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काल बनकर लाखो लोगों को निगल गया ‘छप्पनिया अकाल’, वीडियो में जानिए क्यों राजस्थान में आज भी 56 नंबर को माना जाता है अशुभ ?

काल बनकर लाखो लोगों को निगल गया ‘छप्पनिया अकाल’, वीडियो में जानिए क्यों राजस्थान में आज भी 56 नंबर को माना जाता है अशुभ ?
 
काल बनकर लाखो लोगों को निगल गया ‘छप्पनिया अकाल’, वीडियो में जानिए क्यों राजस्थान में आज भी 56 नंबर को माना जाता है अशुभ ?

125 साल पहले, राजस्थान के ज़्यादातर हिस्सों में साल भर बारिश की एक बूँद भी नहीं गिरती थी। वर्षा ऋतु की खेती पर निर्भर राजस्थान में बारिश की कमी के कारण किसान अपनी फ़सलें भी नहीं बो पाते थे। इस दौरान न तो अनाज का एक दाना पैदा होता था और न ही पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होता था। जो इलाके पीने के लिए वर्षा जल संचयन पर निर्भर थे, वहाँ पीने के पानी की भारी कमी के कारण लोग पलायन करने लगे।

इस दौरान अनाज सबसे कीमती चीज़ बन गया था। बर्तनों में छिपाकर रखे अनाज की चोरी होने लगी। लोग अनाज के बदले अपने बच्चों तक को बेचने को मजबूर हो गए। इसी बीच, हर जगह, हर स्तर पर अकाल ने तबाही मचानी शुरू कर दी। हर घर में भूख फैलने लगी, हर जगह बच्चे, बूढ़े और जवान भूख से बिलखते और तड़पते दिखाई देने लगे। राजस्थान के हर इलाके में ऐसा ही दिल दहला देने वाला मंज़र देखने को मिला। दिन-रात भूख ने बच्चों, बूढ़ों और जवानों को बेहद कमज़ोर बना दिया था।

घास की रोटी, साँपों और नेवलों का शिकार

पीने का पानी न होने के कारण लोग निर्जलीकरण से मरने लगे। रेगिस्तान के 50-52 डिग्री सेल्सियस तापमान में भूख-प्यास से व्याकुल होकर पलायन कर रहे लोग और जानवर रास्ते में ही दम तोड़ने लगे। भूख-प्यास के कारण लोग घास की रोटी, साँपों और नेवलों का शिकार और पेड़ों की सूखी छाल पीसने को मजबूर हो गए। इस दौरान कुछ लोग भूख के कारण नरभक्षी भी बन गए।

इस संकट ने राजपूताना के दुर्ग में हाहाकार मचा दिया। मेवाड़ के राजा भी इस संकट से जूझते नज़र आए। इसके बाद मेवाड़ के राजाओं ने अकाल राहत के कई कार्य किए, जिनमें निःशुल्क भोजन की व्यवस्था सबसे प्रमुख थी। राजाओं ने अपनी प्रजा के लिए जगह-जगह आश्रय स्थल खुलवाए ताकि भूखे लोग वहाँ भोजन करके अपनी जान बचा सकें, लेकिन उस दौर में यातायात के सीमित साधनों और संचार साधनों की कमी के कारण लोगों तक पूरी तरह से मदद नहीं पहुँच पाई।

जनता के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था करते-करते कई शासकों का खजाना खाली हो गया और वे भारी कर्ज में डूब गए। राजाओं के आदेश पर धनवानों ने भी अपने खाद्यान्न भंडार खोल दिए, लेकिन यह सब उस भयंकर अकाल के आगे नाकाफी साबित हुआ। इस दौरान एक साल के भीतर ही लाखों लोग भूख-प्यास से मर गए।लॉर्ड कर्जन को 1899 में ही भारत का वायसराय नियुक्त किया गया था। इस दौरान ब्रिटिश सरकार के अधीन क्षेत्रों में अकाल से प्रभावित लोगों के लिए कुछ राहत शिविर खोले गए, लेकिन उनमें लगभग 25 प्रतिशत लोगों को ही सीमित राहत मिल पाई। 'छप्पनिया अकाल' भारत के लिए एक व्यापक नरसंहारक घटना साबित हुआ।

लगभग 40-45 लाख लोग मारे गए

1908 में भारत के 'इंपीरियल गजेटियर' में प्रकाशित एक अनुमान के अनुसार, अकेले ब्रिटिश भारत में, यानी ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से शासित क्षेत्रों में, 10 लाख लोग भुखमरी और उससे जुड़ी बीमारियों से मर गए। इतिहासकारों के अनुसार, यह आँकड़ा 40-45 लाख के करीब था। इसमें उस समय की रियासतों में इस अकाल से हुई हताहतों की संख्या शामिल नहीं है।