Aapka Rajasthan

युद्ध के दौरान हाथियों को घुसने से रोकने के लिए कुम्भलगढ़ किले को झुकाया गया था 60 डिग्री, 2 मिनट के इस वीडियो में देखें फोर्ट की दिलचस्प कहानी

युद्ध के दौरान हाथियों को घुसने से रोकने के लिए कुम्भलगढ़ किले को झुकाया गया था 60 डिग्री, 2 मिनट के इस वीडियो में देखें फोर्ट की दिलचस्प कहानी
 
युद्ध के दौरान हाथियों को घुसने से रोकने के लिए कुम्भलगढ़ किले को झुकाया गया था 60 डिग्री, 2 मिनट के इस वीडियो में देखें फोर्ट की दिलचस्प कहानी

राजस्थान का कुंभलगढ़ किला इतिहास, वीरता और रणनीतिक वास्तुकला का एक जीवंत उदाहरण है। यह किला केवल अपनी ऊँचाई और विशाल दीवारों के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि इसमें छिपी रणनीतिक सूझ-बूझ आज भी विशेषज्ञों और इतिहासकारों को चौंका देती है। सबसे खास बात यह है कि युद्ध के समय दुश्मन के सबसे बड़े हथियार यानी हाथियों को रोकने के लिए इस किले के मुख्य द्वारों को लगभग 60 डिग्री तक झुकाया गया था, ताकि हाथी किसी भी सूरत में अंदर प्रवेश न कर सकें।

क्यों किया गया था 60 डिग्री का झुकाव?

प्राचीन भारत में हाथी युद्ध का महत्वपूर्ण हिस्सा होते थे। वे अपनी ताकत से किले के दरवाजों को तोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। लेकिन राणा कुंभा जैसे दूरदर्शी शासकों ने इस खतरे को पहले ही भांप लिया था। इसी कारण कुंभलगढ़ किले के प्रवेश मार्गों को ऐसा ढलान दिया गया, जिसकी चढ़ाई 60 डिग्री तक तीव्र थी।

जब कोई हाथी इस रास्ते पर दौड़ने की कोशिश करता, तो उसकी गति धीमी हो जाती और फिसलन के कारण वह लड़खड़ा जाता। इतना ही नहीं, कई जगहों पर मार्गों को संकरा और घुमावदार भी बनाया गया, जिससे एक साथ कई हाथी नहीं चढ़ सकते थे। इस प्रकार, भारी सैन्य हमलों को रोकने के लिए यह एक बुद्धिमत्तापूर्ण रक्षा प्रणाली मानी जाती है।

कुंभलगढ़ की अन्य सैन्य विशेषताएँ

  • 36 किलोमीटर लंबी दीवार: इसे भारत की ‘ग्रेट वॉल’ भी कहा जाता है। इतनी लंबी दीवार पर गश्त करना आसान होता था और दुश्मन के हर मूवमेंट पर नजर रखी जा सकती थी।

  • भव्य द्वारों पर लगी लोहे की कीलें: यदि हाथी किसी दरवाजे से टकराते, तो वे खुद ही घायल हो जाते।

  • गुप्त सुरंगें और तहखाने: संकट के समय सैनिक या राजपरिवार सुरक्षित स्थानों तक पहुँच सकते थे।

महाराणा प्रताप की जन्मस्थली

यही किला इतिहास के महान योद्धा महाराणा प्रताप की जन्मस्थली भी है। उन्होंने यहीं से आत्मसम्मान की वह मशाल जलाई, जो आज भी राजस्थानी गौरव का प्रतीक है। यह किला मेवाड़ की ‘संकट कालीन राजधानी’ रहा, जहां से कई वीरता की कहानियाँ जन्मी हैं।

वीडियो में देखें पूरी कहानी

आज हम भले ही आधुनिक तकनीकों की बात करते हैं, लेकिन 15वीं शताब्दी में राणा कुंभा जैसे राजा इतनी दूरदर्शिता के साथ किलों का निर्माण करते थे, जो आने वाले सौ-सौ सालों तक दुश्मनों को चुनौती देते रहे।