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पाकिस्तान बॉर्डर पर टूटी चूड़ियों के साथ मिला खौफनाक राज, भारतीय एजेंसियों ने खोली हैरान कर देने वाली परतें

पाकिस्तान बॉर्डर पर टूटी चूड़ियों के साथ मिला खौफनाक राज, भारतीय एजेंसियों ने खोली हैरान कर देने वाली परतें
 
पाकिस्तान बॉर्डर पर टूटी चूड़ियों के साथ मिला खौफनाक राज, भारतीय एजेंसियों ने खोली हैरान कर देने वाली परतें

चूड़ियाँ, मोती और मिट्टी के बर्तन... कुछ ऐसी ही चीज़ें पाकिस्तान सीमा के पास जोधपुर में मिली हैं। ये चीज़ें भारत-पाकिस्तान सभ्यता की साझी विरासत की गवाही दे रही हैं। हाल ही में, भारतीय पुरातत्वविदों ने एक ऐसे ही नए स्थल की खोज की है। आइए जानते हैं इस हड़प्पा स्थल में क्या खास चीज़ें मिली हैं। इनका क्या महत्व है?

रातड़िया री देरी में मिला यह 'खजाना'

भारतीय पुरातत्वविदों को राजस्थान के जैसलमेर ज़िले के रातड़िया री देरी में 4500 साल पुराने हड़प्पा स्थल के प्रमाण मिले हैं। यह स्थान रामगढ़ तहसील से 60 किलोमीटर दूर है, जबकि महात पाकिस्तान सीमा के पास सादेवाला गाँव से 17 किलोमीटर दूर है।

इस स्थल की खोज किसने की, जानिए
यह खोज राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग के शोधकर्ता दिलीप कुमार सैनी, इतिहासकार पार्थ जगानी, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के प्रोफेसर जीवन सिंह खारवाल और राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. तमेघ पंवार और डॉ. रवींद्र सिंह जाम और रामगढ़ के प्रदीप कुमार गर्ग ने की है।

थार रेगिस्तान में पहली बार मिला ऐसा खजाना
थार रेगिस्तान में पहली बार कोई पुरातात्विक स्थल मिला है। यह खोज इंडियन जर्नल ऑफ साइंस में प्रकाशित हुई है। यहाँ कुछ पुरानी चीज़ें मिली हैं। ये चीज़ें लाल और गेहुँए रंग के मिट्टी के बर्तन हैं। इनमें छेद वाले कटोरे, सुराही, प्याले और सुराही शामिल हैं। ये मिट्टी के बर्तन हाथ से बनाए गए हैं। इन पर ज्यामितीय आकृतियाँ बनी हैं। कुछ पत्थर के ब्लेड भी मिले हैं, जो 8-10 सेमी लंबे हैं।

मिट्टी और सीपियों से बनी चूड़ियाँ भी मिली हैं
पुरातत्वविदों के अनुसार, रताडिया री डेयरी से मिली सभी चीज़ों के ब्लेड रोहरी (पाकिस्तान) से लाए गए चर्ट पत्थर से बने हैं। मिट्टी और सीपियों से बनी चूड़ियाँ भी मिली हैं। कुछ त्रिकोणीय, गोल और इडली के आकार के टेराकोटा केक भी मिले हैं। टेराकोटा केक का मतलब मिट्टी से बनी पकी हुई चीज़ें होती हैं।

पत्थर की चक्कियाँ और ईंटें भी मिलीं

इस स्थल से पत्थर की चक्कियाँ भी मिली हैं। संभवतः इनका उपयोग किसी चीज़ को पीसने या रगड़ने के लिए किया जाता था। कुछ पच्चर के आकार की ईंटें भी मिली हैं। इससे पता चलता है कि वहाँ गोल इमारतें या भट्टियाँ रही होंगी। कुछ आयताकार ईंटें भी मिली हैं। ये ईंटें हमें हड़प्पा सभ्यता की नगरीय योजना की याद दिलाती हैं। एक भट्ठी भी मिली है, जिसके बीच में एक स्तंभ है। ऐसी भट्टियाँ पहले कन्मेर (गुजरात) और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में भी मिली हैं। कुछ पुरानी दीवारों के अवशेष भी मिले हैं। इससे पता चलता है कि वहाँ निर्माण कार्य व्यवस्थित तरीके से किया जाता था।

हड़प्पा सभ्यता क्यों प्रसिद्ध है, यहाँ जानें

हड़प्पा सभ्यता भारत की सबसे विकसित सभ्यता मानी जाती है। पहले इसका नाम सिंधु घाटी सभ्यता था, जो सिंधु नदी पर आधारित थी। बाद में हड़प्पा स्थल के नाम पर इसका नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया। यह सभ्यता पूरी तरह से नगरीय सभ्यता थी। जिसमें चौड़ी सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। घरों और सड़कों के किनारे जल निकासी की व्यवस्था हुआ करती थी। यह विशेषता उस समय दुनिया की किसी भी सभ्यता को विरासत में नहीं मिली।

चूड़ियों ने बताया कि हड़प्पा सभ्यता कैसे नष्ट हुई
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन संभवतः पर्यावरणीय, भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों के कारण हुआ था। नदियों का सूखना, प्राकृतिक आपदाएँ, व्यापार नेटवर्क में गिरावट और सामाजिक व आर्थिक बुनियादी ढाँचे के पतन ने इस सभ्यता के पतन में भूमिका निभाई। अनएकेडमी के अनुसार, हड़प्पा सभ्यता 1300 ईसा पूर्व तक ढह चुकी थी और 1900 ईसा पूर्व तक समाज पतन की ओर अग्रसर था। सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का अंत लगभग 1800 ईसा पूर्व से होने लगा था। हड़प्पा सभ्यता उस रोमानियाई काल की सबसे सुंदर सभ्यता थी जहाँ मूर्तियों, नगरों, जल निकासी प्रणालियों का निर्माण सबसे प्रसिद्ध था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता का विनाश मनुष्यों द्वारा नहीं, बल्कि भूकंप, बाढ़ और महामारी जैसे कुछ प्राकृतिक कारणों से हुआ था। हड़प्पा सभ्यता का अंत सिलाई, सार्वजनिक स्नानघरों, जलाशयों की एक जटिल प्रणाली के साथ हुआ। कई स्थलों पर बिखरे मनके, चूड़ियाँ इन बातों की गवाही देते हैं।