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सचिन पायलट को लेकर पूर्व मंत्री की भविष्यवाणी बोले- ‘CM फेस होने के बाद भी 2028 में भी नहीं जीत पाएंगे टोंक', बयान से सियासी गलियारों में सनसनी

 
सचिन पायलट को लेकर पूर्व मंत्री की भविष्यवाणी बोले- ‘CM फेस होने के बाद भी 2028 में भी नहीं जीत पाएंगे टोंक', बयान से सियासी गलियारों में सनसनी 

राजस्थान की राजनीति में एक नए विवाद ने जन्म ले लिया है। पूर्व मंत्री और 5 बार विधायक रहे सुरेंद्र व्यास ने अपनी हालिया प्रकाशित पुस्तक 'एक असफल राजनीतिक यात्रा' में बड़ा दावा किया है। व्यास ने अपनी पुस्तक में सचिन पायलट के भविष्य पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि अगर पायलट 2028 में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होने के बावजूद टोंक से चुनाव लड़ते हैं, तो उनकी हार निश्चित है। उनका कहना है कि पायलट टोंक में किसी मुस्लिम उम्मीदवार को आगे नहीं आने देना चाहते, ताकि वह अपने गुर्जर वोट बैंक की सीटों को सुरक्षित रख सकें।

'आम मुसलमान खुद को दोषी मानते हैं'
पुस्तक में आगे लिखा है, 'टोंक के आम मुसलमान खुद को दोषी मानते हैं कि उन्हें भाजपा को रोकने के लिए अपने समाज के हितों के विरुद्ध एक गैर-मुस्लिम उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 2018 में वसुंधरा राजे ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत भाजपा की ओर से यूनुस खान को यहां से मैदान में उतारा था, लेकिन वह चुनाव नहीं जीत पाए और भाजपा में वसुंधरा का प्रभाव भी कम हो गया और खुद यूनुस खान भी उदासीन हो गए।'

व्यास की किताब में कई बड़े दावे

सुरेंद्र व्यास की किताब में कई बड़े दावे किए गए हैं, जिनमें राहुल गांधी, अशोक गहलोत, सचिन पायलट और अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों पर तीखी टिप्पणियाँ की गई हैं। व्यास ने राहुल गांधी की विदेश जाकर भारत की संवैधानिक संस्थाओं को कमज़ोर और पक्षपाती कहने की प्रवृत्ति की आलोचना की है और इसे गैर-ज़िम्मेदाराना और लोकतंत्र के लिए हानिकारक बताया है। व्यास ने 1998 में निर्दलीय विधायक बनने के बाद उन्हें कांग्रेस में दोबारा शामिल होने से रोकने के गहलोत के प्रयासों का भी ज़िक्र किया है। उन्होंने बताया कि कैसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सहमति के बावजूद, गहलोत ने उन्हें पार्टी में वापस आने से रोकने के लिए कांग्रेस विधायक दल और ज़िला कांग्रेस अध्यक्ष से मंज़ूरी की शर्त रखी।

गहलोत-पायलट विवाद पर बयान
व्यास ने गहलोत-पायलट विवाद पर भी चर्चा की है और कहा है कि पायलट द्वारा सरकार को अस्थिर करने की कोशिश ग़लत थी, लेकिन उन्होंने अपनी भाषा में संयम बनाए रखा। जबकि गहलोत ने एक परिपक्व नेता होने के बावजूद 'निकम्मा-नकारा' जैसी भाषा का इस्तेमाल किया, जो दुर्भाग्यपूर्ण था। इतना ही नहीं, व्यास ने इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा को पूरी तरह असंवैधानिक बताया है और कहा है कि उन्होंने कैबिनेट की सहमति के बिना आपातकाल लगाया और बाद में उसे मंज़ूरी भी दिलवाई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं और जस्टिस एचआर खन्ना की असहमति को लोकतंत्र के लिए एक मिसाल बताया है।