशी सरकार में उन्हें पर्यटन विभाग मिला।
दूसरे विधानसभा चुनाव में हारे
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया के पोते और उदयपुर कांग्रेस के उपाध्यक्ष दीपक सुखाड़िया के अनुसार, 1991 के आम चुनाव उनके राजनीतिक जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए। इससे पहले 1990 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा उम्मीदवार शिव किशोर सनाढ्य से 10,000 से अधिक मतों से हार गए थे। एक साल बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया और उन्हें उदयपुर से लोकसभा उम्मीदवार बनाया।
लेकिन 21 मई 1991 को राजीव गांधी की मृत्यु के बाद चुनाव आयोग ने चुनाव एक महीने के लिए स्थगित कर दिया। नई तारीखों की घोषणा हुई और देशभर में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति का असर उदयपुर में भी दिखाई दिया। इस चुनाव में गिरिजा व्यास ने भाजपा प्रत्याशी गुलाब चंद कटारिया को 26 हजार से अधिक मतों से हराकर चुनाव जीता था। इस जीत के बाद डॉ. गिरिजा व्यास ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गिरिजा व्यास ने मजबूत नेता कटारिया को दो बार हराया
गिरिजा व्यास एक बार विधायक और चार बार सांसद चुनी गईं। खास बात यह है कि मेवाड़ के कद्दावर राजनेता और वर्तमान में पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया को अपने राजनीतिक जीवन में सिर्फ दो बार चुनावी हार का सामना करना पड़ा और दोनों ही बार उन्हें गिरिजा व्यास से हार का सामना करना पड़ा।