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राजस्थान में 12वीं की किताब ‘आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत’ पर विवाद, सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर एपीओ

राजस्थान में 12वीं की किताब ‘आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत’ पर विवाद, सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर एपीओ
 
राजस्थान में 12वीं की किताब ‘आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत’ पर विवाद, सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर एपीओ

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा कक्षा 12वीं के विद्यार्थियों के लिए तैयार की गई किताब ‘आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत’ अब सियासी घमासान का कारण बन गई है। किताब में कांग्रेस सरकारों के योगदान का अधिक उल्लेख और मौजूदा सरकार की उपलब्धियों की कम प्रस्तुति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।

इस विवाद के बीच माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने बड़ी कार्रवाई करते हुए सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर दिनेश कुमार ओझा को एपीओ (Awaiting Posting Order) कर दिया है और उनका स्थानांतरण शिक्षा निदेशालय, बीकानेर कर दिया गया है।

क्या है विवाद?

इस किताब में आजादी के बाद भारत के विकास की कहानी को दर्शाया गया है, जिसमें पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी सहित कई कांग्रेस नेताओं की नीतियों और योजनाओं को प्रमुखता से शामिल किया गया है। वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मौजूदा भाजपा सरकार के योगदान का जिक्र काफी सीमित बताया जा रहा है।

बीजेपी का आरोप है कि किताब में राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रेरित सामग्री शामिल की गई है, जो छात्रों के दिमाग में एकतरफा ऐतिहासिक छवि बनाती है।

बोर्ड की कार्रवाई

विवाद गहराने के बाद माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने:

  • सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर दिनेश कुमार ओझा को एपीओ कर शिक्षा निदेशालय, बीकानेर स्थानांतरित कर दिया है।

  • यह कदम प्रशासनिक कार्रवाई के तहत उठाया गया है, हालांकि बोर्ड की ओर से इस निर्णय के पीछे औपचारिक कारण नहीं बताया गया है।

कांग्रेस और बीजेपी में जुबानी जंग

इस घटनाक्रम ने राजनीतिक दलों को आमने-सामने ला खड़ा किया है

  • कांग्रेस ने भाजपा पर इतिहास से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है और कहा है कि सच्चाई दबाई नहीं जा सकती।

  • पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस मामले में भाजपा को घेरते हुए कहा कि "यह हास्यास्पद है कि सरकारें अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए इतिहास को बदलने की कोशिश कर रही हैं।"

वहीं, भाजपा का कहना है कि किताब में केंद्र की योजनाओं और उपलब्धियों को नजरअंदाज किया गया है, जो छात्रों को एकतरफा जानकारी देने जैसा है।

आगे क्या?

अब सवाल उठ रहे हैं कि:

  • क्या यह किताब दोबारा संशोधित की जाएगी?

  • क्या बोर्ड इसे वापस लेगा या प्रतिबंधित करेगा?

  • और क्या यह राजनीतिक बहस शिक्षा व्यवस्था पर असर डालेगी?