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Jaipur जेकेके में राजस्थान की फ्रेस्को पेंटिंग व उसकी तकनीकों एवं विशेषताओं के बारे में हुई चर्चा, खास बातें बताई गई

 
Jaipur जेकेके में राजस्थान की फ्रेस्को पेंटिंग व उसकी तकनीकों एवं विशेषताओं के बारे में हुई चर्चा, खास बातें बताई गई

जयपुर न्यूज़ डेस्क,'फ्रेस्को पेंटिंग्स ऑफ राजस्थान' सब्जेक्ट पर चर्चा का आयोजन जवाहर कला केंद्र (जेकेके) में किया गया। ये प्रोग्राम वर्चुअल जेकेके के फेसबुक पेज पर दिखाया गया। फ्रेस्को पेंटिंग्स के विशेषज्ञ एवं प्रसिद्ध कलाकार डॉ नाथूलाल वर्मा और समदर सिंह खंगारोत 'सागर' इस संवाद कार्यक्रम में शामिल हुए। चर्चा के दौरान चित्रकला में फ्रेस्को पेंटिंग व उसकी तकनीकों एवं विशेषताओं के बारे में विस्तार से चर्चा की गई। अब्दुल लतीफ उस्ता ने सेशन का संचालन किया।

भित्ति चित्रकला के बारे में बताने के साथ फ्रेस्को पेंटिंग्स के विशेषज्ञ एवं प्रसिद्ध कलाकार डॉ नाथूलाल वर्मा ने शुरूआत की। उन्होंने बताया कि भित्ति चित्रकला यानि दीवार पर किसी भी माध्यम से की जाने वाली प्राचीन कला है। चट्टानों और गुफाओं की दीवारों पर बने चित्रों के रूप में हमें देखने को इसके उदाहरण मिलते हैं। भित्ति चित्रकला में दीवार को मुख्य अंग माना जाता है। वहीं,किसी भवन की दीवार पर ताजा या गीले चूने के प्लास्टर पर किया जाने वाला चित्रण फ्रेस्को है ऐसा  फ्रेस्को पेंटिंग के बारे में उन्होंने बताया।

फ्रेस्को पेंटिंग की 2 तकनीकें हैं- बुनो फ्रेस्को और सेको फ्रेस्को। बुनो फ्रेस्को जिसे आला-गीला पद्धति भी कहा जाता है,  गीले धरातल पर इसमें ही चित्रण और रंग किया जाता है। फिर इसे विशेष टूल्स के माध्यम से पीटा जाता है, जिससे रंग प्लास्टर में ही समाहित हो जाता है। यह पद्धति सबसे स्थायी और टिकाऊ मानी जाती है।  इसमें बुनो फ्रेस्को की तरह ही भित्ति को तैयार कर उसे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। फिर चित्रकार उसमें कभी भी रंग भर सकता है। इसमें खनिज के साथ ही रसायनिक, वनस्पति रंगो का इस्तेमाल किया जाता है। इन रंगों को पक्का करने के लिए इसमें गोंद भी मिलाया जाता है। ये तकनीक बूनो फ्रेस्को से कम स्थायी मानी जाती है। इस तकनीक के कार्य हमें मंदिरों, महलों या हवेलियों में देखने को मिलता है ऐसा वहीं सेको फ्रेस्को के बारे में उन्होंने बताया।