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आखिर Jaipur की तमाशा, गालीबाज़ी और गुलाल गोटा होली में ऐसा क्या है खास ? जिसे मनाने 7 समंदर पार से दौड़े चले आते है लोग

 
आखिर Jaipur की तमाशा, गालीबाज़ी और गुलाल गोटा होली में ऐसा क्या है खास ? जिसे मनाने 7 समंदर पार से दौड़े चले आते है लोग 

जयपुर न्यूज़ डेस्क - राजस्थान की राजधानी जयपुर अपने शाही अतीत, समृद्ध संस्कृति और भव्य त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है। होली यहाँ मनाए जाने वाले त्योहारों में सबसे जीवंत और रंगीन त्योहार है। यह सिर्फ रंगों का खेल नहीं है, बल्कि संगीत, नृत्य और पारंपरिक रीति-रिवाजों से भरा एक सांस्कृतिक अनुभव है। जयपुर की होली राजस्थानी परंपराओं और ऐतिहासिक विरासत का मिश्रण है, जो इसे अन्य जगहों से अलग बनाती है।

होली के दौरान जयपुर के मंदिरों, महलों और गलियों में गुलाल और अबीर उड़ते हैं। भक्त कीर्तन और रसिया गाकर इस त्योहार को भक्ति और उल्लास से भर देते हैं। पूरे शहर में खुशी और उत्साह की लहर दौड़ जाती है, जिसे देखने के लिए न केवल स्थानीय लोग बल्कि बड़ी संख्या में देश-विदेश से पर्यटक भी आते हैं। जयपुर की होली में संस्कृति और परंपरा का अनूठा संगम देखने को मिलता है, जो इसे हर किसी के लिए यादगार अनुभव बनाता है।

तमाशा-गुलाल गोटा-गालीबाजी
जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर में फूलों की होली खेली जाती है, जो एक अनूठी और भक्ति परंपरा है। इसके अलावा तमाशा, गालीबाजी और गुलाल गोटा होली भी काफी प्रचलित है। इनमें गुलाल गोटा होली जयपुर की एक खास परंपरा है, जो इसे अन्य जगहों की होली से अलग बनाती है। इस दौरान लोग लाख से बनी छोटी-छोटी गेंदों में गुलाल भरकर एक-दूसरे पर फेंकते हैं, जिससे रंगों की खूबसूरत बारिश होती है।

हिंदू-मुस्लिम कारीगर मिलकर मनाते हैं होली
इस परंपरा की जड़ें करौली राजघराने से जुड़ी हैं। दशकों पहले करौली के राजा के लिए मुस्लिम कारीगरों द्वारा खास तौर पर गुलाल गोटा तैयार किया जाता था। बाद में ये कारीगर जयपुर के परकोटा क्षेत्र में खास तौर पर मणिहारन तरीके से बस गए और यह परंपरा आज भी कायम है। यहां दर्जनों परिवार आज भी गुलाल गोटा बनाते हैं, जिसे लोग होली खेलने के लिए खास तौर पर खरीदते हैं।