Sheetla Mata's Fair 2022: आज शीतलाष्टमी पर चाकसू में शील डूंगरी पर लगेंगा शीतला माता का लक्खी मेला, कल देर रात हुआ शुरू
जयपुर न्यूज डेस्क। राजस्थान की बड़ी खबर में आपको बता दें कि आज शीतलाष्टमी के मौके पर कलेक्टर की तरफ से अवकाश घोषित किया गया है। आज चाकसू स्थित शील डूंगरी पर शीतला माता का लक्खी मेला कल देर रात से शुरू हो गया है। इसके साथ ही यहां श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है। मेले को लेकर मन्दिर ट्रस्ट समिति एवं प्रशासन की ओर से चाकचौबंद व्यवस्था की गई है। पिछले दो साल से कोरोना के चलते इस मेले का आयोजन नहीं किया जा सका है। लेकिन इस बार पूरी भव्यता के साथ इस मेले का आयोजन किया जा रहा है। यहां लगने वाला वार्षिक लक्खी मेला सांस्कृतिक संगम और सामाजिक समरसता का संदेश देता है।
राजधानी जयपुर से करीब 50 किमी की दूरी पर स्थित शील डूंगरी पर प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण अष्टमी को शीतला माता का मेला लगता है और इस दो दिवसीय मेले में लाखों की संख्या में लोग आते है। कल देर रात शुरू हुए इस लक्खी मेला परिधी क्षेत्र में शांति व्यवस्था के लिए जिला प्रशासन की ओर से मेला की सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी संख्या में पुलिस सुरक्षा बल व सेक्टर प्रभारी तैनात किए हैं। इस बार कोरोना से राहत मिलने के बाद यहां मेले में श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ आने की संभावना भी है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु माता की चौखट पर मत्था टेकने आते हैं और मनोतियां मांगते हैं। मेले में श्रद्धालुओं को माता के दर्शन करने में किसी तरह की परेशानी न हो और हर गतिविधियों पर नजर रखने के लिए मन्दिर व मेला परिधी क्षेत्र में 20 क्लोजर सीसीटीवी कैमरे लगाकर मॉनिटरिंग की जा रही है।
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जयपुर राजदरबार की ओर से निर्मित यह मंदिर क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। आज भी यहां पहला भोग राजघराने की ओर से भेजे गए प्रसाद से ही लगाया जाता है। मान्यता है कि गर्मी की बीमारियों से माता छुटकारा दिलाती हैं। शीतला माता एक पौराणिक देवी मानी जाती हैं। मान्यता है कि व्यक्ति किसी भी वर्ग का हो शीतला माता उसके घर अवश्य आती हैं। गधा इनका वाहन है, इनके एक हाथ में झाड़ू, दूसरे हाथ में जल से भरा हुआ कलश एवं सिर पर सूप है। इनकी मुखाकृति गम्भीर है। पौराणिक शिलालेखों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण जयपुर के भूतपर्व महाराजा माधोसिंह ने करवाया था। तब से आज तक यहां पहला भोग राजदबार से माता को चढ़ता है। शीतला माता को बच्चों की संरक्षिका माना जाता है और इसी रूप में इन्हें पूजते हैं। मेले में आसपास ही नहीं अपितु राज्य के हर हिस्से से लोग माता के दशर्न करने पहुंचते हैं। श्रद्धालु नाच-गाकर एवं रात्रि जागरण करके माता को रिझाते हैं।