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सोनार दुर्ग के बाद राजस्थान की इस हवेली को देखने के लिए उमड़ता है पर्यटकों का जनसैलाब, जाने बनाने में क्यों लग गए 60 साल ?

सोनार दुर्ग के बाद राजस्थान की इस हवेली को देखने के लिए उमड़ता है पर्यटकों का जनसैलाब, जाने बनाने में क्यों लग गए 60 साल ?
 
सोनार दुर्ग के बाद राजस्थान की इस हवेली को देखने के लिए उमड़ता है पर्यटकों का जनसैलाब, जाने बनाने में क्यों लग गए 60 साल ?

राजस्थान का जैसलमेर अपने सुनहरे किले, समृद्ध इतिहास और राजसी वास्तुकला के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यहां का सोनार किला यानी जैसलमेर फोर्ट दुनिया के सबसे बड़े जीवित किलों में से एक है, जिसे देखने हर साल लाखों पर्यटक आते हैं। लेकिन अगर आप सोचते हैं कि जैसलमेर की पहचान केवल इस किले तक सीमित है, तो एक बार आपको पटवों की हवेली जरूर देखनी चाहिए, जो न सिर्फ जैसलमेर बल्कि पूरे राजस्थान की ऐतिहासिक और वास्तुशिल्पीय धरोहरों में से एक बेजोड़ उदाहरण है।


60 सालों में बनी एक अनोखी हवेली
पटवों की हवेली की खासियत यही नहीं कि यह दिखने में बेहद खूबसूरत है, बल्कि इसका इतिहास भी उतना ही रोमांचक है। यह वास्तव में पाँच हवेलियों का समूह है जिसे जैसलमेर के एक धनी व्यापारी गुमान चंद पटवा ने 19वीं सदी की शुरुआत में बनवाना शुरू किया था। उनके पाँच बेटे थे और हर बेटे के लिए एक हवेली का निर्माण कराया गया। पहली हवेली का निर्माण कार्य वर्ष 1805 में शुरू हुआ और पूरी संरचना को पूर्ण रूप से बनने में लगभग 60 साल का लंबा समय लग गया।इसमें करीब 30 साल तो केवल डिजाइन तैयार करने में ही लग गए थे। उस समय वास्तुकला की बारीकियों और कारीगरी के उच्चतम स्तर को ध्यान में रखते हुए हर दीवार, दरवाजे, बालकनी और खिड़की को बड़ी संजीदगी से बनाया गया। बाद के वर्षों में इन पाँचों हवेलियों का निर्माण संपन्न हुआ। यही कारण है कि इस हवेली को बनवाने में तीन पीढ़ियों का समय लग गया और यह जैसलमेर की सबसे शानदार और जटिल हवेलियों में गिनी जाती है।

क्या है पटवों की हवेली की खास बात?
यह हवेली न केवल अपनी भव्यता के लिए जानी जाती है, बल्कि इसकी दीवारों पर की गई कांच की कारीगरी और बारीक नक्काशी इसे विशेष बनाती है। हवेली की दीवारों पर प्रकृति, पेड़-पौधे, जानवरों और ऐतिहासिक घटनाओं के चित्र उकेरे गए हैं, जिन्हें देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो इतिहास स्वयं बोल रहा हो। हवेली में 60 से भी अधिक बालकनियाँ हैं, जिनके खंभों और मेहराबों पर मंत्रमुग्ध कर देने वाली नक्काशी की गई है।खास बात यह है कि हर दरवाजा, खिड़की और छज्जे पर सोने, चांदी और ब्रोकेड के काम की झलक मिलती है। ऐसी नाजुक और महीन कारीगरी आज के दौर में दुर्लभ मानी जाती है। इसकी बारीकी और सौंदर्य को देखते हुए पर्यटक यहां घंटों तक रुकते हैं और तस्वीरें खींचते हैं।

पर्यटन की दृष्टि से बेहद लोकप्रिय
पटवों की हवेली जैसलमेर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुकी है। सोनार किले के बाद सबसे ज्यादा भीड़ इसी हवेली में देखी जाती है। हर साल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कोने-कोने से हजारों सैलानी इस स्थापत्य कला के चमत्कार को देखने आते हैं। हवेली का एक हिस्सा अब संग्रहालय में बदल दिया गया है, जहां पर्यटक राजस्थानी जीवनशैली, पुराने बर्तन, आभूषण, कपड़े और दस्तावेज़ों को देख सकते हैं।यह हवेली हर दिन सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक पर्यटकों के लिए खुली रहती है। इसका प्रवेश शुल्क भी काफी सामान्य है — भारतीय पर्यटकों के लिए मात्र 20 रुपए प्रति व्यक्ति। यहां आकर पर्यटक केवल इतिहास का अध्ययन ही नहीं करते, बल्कि राजस्थान की पारंपरिक जीवनशैली से भी रूबरू होते हैं।

समय की मार और संरक्षण की चुनौती
हालांकि समय के साथ हवेली की भव्यता पर असर पड़ा है। आक्रामक जलवायु, अतिक्रमण और रख-रखाव की कमी ने इसकी सुंदरता को कुछ हद तक नुकसान पहुंचाया है। लेकिन इसके बावजूद यह हवेली आज भी अपने वैभव की कहानी बयां करती है और हर साल पर्यटन विभाग द्वारा इसके संरक्षण की दिशा में प्रयास किए जाते हैं।

कैसे पहुंचें पटवों की हवेली?
जैसलमेर तक पहुँचने के लिए हवाई, रेल और सड़क तीनों मार्गों से सुविधाजनक साधन उपलब्ध हैं:
हवाई मार्ग: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जोधपुर में है, जो यहां से लगभग 300 किलोमीटर दूर स्थित है।
रेल मार्ग: जैसलमेर रेलवे स्टेशन हवेली से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां से ऑटो, टैक्सी और सिटी बस से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग: जैसलमेर राजस्थान और अन्य राज्यों के प्रमुख शहरों से सीधे जुड़ा हुआ है। निजी गाड़ी या बस द्वारा भी यहाँ पहुँचना सरल है।

कब जाएं?
जैसलमेर और पटवों की हवेली घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहावना रहता है और रेगिस्तान की गर्मी से राहत मिलती है। सर्दियों में यहाँ पर्यटकों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है।

क्या खाएं?
पटवों की हवेली के पास स्थित स्थानीय होटलों और भोजनालयों में दाल बाटी चूरमा, मुर्ग-ए-सब्ज, मसाला रायता जैसे पारंपरिक राजस्थानी व्यंजन मिलते हैं, जो सैलानियों को स्वाद और संस्कृति दोनों का अनुभव कराते हैं।