7 बच्चों की जलती चिता, रोते बिलखते लोग..जानिए राजस्थान के झालावाड़ में हादसे के बाद अब कैसे हैं हालात?
राजस्थान के झालावाड़ में स्कूल की छत गिरने से मची तबाही ने 7 परिवारों को कभी न भूलने वाला दर्द दे दिया। बच्चे पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनने, अपनी ज़िंदगी संवारने का सपना लेकर स्कूल पहुँचे थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि मौत उनका इंतज़ार कर रही है। एक ही झटके में 7 घरों के चिराग बुझ गए। हादसे के बाद झालावाड़ में कितना गमगीन और मार्मिक माहौल था। हादसे में जान गंवाने वाले बच्चों की अंतिम यात्रा, उनकी जलती चिताएँ, रोते-बिलखते माता-पिता... भगवान ऐसा दर्दनाक मंज़र किसी को न दिखाए।
चश्मदीदों ने बयां किया हादसा
VIDEO | Rajasthan: Last rites of children killed in school building collapse incident being performed at Piplodi village in Jhalawar district.#RajasthanNews #jhalawarnews
— Press Trust of India (@PTI_News) July 26, 2025
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एक बच्ची ने इस हादसे को अपनी आँखों से देखा और मीडिया से बात करते हुए अपना दर्द बयां किया। उसने बताया कि वह सफाई कर रही थी। स्कूल में बच्चों की चहल-पहल थी। कुछ बच्चे क्लास के अंदर बैठे थे। अचानक पत्थर गिरने की आवाज़ें आने लगीं। एक-दो पत्थर गिरे तो बच्चे दौड़कर टीचर को बताने लगे। टीचर के आते ही छत गिर गई। बच्चे चीखने-चिल्लाने लगे और इधर-उधर भागने लगे। वह भी स्कूल से भाग गई। चीख-पुकार सुनकर गाँव वाले भी दौड़े चले आए।
क्या मुआवज़ा घर का चिराग लौटा पाएगा?
VIDEO | Rajasthan: Heart wrenching scenes in Jhalawar district's Piplodi village as family members perform last rites of children killed in school building collapse incident.#RajasthanNews #JhalawarNews
— Press Trust of India (@PTI_News) July 26, 2025
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राजस्थान के झालावाड़ ज़िले के पिपलोदी गाँव में सोमवार को जो हुआ, वह किसी एक घर का दर्द नहीं, बल्कि पूरे गाँव की आत्मा पर आघात है। सरकारी स्कूल की जर्जर छत ताश के पत्तों की तरह ढह गई और उसके नीचे दब गए 7 मासूम सपने, 7 ज़िंदगियाँ, घरों की 7 धड़कनें, जो मलबे में दबकर दम तोड़ गईं। बेशक, राज्य सरकार ने मुआवज़े और नौकरी का ऐलान किया है, लेकिन यह हादसा एक सवाल बन गया है, और हर ज़िम्मेदार व्यक्ति इसका जवाब माँग रहा है। क्या मुआवज़ा घरों में रोशनी लौटा पाएगा? आँगन सूने हो गए, किलकारियाँ थम गईं।
आज हुआ 7 बच्चों का अंतिम संस्कार
शुक्रवार को झालावाड़ के मनोहर थाना क्षेत्र के पिपलोदी गाँव में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से मलबे में दबे 7 मासूम बच्चों का आज अंतिम संस्कार किया गया। जिन माता-पिता ने उसे अपने कंधों पर स्कूल भेजा था, वही कांपते हाथों से उसके अर्थ को अपने कंधों पर उठाए नज़र आए। गुणी देवी कहती हैं कि दो बच्चे थे, मीना पाँचवीं में और कान्हा पहली में, दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं। 24 घंटे पहले वे हँसते-हँसते, हाथ में किताबें लिए घर से निकले थे, लेकिन अब उनके नाम पर कब्रें बन चुकी हैं। वह खुद कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ाकर कुछ बनाना चाहती थीं, लेकिन हादसे ने सब कुछ खत्म कर दिया।
राहत पहुँचने में देरी का आरोप
ग्रामीणों के अनुसार, हादसे के बाद मदद पहुँचने में देरी हुई। पत्थरों के नीचे दबे बच्चे चीखते-चिल्लाते रहे और जब तक प्रशासन की राहत पहुँची, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। ग्रामीणों ने अपने हाथों से मलबा हटाकर बच्चों को बाहर निकाला, लेकिन किस्मत की दीवारें कब की गिर चुकी थीं। प्रशासन मौके पर पहुँचा, कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ और एसपी अमित बुडानिया ने पीड़ित परिवारों से मिलकर उन्हें सांत्वना दी। सरकार की ओर से 10 लाख का मुआवज़ा, एक नौकरी और स्कूल के पुनर्निर्माण की घोषणा की गई है। कहा गया था कि स्कूल की कक्षाओं का नाम हादसे में जान गंवाने वाले मासूम बच्चों के नाम पर रखा जाएगा।
ग्रामीणों ने व्यवस्था पर उठाए सवाल
सरकार की ओर से हर संभव मदद की जा रही है। हादसे के ज़िम्मेदारों पर कार्रवाई शुरू हो गई है। स्कूल की इमारत का पुनर्निर्माण भी होगा, लेकिन सवाल यह है कि क्या इन घोषणाओं से वे मासूम बच्चे वापस आ पाएँगे? क्या हर बार हादसे के बाद व्यवस्था जागेगी? क्या ग्रामीण, गरीब, आदिवासी बच्चों की ज़िंदगी इतनी सस्ती है कि जर्जर स्कूलों में पढ़ना ही उनकी नियति बन जाएगी। गाँव में चूल्हा नहीं जला। हर आँगन में एक रुदाली बैठी है। यह सिर्फ़ एक हादसा नहीं, बल्कि मासूमों के खून से सना व्यवस्था की लापरवाही पर लिखा एक काला दस्तावेज़ है।
