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3.2 अरब साल पुरानी अरावली पर्वतमाला, वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखे इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्त्व

3.2 अरब साल पुरानी अरावली पर्वतमाला, वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखे इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्त्व
 
3.2 अरब साल पुरानी अरावली पर्वतमाला, वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखे इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्त्व

अरावली पर्वत श्रृंखला भारत की भूगर्भीय धरोहरों में से एक है, जिसकी महत्ता न केवल भौगोलिक दृष्टि से है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्वत श्रृंखला भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक मानी जाती है, जिसका निर्माण लगभग 3.2 अरब वर्ष पूर्व हुआ था। यह पचास करोड़ वर्ष पुरानी हिमालय पर्वत श्रृंखला से भी कई गुना अधिक पुरानी है। अरावली का नाम संस्कृत शब्द "अरवली" से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है - "पर्वतों की श्रृंखला"।

कहां से कहां तक फैली है अरावली पर्वतमाला?

अरावली पर्वतमाला उत्तर-पश्चिम भारत में फैली हुई है। यह राजस्थान के पश्चिमी हिस्से से शुरू होकर हरियाणा, दिल्ली होते हुए गुजरात के साबरकांठा जिले तक जाती है। इसकी कुल लंबाई लगभग 692 किलोमीटर मानी जाती है। राजस्थान में यह श्रृंखला अजमेर, माउंट आबू, सिरोही, उदयपुर, जयपुर और अलवर जिलों से होकर गुजरती है। यह पर्वत न केवल भूगोल की दृष्टि से बल्कि जलवायु और जैवविविधता को भी प्रभावित करता है।

भूगर्भीय महत्त्व

भूवैज्ञानिकों के अनुसार अरावली पर्वतमाला भारतीय प्लेट और यूरोशियन प्लेट के बीच टकराव का परिणाम नहीं है, जैसा कि हिमालय है, बल्कि यह 'ओरोजेनिक मूवमेंट्स' यानी धरती की सतह में उठाव और झुकाव के कारण बनी है। समय के साथ इसकी ऊंचाई घटती चली गई और अब यह एक "वृद्ध" पर्वत श्रृंखला मानी जाती है। इसके बावजूद, यह आज भी कई प्रकार की खनिज संपदाओं और जैविक विविधताओं को संजोए हुए है।

माउंट आबू: अरावली की सबसे ऊँची चोटी

अरावली पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी "गुरु शिखर" मानी जाती है, जो माउंट आबू में स्थित है। इसकी ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 1,722 मीटर है। माउंट आबू को राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन माना जाता है और यह अरावली श्रृंखला के पर्यटन आकर्षणों में से एक है। यहां का शांत वातावरण, वन्य जीवों की विविधता और दिलवाड़ा मंदिर जैसे स्थापत्य के अद्भुत उदाहरण पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

पर्यावरणीय भूमिका

अरावली पर्वतमाला दिल्ली-एनसीआर से लेकर राजस्थान तक के पर्यावरण को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाती है। यह थार के मरुस्थल को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती है और साथ ही यह वर्षा को आकर्षित कर स्थानीय जलवायु को संतुलित बनाए रखती है। यह क्षेत्र कई नदियों की उत्पत्ति का स्थान भी है, जिनमें साबरमती और बनास प्रमुख हैं।इस पर्वत श्रृंखला में बड़ी मात्रा में हरियाली है, जो जैव विविधता का पोषण करती है। सरिस्का टाइगर रिजर्व, कुंभलगढ़ वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी और माउंट आबू वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी जैसी कई संरक्षित वन्यजीव संरचनाएं यहीं स्थित हैं। यहां तेंदुआ, भालू, जंगली बिल्ली, लोमड़ी जैसे वन्य जीवों के साथ-साथ दुर्लभ औषधीय पौधे भी पाए जाते हैं।

खनिज संपदा और आर्थिक महत्त्व

अरावली पर्वतमाला खनिज संपदा से भी भरपूर है। यहां सीसा, जस्ता, चांदी, तांबा, संगमरमर, ग्रेनाइट और चूना पत्थर जैसे महत्वपूर्ण खनिज मिलते हैं। राजस्थान के उदयपुर, चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा जिलों में खनन उद्योग बड़े पैमाने पर फैला हुआ है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

चुनौतियां और संरक्षण

हालांकि अरावली की महत्ता असीम है, लेकिन आज यह श्रृंखला गंभीर पर्यावरणीय संकटों से जूझ रही है। अवैध खनन, अंधाधुंध कटाई, अतिक्रमण और शहरीकरण ने इसकी पारिस्थितिकी को बुरी तरह क्षति पहुंचाई है। सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (NGT) ने कई बार इस क्षेत्र की रक्षा के लिए आदेश दिए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका पालन अधूरा है।विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अरावली पर्वत श्रृंखला का संरक्षण गंभीरता से नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में दिल्ली और राजस्थान जैसे क्षेत्रों को पर्यावरणीय आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें पानी की कमी, बढ़ता तापमान और मरुस्थलीकरण प्रमुख होंगे।