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राजस्थान में कमजोर पड़ा Congress का वर्चस्व, पार्टी अपनी सबसे कमजोर स्थिति में, बड़े नेता बदल रहे पाला

 
राजस्थान में कमजोर पड़ा Congress का वर्चस्व, पार्टी अपनी सबसे कमजोर स्थिति में, बड़े नेता बदल रहे पाला

जयपुर न्यूज़ डेस्क, लोकसभा चुनाव में ये पहली बार है जब कांग्रेस पार्टी को कुछ सीटों पर अपने खुद के प्रत्याशी ढूंढने से भी नहीं मिल रहे हैं। सीकर और नागौर में जहां अन्य दलों के साथ गठबंधन करने पर मजबूर होना पड़ा, वहीं डूंगरपुर-बांसवाड़ा में आखिरी समय तक ना तो अपनी ही पार्टी का कोई जिताऊ उम्मीदवार मिला और ना ही किसी अन्य दल के साथ गठबंधन पर ही मुहर लग पाई।

कभी गढ़... अब सबसे कमज़ोर

प्रदेश की डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट एक वक्त में कांग्रेस पार्टी का गढ़ मानी जाती थी। यहां पर आदिवासियों का अच्छा-खासा वोट बैंक पार्टी के पक्ष में ही माना जाता रहा। लेकिन अब इस क्षेत्र में राजनीतिक तस्वीर और परिस्थिति बदली-बदली सी दिख रही है। कमज़ोरी की नौबत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी का दम हांकने वाली पार्टी को इस सीट पर एक उम्मीदवार तक नहीं मिल पा रहा है।

नामांकन के अंतिम दिन तक सस्पेंस

डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को लेकर नामांकन के अंतिम समय तक सस्पेंस बरकरार रहा। यहां तक कि क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर संयुक्त प्रत्याशी उतारे जाने को लेकर भी स्थिति साफ़ नहीं हो सकी। जानकारी के अनुसार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने क्षेत्र में कैंप किया हुआ है और स्थानीय नेताओं के साथ उम्मीदवार उतारे जाने को लेकर चर्चा-मंथन जारी है।

कांग्रेस का सिंबल पहुंचा बांसवाड़ा!

नामांकन के आखिरी दिन तक उम्मीदवार को लेकर बने रहे सस्पेंस के बीच कांग्रेस पार्टी का सिंबल बांसवाड़ा पहुंचने की भी चर्चा है। सूत्रों के अनुसार डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट के साथ ही बागीदौरा विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए कांग्रेस का सिंबल बांसवाड़ा पहुँचाया गया है। ऐसे में इन सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी उतारे जाने की भी संभावना अंतिम समय तक बनी रही।

कद्दावर नेता के जाने का असर

डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर कांग्रेस का बुरा हाल इस क्षेत्र में पार्टी के कद्दावर नेता रहे महेंद्र जीत सिंह मालवीय के भाजपा में जाने के कारण देखा जा रहा है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा गए मालवीय को हाथों-हाथ टिकट मिला और प्रत्याशी बन गए। उनके जाने के बाद कांग्रेस को उनके कद का कोई नेता इस क्षेत्र में नहीं मिल पा रहा है, जिससे उसकी मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं।