बारिश से फसल नुकसान के आकलन में सियासी भेदभाव का आरोप, वीडियो में देखें जूली बोले जहां कमल वहीं खराबा करते हैं
राजस्थान में बारिश के दौरान हुई फसल खराबे के सरकारी आकलन को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। विपक्ष ने सरकार पर किसानों के साथ राजनीतिक भेदभाव करने के गंभीर आरोप लगाए हैं। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भाजपा सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा है कि फसल खराबे के आकलन और मुआवजे में सत्ताधारी दल के विधायकों वाले क्षेत्रों को तरजीह दी गई, जबकि विपक्षी विधायकों के क्षेत्रों के किसानों को उनके हक से वंचित किया गया।
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया के जरिए शायराना अंदाज में तंज कसते हुए सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए। उन्होंने लिखा, “बादल भी अब डरते हैं, बरसने से पहले पूछते हैं, नीचे विधायक ‘अपना’ है, या विपक्ष का ढूंढते हैं? जहां ‘कमल’ है, वहीं ‘खराबा’ सरकारी फाइलों में है, बाकी किसान तो बस, सियासत की चालों में है।”
जूली के इस व्यंग्यात्मक बयान को किसानों की पीड़ा और सरकारी तंत्र में कथित पक्षपात का प्रतीक माना जा रहा है। उनका कहना है कि प्राकृतिक आपदा जैसे मुद्दे पर भी राजनीति होना दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे किसानों में गहरा रोष है।
वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने सरकार पर और भी तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि बारिश से प्रभावित किसानों के साथ राजनीतिक षडयंत्र के तहत अन्याय किया गया है। डोटासरा का आरोप है कि जिन इलाकों में भाजपा के विधायक हैं, वहां फसल खराबा दिखाकर किसानों को मुआवजा दिया गया, जबकि कांग्रेस विधायकों वाले क्षेत्रों में नुकसान होने के बावजूद सरकारी रिकॉर्ड में खराबा नहीं दिखाया गया। उन्होंने कहा, “जिन किसानों को मुआवजा मिला, वह उनका हक था, लेकिन जिन किसानों का हक था, उन्हें इसलिए वंचित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने भाजपा के विधायक नहीं जिताए, बल्कि कांग्रेस के प्रतिनिधि चुने।”
डोटासरा ने यह भी कहा कि प्राकृतिक आपदा किसी पार्टी या विचारधारा को देखकर नहीं आती, लेकिन सरकार का रवैया ऐसा है मानो राहत और मुआवजा भी चुनावी नतीजों के आधार पर तय किया जा रहा हो। उन्होंने मांग की कि पूरे प्रदेश में निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से फसल खराबे का दोबारा सर्वे कराया जाए, ताकि किसी भी किसान के साथ अन्याय न हो।
कांग्रेस नेताओं का दावा है कि कई जिलों से ऐसी शिकायतें सामने आ रही हैं, जहां भारी बारिश से फसलें तबाह हो गईं, लेकिन प्रशासन ने या तो सर्वे ही नहीं किया या नुकसान को कम दिखाकर मुआवजा देने से बचा गया। इससे किसानों में नाराजगी बढ़ रही है और वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
उधर, भाजपा और सरकार की ओर से इन आरोपों को सिरे से खारिज किया जा सकता है, लेकिन विपक्ष का कहना है कि यदि सरकार पारदर्शी है तो उसे सर्वे रिपोर्ट और मुआवजा वितरण का पूरा ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आने वाले समय में और तूल पकड़ सकता है, क्योंकि राजस्थान में किसान पहले ही मौसम की मार और आर्थिक दबाव से जूझ रहे हैं।
