Aapka Rajasthan

जननी सुरक्षा योजना की लाभार्थियों के साथ हो रहा बडा धोखा, एक्सक्लुसीव फुटेज में देखें चंद पैसों के लिए भटक रही प्रसूताएं

जननी सुरक्षा योजना की लाभार्थियों के साथ हो रहा बडा धोखा, एक्सक्लुसीव फुटेज में देखें चंद पैसों के लिए भटक रही प्रसूताएं
 
जननी सुरक्षा योजना की लाभार्थियों के साथ हो रहा बडा धोखा, एक्सक्लुसीव फुटेज में देखें चंद पैसों के लिए भटक रही प्रसूताएं

संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई जननी सुरक्षा योजना में लगातार अनियमितताएं सामने आ रही हैं। इस योजना के तहत प्रसव कराने वाली महिलाओं को मिलने वाली वित्तीय सहायता के लिए अब भी कई लाभार्थियों को अस्पतालों और स्वास्थ्य विभाग के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। हाल ही में यह गंभीर मामला प्रिंसिपल सेक्रेटरी हेल्थ के संज्ञान में आया, जिसके बाद उन्होंने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए संबंधित अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, कई जिलों से ऐसी शिकायतें मिली थीं कि महिलाओं को प्रसव के बाद तयशुदा राशि समय पर नहीं मिल रही। कुछ मामलों में तो लाभार्थियों को महीनों तक इंतजार करना पड़ता है, जिससे योजना का उद्देश्य ही अधूरा रह जाता है। हाल ही में एक स्वास्थ्य समीक्षा बैठक के दौरान जब यह मुद्दा प्रिंसिपल सेक्रेटरी के सामने आया, तो उन्होंने जननी सुरक्षा योजना के नोडल अधिकारी समेत अन्य ज़िम्मेदार अधिकारियों को फौरन तलब कर लिया।

बैठक में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में निर्देश दिए कि इस योजना से जुड़े सभी लंबित मामलों का जल्द से जल्द निस्तारण किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह की लापरवाही न केवल योजना की छवि को धूमिल करती है, बल्कि ज़रूरतमंद महिलाओं को मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान भी करती है।

प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने निर्देश दिए कि लाभार्थियों को अस्पतालों में भटकने से रोका जाए और ऑनलाइन पोर्टल पर पेंडेंसी को कम किया जाए। उन्होंने कहा कि जिस अधिकारी की लापरवाही सामने आएगी, उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाएगी।

जननी सुरक्षा योजना का मकसद है कि प्रसव संस्थागत हो ताकि मां और नवजात दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए लाभार्थी महिलाओं को नकद सहायता राशि दी जाती है। लेकिन अगर यह राशि समय पर न मिले, तो योजना का मकसद ही खत्म हो जाता है।

स्वास्थ्य विभाग की तरफ से बताया गया कि कई जगह तकनीकी दिक्कतों, दस्तावेज़ों की कमी या बैंक डिटेल्स के मेल न खाने के कारण भुगतान में देरी हो रही है। हालांकि, अब निर्देश मिलने के बाद इन सभी बाधाओं को दूर करने के प्रयास तेज़ कर दिए गए हैं।

यह मामला एक बार फिर दर्शाता है कि जमीनी स्तर पर योजनाओं का क्रियान्वयन उतना प्रभावी नहीं हो पा रहा है, जितना कागज़ों पर दिखाया जाता है। जरूरत है कि जिम्मेदार अधिकारी संवेदनशीलता दिखाते हुए ऐसे मामलों में तेजी से कार्रवाई करें, ताकि मातृत्व जैसे महत्वपूर्ण मोर्चे पर कोई महिला सरकारी सहायता से वंचित न रहे।