इतिहास और गणित के मेल से बना चमत्कार, वीडियो में जाने कैसे काम करता है जयपुर का जंतर मंतर और इसके 19 यंत्र
जयपुर स्थित जंतर मंतर ना सिर्फ भारत की वैज्ञानिक विरासत का गौरव है, बल्कि यह वास्तुकला, खगोलशास्त्र और गणित का अद्भुत संगम भी है। यह भारत के उन ऐतिहासिक स्थलों में से एक है जो आज भी समय की सटीक गणना, ग्रह-नक्षत्रों की चाल और खगोलीय गतिविधियों को समझने के लिए उपयोगी है। 18वीं सदी में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित इस वेधशाला को यूनेस्को ने विश्व धरोहर सूची में भी शामिल किया है।
कैसे बना यह खगोलीय चमत्कार?
सन् 1724 से 1734 के बीच, सवाई जय सिंह द्वितीय ने पांच प्रमुख खगोलीय वेधशालाओं का निर्माण कराया — दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, वाराणसी और मथुरा में। इनमें से जयपुर का जंतर मंतर सबसे बड़ा और संरचनात्मक दृष्टि से सबसे जटिल माना जाता है। महाराजा जय सिंह स्वयं खगोलशास्त्र और गणित के विद्वान थे। वे भारतीय ज्योतिषीय परंपराओं के साथ-साथ यूरोपीय खगोलशास्त्र से भी प्रभावित थे। वे खगोलीय गणनाओं की अधिक सटीकता के लिए बड़े आकार के यंत्रों की आवश्यकता को समझते थे, इसलिए जंतर मंतर के यंत्रों को बहुत विशाल आकार में बनाया गया।
19 यंत्रों का विज्ञान और उद्देश्य
जयपुर के जंतर मंतर में कुल 19 खगोलीय यंत्र हैं, जो विभिन्न खगोलीय और ज्योतिषीय गणनाओं के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। इनमें से प्रत्येक यंत्र का विशिष्ट कार्य और वैज्ञानिक आधार है।
सम्राट यंत्र – यह सूर्य की छाया से समय मापने वाला सबसे बड़ा यंत्र है। इसकी ऊंचाई करीब 27 मीटर है और यह मात्र 2 सेकंड की सटीकता से समय बता सकता है।
जयप्रकाश यंत्र – यह दो अर्धगोलाकार संरचनाएं हैं, जिनकी सतह पर आकाशीय पिंडों की स्थिति को निर्धारित किया जा सकता है। इसमें खगोलीय निर्देशांकों की गणना होती है।
राम यंत्र – यह यंत्र ऊंचाई (altitude) और दिशा (azimuth) को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है।
नाड़ीवलय यंत्र – इसे यंत्रों का घड़ीघर भी कहा जा सकता है। यह दिन और रात को विभाजित करने और समय निर्धारण के लिए उपयोगी है।
छाया यंत्र (Shadow Instruments) – इनका उपयोग ग्रहण, विषुव और अयनांत जैसे खगोलीय घटनाओं की जानकारी के लिए होता है।
दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र – यह खगोलीय पिंडों की ऊंचाई और कोण मापने में मदद करता है।
कृष्णवलय यंत्र, दिगंश यंत्र, उत्तानांश यंत्र, कपाला यंत्र, आदि अन्य यंत्र हैं जो विभिन्न कोणीय मापों, ग्रहों की स्थिति, नक्षत्रों की चाल और पंचांग गणनाओं के लिए बनाए गए हैं।
गणित और खगोलशास्त्र की यथार्थता
जंतर मंतर की सभी संरचनाएं त्रिकोणमिति, ज्यामिति और समय मापन के सिद्धांतों पर आधारित हैं। इसकी संरचना इस तरह से की गई है कि सूर्य की किरणें यंत्रों की सतह पर पड़कर सटीक छाया निर्मित करती हैं, जिससे समय और ग्रहों की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। सटीकता इतनी है कि आज भी आधुनिक उपकरणों से इसकी गणनाएं मेल खाती हैं।
वास्तुकला और निर्माण शैली
जंतर मंतर की रचना में स्थानीय पत्थर और संगमरमर का उपयोग हुआ है। यंत्रों को इतने विशाल आकार में इसीलिए बनाया गया ताकि उनके द्वारा दी गई गणनाएं अधिक स्पष्ट और सटीक हों। हर यंत्र का झुकाव, आकार और दिशा खगोलीय गणनाओं के अनुरूप तय किया गया है।
आज की उपयोगिता
आज भी खगोलविद, वास्तुविद, छात्र और पर्यटक इस स्थान पर आते हैं ताकि वे वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विरासत को करीब से देख सकें। यह स्थल स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के छात्रों के लिए भी अध्ययन का केंद्र बना हुआ है।
