15वीं सदी में बना ऐसा टॉवर जिसे बनाने में लगे 10 साल, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जाने विजय स्तम्भ की वो बातें जो नहीं जानते आप
राजस्थान के ऐतिहासिक शहर चित्तौड़गढ़ की धरती वीरता, शौर्य और बलिदान की गाथाओं से ओतप्रोत है। इसी धरती पर एक ऐसा स्मारक स्थित है, जो न केवल स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि भारतीय इतिहास में विजय और स्वाभिमान का प्रतीक भी है - विजय स्तंभ। इसे देखने हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं, लेकिन इसके इतिहास, निर्माण और स्थापत्य कला से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं।
10 वर्षों तक चला निर्माण, स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण
विजय स्तंभ का निर्माण महाराणा कुंभा ने 15वीं शताब्दी में करवाया था। यह स्मारक 1448 ई. में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ था। इसका निर्माण कार्य लगभग 10 वर्षों तक चला। यह स्तंभ मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर मेवाड़ की सेना की विजय की स्मृति में बनाया गया था। इसका उद्देश्य केवल एक स्मृति चिन्ह बनाना ही नहीं था, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को वीरता और देशभक्ति का संदेश देना भी था।
37.19 मीटर ऊँचा, 9 मंज़िला स्तंभ
विजय स्तंभ लगभग 37.19 मीटर (122 फीट) ऊँचा और 9 मंज़िला है। इसका निर्माण राजस्थानी स्थापत्य शैली में हुआ है। पूरी इमारत में बलुआ पत्थर और सफ़ेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है। संकरी लेकिन कलात्मक सीढ़ियों से अंदर जाया जा सकता है। ऊपर पहुँचने के बाद जो नज़ारा दिखता है, वह किसी रोमांच से कम नहीं है।
पत्थरों पर देवी-देवताओं की आकृतियाँ उकेरी गई हैं
इस स्तंभ की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं की हज़ारों मूर्तियाँ और चित्र उकेरे गए हैं, जिनमें ख़ास तौर पर भगवान विष्णु के दशावतार, देवी दुर्गा, भगवान गणेश और अन्य देवी-देवताओं के स्वरूप दिखाई देते हैं। इसके अलावा, शास्त्रीय नृत्य मुद्राएँ, पौराणिक कथाएँ और जीवन के विभिन्न पहलुओं को भी सूक्ष्म शिल्पकला के साथ दर्शाया गया है।
वास्तुकला में वैज्ञानिक समझ दिखाई देती है
विजय स्तंभ का निर्माण इस तरह से किया गया है कि यह सैकड़ों वर्षों से बिना किसी बड़ी क्षति के खड़ा है। इसकी संरचना इतनी मज़बूत और वैज्ञानिक है कि यह हल्के भूकंपों और जलवायु परिस्थितियों को झेलते हुए भी आज भी अक्षुण्ण खड़ी है। स्तंभ के निर्माण में भार-संतुलन, वायु-संचार और प्रकाश व्यवस्था का भी ध्यान रखा गया है, जो उस युग की उन्नत वास्तुकला और इंजीनियरिंग का एक उदाहरण है।
शिलालेखों में छिपा इतिहास
स्तंभ की दीवारों पर संस्कृत और प्राचीन नागरी लिपि में शिलालेख अंकित हैं, जो मेवाड़ की वंशावली, विजय गाथा और महाराणा कुंभा के योगदान का विस्तार से वर्णन करते हैं। यह स्तंभ न केवल एक युद्ध विजय की कहानी कहता है, बल्कि उस काल के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिदृश्य को भी दर्शाता है।
रात में विशेष प्रकाश व्यवस्था
आज के समय में विजय स्तंभ को संरक्षित रखने के लिए रात में विशेष प्रकाश व्यवस्था की गई है। जब प्रकाश में नहाया यह स्तंभ चमकता है, तो यह दृश्य वाकई रोमांचक होता है। पर्यटक रात्रिकालीन लाइट एंड साउंड शो के माध्यम से मेवाड़ के गौरव से भी परिचित होते हैं।
विजय स्तंभ का सांस्कृतिक महत्व
यह स्मारक न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि मेवाड़ की देशभक्ति, धर्मनिष्ठा और वीरता का प्रतीक है। यह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता है कि कैसे कठिन से कठिन समय में भी आत्म-सम्मान और साहस बनाए रखा जा सकता है।
पर्यटन की दृष्टि से विशेष
चित्तौड़गढ़ किला और विजय स्तंभ, दोनों ही राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गिने जाते हैं। इतिहास प्रेमियों के लिए यह स्थान किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है। यहाँ आकर पर्यटक न केवल एक स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना देखते हैं, बल्कि भारतीय इतिहास के सुनहरे पन्नों को भी महसूस करते हैं।
