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Jaipur में नाटक में बच्चों के सामने दुर्व्यवहार,अभिनेता अमोल पालेकर भड़के

 
Jaipur में नाटक में बच्चों के सामने दुर्व्यवहार,अभिनेता अमोल पालेकर भड़के

जयपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर में रविवार को हुए एक्टर अमोल पालेकर के नाटक में गालियों का इस्तेमाल किया गया। इस दौरान नाटक देखने बच्चे भी आए हुए थे। गालियां सुनते ही उनके माता-पिता असहज हो गए। दरअसल, नाटक की शुरुआत मुंबई पुलिस के इमरजेंसी कंट्रोल रूम में बज रही फोन की घंटी से होती है। शाम होते ही कंट्रोल रूम में एसीपी अशोक दंडवते (अमोल पालेकर) की एंट्री होती है। इतने में इमरजेंसी कॉल आता है- चारों तरफ सन्नाटा है और मेरे पर हमला हुआ है। मैं कार में हूं और एक महिला ने मुझे चाकू दिखाकर मेरा लैपटॉप चुरा लिया है। पुलिस- महिला कार के अंदर कैसे आई? कार का नंबर बताओ और कितने में सौदा किया था। पीड़ित- गाली देते हुए... मुझ पर हमला हुआ है, मेरी शिकायत लिख और पुलिस भेज। पुलिस- गाड़ी चला सकता है ना, यूटर्न ले और जवाहर नगर थाने चला जा... (गाली)। मौका था अभिनेता और निर्देशक अमोल पालेकर के नाटक 'कुसूर' के मंचन का। इस दौरान कई बार आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया गया।

दर्शक ज्योति प्रकाश ने कहा- ये बोलचाल की भाषा है। हकीकत दिखाने के लिए डायरेक्टर ने यह प्रयोग किया है। वहीं राजेश ने कहा, गाली कैसे किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा हो सकती है। नाटक देखने आई अक्षु ने कहा- अगर थियेटर में भी गालियां सुनने को मिलेंगी तो फिर थियेटर और ओटीटी में क्या फर्क रह जाएगा। अगर जरूरी था तो पहले दर्शकों को चेतावनी देनी चाहिए थी। नाटक देखने बच्चे भी आए हुए हैं। जब निर्देशक अमोल पालेकर से इस विषय में बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा- थक गया हूं, बात नहीं कर सकता। उन्होंने किसी भी सवाल का जवाब देने से मना कर दिया। नाटक का मंचन रविवार की शाम राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में किया गया। पालेकर 25 साल बाद हिंदी नाटक 'कुसूर' (द मिस्टेक) के साथ थियेटर की ओर लौटे हैं। इसे इनकी पत्नी संध्या गोखले ने लिखा और सह- निर्देशन भी किया है।

परिवारों में घरेलू हिंसा बयां करती मुंबई पुलिस के इमरजेंसी कंट्रोल रूम की कहानी

नाटक के संवाद कुछ इस तरह हैं... मुंबई पुलिस के कंट्रोल रूम से एक पात्र एसीपी अशोक दंडवते का कॉल आता है- पुल से नीचे उतरो कावेरी, तुम्हें सजा नहीं होगी। तुमसे अनजाने में हत्या हुई है। सभी तुम्हारे डिप्रेशन के बारे में जानते हैं। कावेरी एक पात्र- खुद की औलाद को ही मारा है मैंने। वो तो लौटकर नहीं आएगी न, फिर क्या हक है मुझे जीने का। दंडवते- उस नजरिए से देखें तो फिर मुझे.. मैंने जानबूझ कर मारा था एक व्यक्ति को। उसके पास हथियार नहीं था, ये जानते हुए भी मैंने उसे मारा था। कावेरी- क्या खत्म कर दिया...? हां, लेकिन तुम तो पुलिस हो न। दंडवते- मैं पुलिस हूं लेकिन किसी को खत्म करने का हक नहीं है मुझे। कभी तो कुसूर कबूल करना, यही तो अहमियत की बात होती है।