Jaipur भारत में हर 500 बच्चों में से एक में ऑटिज्म देखा जाता है
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डॉ. दीपक पंचोली के अनुसार यह एक व्यवहार संबधी समस्या है। इसीलिए, जितनी जल्दी इसके लक्षणों की पहचान की जाएगी उसी आधार पर बच्चे के व्यवहार में बदलाव लाना भी संभव होता है। जैसे, ऑटिज़्म के लक्षणों के तौर पर बच्चे का गुमसुम रहना, किसी बात को कई बार दोहराना या रटते रहना और इमोशनल बॉंन्डिंग की कमी आदि होती है। इसी तरह शिशुओं के विकास में माइलस्टोन मानी जाने वाली एक्टिविटीज़ के आधार पर भी बच्चे में ऑटिज़्म की पहचान की जा सकती है। उन्होंने बताया कि
यदि कोई बच्चा अपना नाम पुकारने के बाद जवाब नहीं देता है, तो माता-पिता अक्सर सोचते हैं कि बच्चे को सुनने में तकलीफ होती है या वह सुनकर अनसुना करता है, तो यह वास्तव में ऑटिज़्म का संकेत हो सकता है। बच्चा अगर लड़का है तो उसमे लड़कियों की तुलना में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर होने की संभावना चार गुना ज्यादा होगी। ऐसे बच्चों को अधिक प्यार और दुलार की जरूरत होती है। इसलिए संयम बरतने की जरूरत होती है। ऐसे बच्चे के लिए चाइल्ड साइकोलोजिस्ट या पेडिअट्रिशन, व्यावसायिक चिकित्सा को कंसल्ट करे। ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों को पैकेटबंद ड्रिंक्स, चिप्स या किसी भी तरह के प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ देने से बचें। ऐसे बच्चों को स्पेशल स्कूल्स में भेजें। ऐसा माना जाता है कि 2 से 5 साल की उम्र के बच्चे इस स्थिति के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं हालांकि इस दिशा में अभी और अध्ययन किए जाने की जरूरत है।