क्या आप जानते हैं जयगढ़ किले को आमेर का रक्षक क्यों माना जाता है ? वीडियो में देखए इसके युद्धकालीन महत्त्व की पूरी कहानी
राजस्थान की धरती पर स्थित जयगढ़ किला (Jaigarh Fort) ना केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है बल्कि एक ऐसी रचना भी है जिसे आमेर किले का "रक्षक किला" कहा जाता है। यह उपाधि जयगढ़ को यूं ही नहीं मिली, बल्कि इसके पीछे छिपी है सैकड़ों वर्षों की रणनीतिक सोच, युद्ध-कला, और राजपूताना गौरव की गाथा। यह किला न केवल आमेर के किले की रक्षा करता था, बल्कि मुगलों और अन्य आक्रांताओं से पूरे क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करता था।
जयगढ़ किला जयपुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है। यह आमेर किले के ठीक ऊपर ‘चील का टीला’ नामक स्थान पर बना हुआ है। इसका निर्माण 1726 में आमेर के राजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने करवाया था, जिसका उद्देश्य था — राज्य की सैन्य शक्ति को संगठित करना और खजाने तथा हथियारों की सुरक्षा करना। इसकी बनावट और संरचना को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह किला मुख्य रूप से सुरक्षा और युद्ध की रणनीतियों के लिए तैयार किया गया था।
आमेर का संरक्षक क्यों?
जयगढ़ को आमेर किले का रक्षक इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह भौगोलिक दृष्टि से आमेर किले से ऊंचाई पर स्थित है और वहां से आमेर की समूची संरचना और गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सकती है। यदि कोई आक्रमणकारी आमेर किले की ओर बढ़ता, तो सबसे पहले उसे जयगढ़ से टकराना पड़ता, जो एक मजबूत रक्षक की तरह खड़ा रहता। जयगढ़ से तीरंदाज़ों और तोपों के माध्यम से नीचे के आमेर क्षेत्र की रक्षा की जा सकती थी। यही कारण है कि इसे "गार्डियन फोर्ट" कहा जाता है।इतना ही नहीं, जयगढ़ और आमेर किला आपस में गुप्त सुरंगों के माध्यम से जुड़े हुए हैं। युद्ध की स्थिति में आमेर के शाही परिवार या सेना जयगढ़ में शरण ले सकते थे और वहां से पलटवार भी कर सकते थे। ये सुरंगें आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं और राजस्थान की राजसी रणनीतियों का जीवंत प्रमाण हैं।
हथियारों और बारूद का भंडार
जयगढ़ किला मुख्यतः शस्त्रागार (आर्मोरी) के लिए प्रसिद्ध है। इसे भारत का सबसे बड़ा तोपखाना भी कहा जाता है। यहाँ दुनिया की सबसे बड़ी पहिए पर चलने वाली तोप ‘जयवाण’ भी रखी गई है, जो आज भी इसकी शान बढ़ा रही है। जयवाण को एक बार चलाया गया था और कहा जाता है कि उसकी आवाज 22 किलोमीटर तक सुनी गई थी। किले में विशाल बारूद भंडार, तोपों की ढलाई करने की फैक्ट्री और युद्ध-सामग्री का भंडारण घर भी मौजूद था, जो इसकी सैन्य महत्ता को दर्शाता है।
वास्तुकला और निर्माण
जयगढ़ की वास्तुकला राजपूत शैली की उत्कृष्ट मिसाल है। लाल बलुआ पत्थर से बना यह किला 3 किलोमीटर लंबा और लगभग 1 किलोमीटर चौड़ा है। इसकी दीवारें इतनी मजबूत और ऊंची हैं कि इसे अभेद्य माना जाता था। अंदर मौजूद जलाशय, महल, मंदिर, बगीचे, तोपखाने और प्रहरी मीनारें इसकी रणनीतिकता और शाही वैभव दोनों को दर्शाती हैं।
मुगल और मराठा आक्रमणों से सुरक्षा
इतिहास गवाह है कि जयगढ़ किले ने कई बार जयपुर और आमेर को मुगलों, मराठाओं और अन्य बाहरी ताकतों से बचाया। खासकर औरंगज़ेब के काल में यह किला एक सुरक्षित छावनी बन गया था। कहा जाता है कि राजाओं ने युद्ध के दौरान अपना खजाना इसी किले में छुपाया था, जिसे अंग्रेज भी ढूंढते रहे लेकिन कोई प्रमाण नहीं मिला।
आज के परिप्रेक्ष्य में
आज जयगढ़ किला पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र है और लाखों पर्यटक यहां हर साल आते हैं। इसकी ऊंचाई से जयपुर और आमेर की खूबसूरती देखना एक दिव्य अनुभव होता है। किले की गाथाएं और पुरातात्विक महत्व न केवल इतिहास के विद्यार्थियों को आकर्षित करते हैं बल्कि यह हर देशवासी के गर्व का प्रतीक भी है।
