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रणथम्भौर की धरती पर मछली जैसी बाघिनों ने रचा इतिहास, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए इस टाइगर रिजर्व की स्थापना से जुड़े रोचक तथ्य

रणथम्भौर की धरती पर मछली जैसी बाघिनों ने रचा इतिहास, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए इस टाइगर रिजर्व की स्थापना से जुड़े रोचक तथ्य
 
रणथम्भौर की धरती पर मछली जैसी बाघिनों ने रचा इतिहास, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए इस टाइगर रिजर्व की स्थापना से जुड़े रोचक तथ्य

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथम्भौर टाइगर रिजर्व न केवल भारत के सबसे प्रमुख टाइगर प्रोजेक्ट स्थलों में से एक है, बल्कि यह ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहर का भी उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका नाम रणथम्भौर किले से पड़ा है, जो इसी क्षेत्र की ऊँची चट्टानों पर स्थित है और जंगल के रहस्यमयी सौंदर्य को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से जोड़ता है।

स्थापना और टाइगर प्रोजेक्ट का आरंभ

रणथम्भौर का जंगल शुरू में सवाई माधोपुर शाही परिवार के लिए एक विशेष शिकारगाह हुआ करता था। रियासत काल में राजाओं और अंग्रेज अफसरों द्वारा यहां बाघों का शिकार एक रॉयल खेल समझा जाता था। लेकिन 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध तक आते-आते जंगल की स्थिति चिंताजनक हो गई थी। वन्यजीवों की घटती संख्या और अवैध शिकार ने इस क्षेत्र की जैवविविधता को गंभीर संकट में डाल दिया।भारत सरकार ने इस स्थिति की गंभीरता को समझते हुए 1973 में 'प्रोजेक्ट टाइगर' की शुरुआत की और रणथम्भौर को 1973 में ही टाइगर प्रोजेक्ट के तहत चयनित किया गया। इसके बाद 1980 में इस क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान (National Park) का दर्जा दिया गया। 1991 में इस क्षेत्र के आसपास के सवाई मानसिंह और केलादेवी वन्यजीव अभयारण्यों को भी इस रिजर्व में शामिल किया गया, जिससे इसकी कुल सीमा और जैव विविधता में विस्तार हुआ।

क्षेत्रफल और भौगोलिक विशेषताएं

रणथम्भौर टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल लगभग 1,334 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से कोर एरिया करीब 392 वर्ग किलोमीटर है। शेष क्षेत्र बफर ज़ोन कहलाता है, जिसमें मानव गतिविधियों की सीमित अनुमति है। यह क्षेत्र अरावली और विंध्याचल पर्वतमालाओं के संगम पर स्थित है, जो इसे एक विशिष्ट स्थलाकृतिक पहचान देता है। रिजर्व में घने जंगल, खुले घास के मैदान, जल स्रोत, नाले और ऊँची चट्टानी पहाड़ियां बाघों के लिए आदर्श आवास का निर्माण करती हैं।

वन्यजीवों की बहुलता और प्रमुख आकर्षण

रणथम्भौर की पहचान उसके बाघों (Tigers) से है, लेकिन यह रिजर्व केवल बाघों तक सीमित नहीं है। यहां पर तेंदुआ, भालू, चीतल, सांभर, नीलगाय, मगरमच्छ, जंगली सुअर, लोमड़ी, लकड़बग्घा जैसी अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। इसके अलावा, यह पक्षी प्रेमियों के लिए भी स्वर्ग है, क्योंकि यहां 300 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां देखी जा सकती हैं।रणथम्भौर की प्रसिद्ध बाघिन 'मछली' (Machhli) इस रिजर्व का एक ऐतिहासिक नाम बन गई थी। उसे "रणथम्भौर की रानी" भी कहा जाता था। उसकी वीरता, मातृत्व और मानवीय सह-अस्तित्व की अद्भुत मिसालों ने उसे न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया।

रणथम्भौर किला और पर्यटन

रणथम्भौर टाइगर रिजर्व के बीचों-बीच स्थित है रणथम्भौर किला, जो 10वीं शताब्दी में निर्मित एक ऐतिहासिक किला है और यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है। यह किला न केवल स्थापत्य का अनमोल नमूना है बल्कि यह बाघों और अन्य जानवरों के प्राकृतिक आवास के रूप में भी कार्य करता है। किले के आसपास कई मंदिर और बावड़ियां हैं, जिनका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है।यह क्षेत्र आज एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है। भारत के अलावा दुनिया भर के पर्यटक यहाँ बाघों की एक झलक पाने और जंगल सफारी का आनंद लेने आते हैं। रणथम्भौर में सफारी के लिए दोपहर और सुबह के दो स्लॉट निर्धारित हैं, जिनमें गाइड और रेंजर्स के साथ खुली जिप्सी या कैंटर में जंगल भ्रमण कराया जाता है।

संरक्षण की चुनौतियाँ

हालांकि रणथम्भौर टाइगर रिजर्व ने बाघों की संख्या बढ़ाने में बड़ी सफलता हासिल की है, लेकिन अवैध शिकार, मानव-वन्यजीव संघर्ष और पर्यावरणीय बदलाव जैसे कई खतरे अब भी इसकी चुनौतियाँ बने हुए हैं। सरकार और स्थानीय समुदायों के समन्वय से संरक्षण प्रयासों को और सुदृढ़ किया जा रहा है।