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सिर्फ गौरवशाली इतिहास ही नहीं राजनैतिक विवाह सम्बन्धों के लिए भी जाना जाता है Amer Fort, वीडियो में जाने इतिहास के पन्नो की अनसुनी कहानी

सिर्फ गौरवशाली इतिहास ही नहीं राजनैतिक विवाह सम्बन्धों के लिए भी जाना जाता है Amer Fort, वीडियो में जाने इतिहास के पन्नो की अनसुनी कहानी
 
सिर्फ गौरवशाली इतिहास ही नहीं राजनैतिक विवाह सम्बन्धों के लिए भी जाना जाता है Amer Fort, वीडियो में जाने इतिहास के पन्नो की अनसुनी कहानी

आजादी से पहले राजस्थान में 19 रियासतें और 3 रियासतें हुआ करती थीं, जिन्हें मिलाकर राजपूताना (राजस्थान) बना। अलग-अलग रियासतों में अलग-अलग राजा हुआ करते थे। इनमें आमेर रियासत के राजा भारमल भी शामिल थे। राजा भारमल पहले हिंदू शासक थे, जिन्होंने अपनी बेटी का विवाह मुगल शासक से किया था। इससे पहले किसी हिंदू राजा ने मुस्लिम शासक से वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं किए थे। अपने राज्य को बचाने के लिए भारमल ने मुगल शासक अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली और अपनी बेटी का विवाह अकबर से करवा दिया।
भतीजों को हटाकर भारमल आमेर के राजा बने


राजा भारमल या बिहारीमल 1547 में आमेर के शासक बने। पहले यहां के राजा रतन सिंह हुआ करते थे, जो भारमल के भतीजे थे। भारमल ने अपने भतीजे को गद्दी से हटाने के लिए एक चाल चली। भारमल ने अपने दूसरे भतीजे यानी रतन सिंह के भाई आसकरण से कहा कि रतन सिंह विलासी स्वभाव के हैं। उन्हें हटाकर उन्हें ही शासक बन जाना चाहिए। अपने चाचा भारमल की सलाह पर चलते हुए आसकरण ने अपने भाई रतन सिंह की हत्या कर दी और खुद आमेर का राजा बन बैठा। कुछ समय बाद भारमल ने आसकरण को हत्यारा बताकर गद्दी से उतार दिया और खुद आमेर का राजा बन बैठा।

भारमल को आने लगीं परेशानियां
एक भतीजे की हत्या करवाकर और दूसरे को हत्यारा बताकर गद्दी पाने वाले राजा भारमल को राज्य बचाने के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। गद्दी से हटाए गए आसकरण ने जब शेरशाह सूरी के बेटे सलीम शाह से मदद मांगी तो सलीम शाह ने अपने सलाहकार हाजी पठान को सेना के साथ आमेर पर हमला करने के लिए भेजा। अपने राज्य को बचाने के लिए राजा भारमल ने हाजी पठान को बहुत सारा धन देकर राजी कर लिया और नरवर (मध्य प्रदेश) क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा देकर आसकरण को भी राजी कर लिया। इस तरह आमेर का युद्ध टल गया और भारमल का राज्य बच गया।

भारमल को मुसीबतों का सामना करना पड़ा

चूंकि कई साल पहले आमेर राज्य राजा पृथ्वी सिंह के पास था। पृथ्वी सिंह के पोते शुजा भी आमेर की गद्दी वापस पाना चाहते थे। शुजा मेवात के गवर्नर मिर्जा सरफुद्दीन के पास पहुंचे जो अकबर द्वारा नियुक्त गवर्नर थे। शुजा ने सफ़रुद्दीन से मदद मांगी और मिर्जा सफ़रुद्दीन मदद करने के लिए तैयार हो गए और आमेर की ओर कूच करने लगे। इस युद्ध को टालने के लिए आमेर के राजा भारमल ने सफ़रुद्दीन को बहुत सारा धन देने की पेशकश की और अपने तीन आदमियों को सफ़रुद्दीन के पास गिरवी रख दिया। जब सफ़रुद्दीन सहमत हो गए तो भारमल ने अपने बेटे जगन्नाथ, आसकरण के बेटे राज सिंह और जोबनेर के ठाकुर जगमाल के बेटे खगल को गिरवी रख दिया।

राजा भारमल की मुलाक़ात अकबर से मजनू खान के ज़रिए हुई
1556 में सलीम शाह के सलाहकार हाजी खान ने नारनौल के शासक मजनू खान की गद्दी हड़पने के लिए युद्ध की तैयारी की। जब हाजी खान की सेना नारनौल की ओर कूच करने लगी तो आमेर के राजा भारमल ने बीच-बचाव किया। चूंकि भारमल ने आमेर की चढ़ाई के दौरान हाजी खां को अपार धन देकर राजी कर लिया था, इसलिए उनके बीच अच्छे संबंध बन गए थे। हाजी खां और मजनू खां के बीच संधि होने के बाद भारमल के मजनू खां से भी संबंध अच्छे हो गए। उसी मजनू खां के जरिए आमेर के राजा भारमल की पहली बार अकबर से मुलाकात हुई थी।

भारमल ने राज्य बचाने के लिए अकबर की अधीनता स्वीकार की
जैसा कि पहले बताया गया कि शुजा बादशाह अकबर के गवर्नर सफरुद्दीन के जरिए आमेर की गद्दी हासिल करना चाहता था। अगर शुजा सफरुद्दीन के जरिए सीधे अकबर से मिलता तो भारमल को अकबर की मदद मिलते ही गद्दी छोड़नी पड़ती। अपने राज्य को बचाने के लिए भारमल सीधे अकबर से मिलना चाहता था। ऐसे में भारमल ने शुजा से पहले मजनू खां के जरिए बादशाह अकबर से मुलाकात की। जब बादशाह अकबर अजमेर शरीफ जा रहे थे तो रास्ते में कुछ दिनों के लिए सांगानेर में रुके। फिर आमेर के राजा भारमल 20 जनवरी 1562 को सांगानेर गए और अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।

अकबर और हरखू बाई का विवाह सांभर में हुआ
अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बाद आमेर के राजा भारमल को अपनी बेटी हरखू बाई का विवाह अकबर से करवाना पड़ा। अजमेर शरीफ से लौटते समय भारमल ने अपनी बेटी हरखू बाई का विवाह 6 फरवरी 1562 को सांभर में अकबर से कर दिया। यह पहला अवसर था जब किसी राजपूत राजा की बेटी का विवाह मुगल शासक से हुआ। अकबर से विवाह के बाद हरखू बाई को मरियम उज जमानी के नाम से जाना जाने लगा। राजा भारमल के इस निर्णय की कई इतिहासकारों ने निंदा की लेकिन कुछ इतिहासकारों और लेखकों ने राजा भारमल की प्रशंसा भी की। डॉ. त्रिपाठी और गोपीनाथ शर्मा जैसे इतिहासकारों ने राजा भारमल के इस निर्णय को उचित और दूरदर्शी कदम बताया था। अकबर और मरियम-उज-जमानी का पुत्र सलीम ही आगे चलकर जहांगीर के नाम से मुगल बादशाह बना।