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राम जल सेतू योजना के दोनों समझौते पहली बार हुए सार्वजनिक, इस वायरल वीडियो में जानिए योजना के बारे में सबकुछ

राम जल सेतू परियोजना की घोषणा के बाद से ही इसके एमओयू को लेकर बने सस्पेंस को राजस्थान और मध्य्प्रदेश की सरकारों ने आखिरकार खत्म कर दिया है। एमओयू के सार्वजनिक नहीं होने के चलते विपक्ष दावा कर रहा था कि राजस्थान सरकार ने प्रदेश के हक का पानी मध्यप्रदेश को दे दिया। अब सरकार के इसके एमओयू को सार्वजनिक करने के बाद इस समझौते में राजस्थान को 4102.6 MCM पानी और मध्यप्रदेश को 3120.09 MCM पानी मिलने की बात सामने आई है। वहीँ, पानी की उपलब्धता के आधार पर कब किसे और कितना पानी मिलेगा, इसके लिए एक अलग निकाय बनेगा जो दोनों राज्यों के बीच पानी का रेगुलेशन करेगा।   
 
 राम जल सेतू योजना के दोनों समझौते पहली बार हुए सार्वजनिक, इस वायरल वीडियो में जानिए योजना के बारे में सबकुछ 

जयपुर न्यूज़ डेस्क - जल संसाधन विभाग ने 17 जनवरी को एक आरटीआई आवेदन को खारिज करते हुए यह तर्क दिया था। दिलचस्प बात यह है कि जिस एमओयू को राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बताकर देने से इनकार किया गया था, उसकी कॉपी 7 अगस्त 2024 से यानी करीब 5 महीने से राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) की वेबसाइट पर है। इस समझौते के मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (एमओए) के मुताबिक राजस्थान को 4102.6 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी मिलेगा।ईआरसीपी पीकेसी लंबे समय से राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि परियोजना के जरिए राजस्थान के हक का पानी मध्यप्रदेश को दिया जाएगा। भास्कर ने एमओयू का अध्ययन कर विपक्ष के इन दावों की सच्चाई पता की। पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

सबसे बड़ा सवाल: क्या राजस्थान के हक का पानी मध्यप्रदेश को दिया गया?
एमओयू पर हस्ताक्षर होने के बाद से ही विपक्ष दावा कर रहा है कि राजस्थान सरकार ने मध्यप्रदेश को राज्य के हक का पानी दिया है। जबकि एमओयू के अनुसार इस लिंक परियोजना से पूर्वी राजस्थान के 17 जिलों, मध्य प्रदेश के मालवा और चंबल क्षेत्र को पेयजल और औद्योगिक जल उपलब्ध होगा। दोनों राज्यों में 2.8 लाख हेक्टेयर या इससे अधिक भूमि की सिंचाई का प्रस्ताव है।

केंद्रीय जल आयोग पानी का आकलन करेगा, मिलकर तैयार करेगा डीपीआर
एमओयू के अनुसार संशोधित पार्वती-कालीसिंध चंबल (पीकेसी) लिंक की डीपीआर तैयार करने का काम दोनों राज्य और राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) मिलकर करेंगे।
डीपीआर तैयार करने और उसे अंतिम रूप देने में दोनों राज्य पूरा सहयोग करेंगे। केंद्रीय जल आयोग सभी परियोजनाओं के पानी का आकलन करेगा।
डीपीआर तैयार करने में दोनों राज्यों की भूमिका वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेजों में भी है।
डीपीआर तैयार करने में दोनों राज्यों की भूमिका वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेजों में भी है।

राजस्थान को कितना पानी मिलेगा, यह तय हो गया है।
राम जल सेतु परियोजना को लेकर राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच हुए समझौते एमओयू और एमओए सार्वजनिक कर दिए गए हैं। समझौता ज्ञापन (एमओए) के अनुसार राजस्थान को 4102.6 एमसीएम पानी मिलेगा। वहीं, मध्य प्रदेश को 3120.09 एमसीएम पानी मिलेगा।
पीकेसी लिंक की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) और दोनों राज्य मिलकर तैयार करेंगे। पीकेसी को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार एक सिस्टम बनाएगी।
राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच जल बंटवारे को लेकर हुए समझौतों के अनुसार जल ऑडिट और किसे कितना पानी मिलेगा, इसका भी निर्धारण किया जाएगा। इसके लिए एक अलग निकाय बनाया जाएगा। यह दोनों राज्यों के बीच जल का नियमन करेगा।

एमओयू में इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने का स्पष्ट उल्लेख
एमओयू में लिखा है कि भारत सरकार नदियों को आपस में जोड़ने के कार्यक्रम को राष्ट्रीय महत्व का मानती है। परियोजना अनुदान के तौर-तरीकों पर काम करेगी ताकि परियोजना को निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा किया जा सके।
एमओयू के अनुसार, भारत सरकार राजस्थान और मध्य प्रदेश से राय लेने के बाद ईआरसीपी के एकीकरण सहित चंबल बेसिन की नदियों को जोड़ने की योजना विकसित करेगी।
संशोधित पार्वती-कालीसिंध-चंबल (पीकेसी) लिंक नाम का यह लिंक देश में नदियों को जोड़ने की राष्ट्रीय योजना (एनपीपी) का हिस्सा होगा।

नदियों को जोड़ने पर विशेष समिति (एससीआईएलआर) की 20वीं बैठक में 13 दिसंबर, 2022 को इसे मंजूरी दी गई।

जल बंटवारे और अन्य बिंदुओं पर एमओयू के मुख्य प्रावधान

ईआरसीपी पीकेसी में जल बंटवारा नियंत्रण बोर्ड में दोनों राज्यों के बीच बनी सहमति और जल संसाधन परियोजनाओं के लिए जल शक्ति मंत्रालय द्वारा तय दिशा-निर्देशों के आधार पर तय होगा। ईआरसीपी पीकेसी की डीपीआर के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और केंद्र के बीच बाद में एक विशिष्ट एमओयू तैयार किया जाएगा। इसमें परियोजना का दायरा, जल विनिमय, लागत और लाभ का बंटवारा, जल का नियमन, प्रबंधन और नियंत्रण प्रणाली विकसित करने की व्यवस्था जैसे सभी बिंदु शामिल होंगे। संशोधित पीकेसी लिंक के तहत कुनो और पार्वती में दोनों राज्यों के बीच पानी का बराबर आदान-प्रदान होगा। कालीसिंध और ऊपरी चंबल बेसिन में विस्तृत आकलन के आधार पर पानी का बंटवारा किया जाएगा। चंबल घाटी विकास परियोजना को प्रभावित किए बिना दोनों राज्यों में पानी का बराबर आदान-प्रदान होगा।
दोनों राज्य आपसी सहमति के आधार पर कालीसिंध उप-बेसिन के साथ-साथ चंबल नदी की अन्य सहायक नदियों से अधिक पानी का उपयोग कर सकते हैं।
पीकेसी ईआरसीपी में मध्य प्रदेश को लाभ पहुंचाने वाले कारक, बांध और बैराज
मध्य प्रदेश में पार्वती नदी पर कुंभराज में प्रस्तावित बांध।

कुनो नदी और उसकी सहायक नदियों पर प्रस्तावित बांध
कुंडालिया बांध की ओर पानी स्थानांतरित करने के लिए कालीसिंध में लखंदर नदी पर लखंदर बैराज और कुंडलिया बांध स्थल के ऊपर प्रस्तावित रंजीत सागर बांध
कालीसिंध उप-बेसिन से गांधीसागर या ऊपरी चंबल उप-बेसिन में पानी छोड़ना
सात जल परियोजनाएं। इनमें सोनचिरी, रामवासा, बकोरा, पडुनिया, सेवरखेड़ी, सेकरी और सुल्तानपुरा परियोजनाएं शामिल हैं।

पीकेसी ईआरसीपी के तहत राजस्थान में ये बांध और बैराज
कुल नदी पर रामगढ़ बैराज, पार्वती नदी पर महलपुर बैराज, कालीसिंध नदी पर नवनेरा बैराज, मेज नदी पर मेज बैराज, बनास नदी पर राठौड़ बैराज। बनास नदी पर डूंगरी बांध, रामगढ़ बैराज से डूंगरी बांध तक जल अंतरण व्यवस्था। ईसरदा बांध और 26 तालाबों का जीर्णोद्धार कर ईआरसीपी से जोड़ा जाएगा। 

कांग्रेस भी कर रही है एमओयू सार्वजनिक करने की मांग 
पिछले साल 28 जनवरी को राजस्थान, मध्य प्रदेश और केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के बीच दिल्ली में पीकेसी की योजना और डीपीआर तैयार करने के लिए एमओयू हुआ था। इस योजना का नाम बदलकर अब राम जल सेतु लिंक परियोजना कर दिया गया है। दिसंबर में राजस्थान सरकार के जल संसाधन विभाग से सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत जानकारी मांगी गई थी। जल संसाधन विभाग ने तर्क दिया था कि इस परियोजना की लागत से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, इसलिए एमओयू की कॉपी और अन्य विवरण नहीं दिया जा सकता। सरकार ने आरटीआई की धारा 8 (1) का हवाला देते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया था। इसके तहत आरटीआई में ऐसी जानकारी नहीं दी जाती जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हो। जिससे राज्य के आर्थिक हितों को खतरा हो सकता हो। जिससे किसी की जान और सुरक्षा को खतरा हो सकता हो। जो न्यायालय की अवमानना ​​हो सकती हो। जिससे देश की एकता और अखंडता प्रभावित हो सकती है तथा जो सरकारी गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन हो सकता है।