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पंचायतों के चुनाव को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, वीडियो मे देखें पहले जवाब से संतुष्ट नहीं

पंचायतों के चुनाव को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, वीडियो मे देखें पहले जवाब से संतुष्ट नहीं
 
पंचायतों के चुनाव को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, वीडियो मे देखें पहले जवाब से संतुष्ट नहीं

राजस्थान हाईकोर्ट ने 6759 ग्राम पंचायतों के चुनाव स्थगित करने के मामले में राज्य सरकार से एक बार फिर स्पष्ट जवाब मांगा है। मंगलवार को न्यायमूर्ति इंद्रजीत सिंह की खंडपीठ ने सरकार से यह पूछा कि आखिर वह इन पंचायतों के चुनाव कब तक कराएगी। अदालत ने राज्य सरकार को 4 फरवरी को दिए गए आदेश की पालना में चुनाव कार्यक्रम प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।

जनहित याचिका पर सुनवाई

ग्राम पंचायतों के चुनाव को लेकर यह मामला जनहित याचिका के रूप में उठाया गया था। याचिकाकर्ता गिरिराज सिंह देवंदा ने इस मुद्दे को अदालत के समक्ष रखते हुए मांग की थी कि पंचायतों के चुनाव तय समय पर कराए जाएं। उनका तर्क था कि लंबे समय तक चुनाव स्थगित रहने से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न हो रही है और स्थानीय प्रशासनिक कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं।

इस याचिका पर हाईकोर्ट में पहले भी सुनवाई हो चुकी है, जिसमें सरकार को निर्देश दिए गए थे कि वह इन चुनावों को लेकर अपनी योजना स्पष्ट करे। अब अदालत ने फिर से सरकार से जवाब मांगते हुए पूछा है कि वह कब तक इन पंचायतों में चुनाव कराएगी।

चुनाव स्थगित करने के पीछे क्या है कारण?

राज्य सरकार ने अभी तक पंचायत चुनावों के स्थगन को लेकर कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया है। हालांकि, सूत्रों के अनुसार, चुनाव स्थगित करने के पीछे प्रशासनिक व्यवस्थाएं, परिसीमन संबंधी विवाद और अन्य कानूनी जटिलताएं हो सकती हैं।

वहीं, कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मद्देनजर सरकार पंचायत चुनावों को टाल रही है, ताकि राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए आगे की रणनीति बनाई जा सके।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद क्या हो सकता है?

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद अब राज्य सरकार पर चुनावों को लेकर समय सीमा तय करने का दबाव बढ़ गया है। यदि सरकार जल्द ही चुनाव कार्यक्रम जारी नहीं करती है, तो अदालत आगे और सख्त रुख अपना सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि पंचायत चुनावों में देरी से स्थानीय विकास कार्यों में भी रुकावट आ रही है। निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों के अभाव में प्रशासनिक निर्णयों में सुस्ती देखी जा रही है, जिससे ग्रामीण विकास योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।