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राजस्थान सरकार का बड़ा फैसला! आमेर की अकबरी मस्जिद अब नहीं मानी जाएगी वक्फ संपत्ति, नए कानून में बदलेगी तस्वीर

 
राजस्थान सरकार का बड़ा फैसला! आमेर की अकबरी मस्जिद अब नहीं मानी जाएगी वक्फ संपत्ति, नए कानून में बदलेगी तस्वीर 

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई शुरू हो गई है। सुनवाई के दौरान कानून के अलग-अलग पहलुओं पर बहस हो रही है। लेकिन एक पहलू जिस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है, वह है ऐतिहासिक इमारतों पर वक्फ बोर्ड का दावा, जिसे नए कानून में खत्म कर दिया गया है। दरअसल, दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतें जैसे कुतुब मीनार, हुमायूं का मकबरा, पुराना किला और उग्रसेन की बावली वक्फ संपत्ति घोषित हैं। इतना ही नहीं, पिछले कुछ दिनों से विवादों में रहे औरंगजेब का मकबरा, आगरा और जयपुर की अकबरी मस्जिद भी वक्फ संपत्ति हैं। औरंगजेब के मकबरे को 1951 में संरक्षित इमारत घोषित किया गया था, लेकिन 1973 में इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया। जयपुर की अकबरी जामा मस्जिद को 1965 में वक्फ संपत्ति घोषित किया गया, जबकि यह 1951 से संरक्षित इमारत थी।

नए कानून के बाद वक्फ बोर्ड का दावा खत्म

कानून के मुताबिक, इन इमारतों पर वक्फ बोर्ड का दावा खत्म हो गया है, क्योंकि हाल ही में लागू वक्फ संशोधन अधिनियम की धारा 3 (डी) ने ऐसी सभी पूर्व घोषणाओं और अधिसूचनाओं को रद्द और अमान्य घोषित कर दिया है, जिनमें पहले से पहचानी गई संरक्षित इमारतों को वक्फ संपत्ति बताया गया है।

आमेर के राजा भारमल ने बनवाई थी अकबरी मस्जिद

अकबरी मस्जिद को 1968 में वक्फ संपत्ति घोषित किया गया था। जयपुर के आमेर इलाके की अकबरी मस्जिद और उसके पास स्थित कोस मीनार आज भी उस इतिहास की गवाह है, जब 1569 में मुगल बादशाह अकबर रणथंभौर विजय अभियान के लिए निकले थे और अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जियारत करने के लिए कुछ समय आमेर में रुके थे। आमेर के राजा भारमल ने उनके लिए मस्जिद बनवाई थी, जहां बादशाह ने नमाज अदा की थी। औरंगजेब के शासनकाल में इस मस्जिद का विस्तार किया गया था।

क्या कहते हैं मस्जिद के प्रबंधक?

अकबरी मस्जिद के मौजूदा काजी सैयद मुजफ्फर अली ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि हमारा परिवार 250 साल से इस मस्जिद में नमाज अदा करता आ रहा है। लेकिन आज भी मस्जिद को संरक्षण की जरूरत है। वक्फ बोर्ड ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। 1968 में दावा किया गया, लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। देवस्थान विभाग मात्र 50 रुपये प्रतिमाह देता है, आप खुद सोचिए कि इससे मस्जिद कैसे चल सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि अब सरकार इस ऐतिहासिक धरोहर को उसके मूल स्वरूप में संरक्षित रखेगी और इसकी जीर्ण-शीर्ण स्थिति को सुधारा जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट में चल रही है मामले की सुनवाई
बुधवार को जब नए कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई तो कानून का विरोध कर रहे पक्षों ने धारा 3 (डी) का हवाला देते हुए इस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई। एनडीटीवी को मिली जानकारी के मुताबिक एएसआई इन संरक्षित इमारतों को वापस अपने कब्जे में लेने की प्रक्रिया शुरू करने की योजना पर काम कर रहा है। हालांकि, कोर्ट में शुरू हुई सुनवाई पर उसकी भी नजर है क्योंकि अगर कोर्ट किसी तरह का अंतरिम आदेश देता है तो इसका असर वक्फ घोषित इन इमारतों पर भी पड़ सकता है।