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78 साल बाद भी अधूरा सपना: अनूपगढ़–बीकानेर वाया छत्तरगढ़ रेल मार्ग आज भी फाइलों में कैद

78 साल बाद भी अधूरा सपना: अनूपगढ़–बीकानेर वाया छत्तरगढ़ रेल मार्ग आज भी फाइलों में कैद
 
78 साल बाद भी अधूरा सपना: अनूपगढ़–बीकानेर वाया छत्तरगढ़ रेल मार्ग आज भी फाइलों में कैद

देश को आज़ादी मिले 78 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन भारत-पाक सीमा से सटे राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों की तस्वीर आज भी बदली नहीं है। अनूपगढ़ से बीकानेर वाया छत्तरगढ़ प्रस्तावित रेल मार्ग इसका सबसे बड़ा उदाहरण बन चुका है। यह रेल लाइन दशकों से केवल सरकारी फाइलों, सर्वे रिपोर्टों और नेताओं के आश्वासनों तक ही सीमित रह गई है। हालात ऐसे हैं कि यह अधूरा सपना कभी दादा ने देखा था और आज वही सपना पोता भी देख रहा है।

यह क्षेत्र सामरिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत-पाक सीमा से सटे अनूपगढ़ और छत्तरगढ़ जैसे इलाके आज भी रेलवे नेटवर्क से सीधे नहीं जुड़े हैं। रेल संपर्क न होने के कारण यहां के लोगों को शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा और व्यापार के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। कई बार आपात स्थितियों में यह दूरी जीवन और मौत के बीच का फर्क भी बन जाती है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस रेल मार्ग को लेकर समय-समय पर सर्वे कराए गए, प्रस्ताव बने और चुनावी मंचों से बड़े-बड़े वादे किए गए, लेकिन ज़मीनी स्तर पर काम कभी शुरू नहीं हुआ। हर सरकार के कार्यकाल में यह मुद्दा उठता है, लेकिन सत्ता बदलते ही यह फाइल फिर अलमारियों में बंद हो जाती है।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह रेल लाइन केवल यात्री सुविधा तक सीमित नहीं है, बल्कि सीमा सुरक्षा और सैन्य दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सीमावर्ती क्षेत्र में रेल कनेक्टिविटी मजबूत होने से सेना की आवाजाही आसान होगी और आपात हालात में त्वरित मदद संभव हो सकेगी। इसके अलावा, कृषि उत्पादों और स्थानीय व्यापार को भी बड़ा लाभ मिल सकता है।

अनूपगढ़ और छत्तरगढ़ क्षेत्र के किसान और व्यापारी बताते हैं कि रेल मार्ग के अभाव में उन्हें अपने उत्पाद सड़क मार्ग से दूर-दराज के मंडियों तक ले जाने पड़ते हैं, जिससे लागत बढ़ जाती है और मुनाफा घट जाता है। युवा वर्ग का कहना है कि रोजगार के अवसर सीमित होने के कारण उन्हें मजबूरी में पलायन करना पड़ता है।