Udaipur में महाराणा सांगा पर विवादित बयान से मेवाड़ में आक्रोश, राणा के वंशजों ने दी कड़ी प्रतिक्रिया

सपा सांसद रामजी लाल द्वारा महाराणा सांगा पर की गई विवादित टिप्पणी के बाद पूरे मेवाड़ में गुस्सा है। उनके इस बयान के बाद एक तरफ जहां उदयपुर में राजपूत संगठनों के साथ अन्य सामाजिक संगठनों ने उनका खुलकर विरोध किया है और हिरण मगरी थाने में उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया है, वहीं दूसरी तरफ उनके वंशजों का बयान भी सामने आया है।
महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) के वंशज हनुमंत सिंह बोहेड़ा ने एक बयान जारी कर सपा सांसद की निराधार टिप्पणी पर रोष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि यदि किसी ने पूरे भारत को एक झंडे के नीचे लाने का काम किया है तो वह केवल महाराणा संग्राम सिंह हैं। जिस तरह महाराणा प्रताप को प्रथम स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है, उसी तरह महाराणा संग्राम सिंह को उस दौर में पूरे भारत को एक मंच पर या एक झंडे के नीचे लाने के लिए जाना जाता है। शरीर पर 80 घाव होने के बावजूद अगर कोई युद्ध के मैदान में दुश्मनों का सिर काट रहा था तो वह केवल महाराणा संग्राम सिंह थे।
बोहेड़ा ने कहा कि राज्यसभा में महाराणा सांगा पर बाबर को यहां आमंत्रित करने का आरोप लगाने वाले सपा नेता को यह नहीं मालूम कि महाराणा सांगा ने ही भारत को बाहरी आक्रमणकारियों से मुक्त कराने के लिए अफगानिस्तान से भारत आने वाले दर्रों पर 10 हजार सैनिक तैनात करने का सुझाव दिया था, ताकि कोई भी भारत में प्रवेश न कर सके। राणा सांगा एकमात्र योद्धा थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अफगानिस्तान तक लड़ाई लड़ी।
उदयपुर के आहाड़ संग्रहालय में स्थित एक ऐतिहासिक शिलालेख विक्रम संवत 1583 (1526 ई.) का है। इतिहासकार डॉ. श्री कृष्ण जगनू के अनुसार जब मुगल शासक बाबर ने महाराणा सांगा को युद्ध के लिए चुनौती दी तो तत्कालीन अहद अधिकारी सहसा ने साहूकारों और स्थानीय नागरिकों को चेतावनी देने के लिए यह शिलालेख स्थापित किया था।
यह शिलालेख श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को लिखा गया था और इसमें संस्कृत तथा स्थानीय भाषा का प्रयोग किया गया है। इसमें आहाड़ का उल्लेख अघात पुरी और ताम्बवल्ली (ताम्बवती नगरी) के नाम से किया गया है। यह अभिलेख उस समय की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का साक्ष्य है।
इतिहासकारों के अनुसार, किसी भी भारतीय शिलालेख में महाराणा सांगा का उल्लेख पराजित राजा के रूप में नहीं है। गुजरात के शत्रुंजय तीर्थ में स्थित एक शिलालेख में भी उन्हें एक ऐसे शासक के रूप में वर्णित किया गया है जो अपनी अंतिम सांस तक हर युद्ध में विजयी रहे। राणा सांगा ने कई महत्वपूर्ण लड़ाइयां लड़ीं और लोधी जैसे शासकों को हराया। उनका नाम भारतीय इतिहास में वीरता और अजेयता के प्रतीक के रूप में अंकित है।