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Hanumangarh का भद्रकाली मंदिर जहा आज भी चढ़ती है बलि

 
Hanumangarh का भद्रकाली मंदिर जहा आज भी चढ़ती है बलि

हनुमानगढ़ न्यूज़ डेस्क, आज जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वह हनुमानगढ़ स्थित भद्रकाली माता का मंदिर है।मंदिर का इतिहास थोड़ा अतीत में है।कथा का प्रसंग इस प्रकार है कि तकरीबन 500 वर्ष पहले मुगल बादशाह अकबर इस इलाके से गुजर रहा था उस समय यह पूरा बियाबान जंगल था।इस जंगल में उसे एक बुढ़िया दिखायी दी। यह बुढ़िया वर्तमान भद्रकाली माता ही थी।बुढ़िया से अकबर ने कहा की माई मुझे प्यास लगी है पानी मिल सकता है।बुढ़िया ने उसे जमीन से थोड़ा पानी निकालकर पानी दिया।जैसे पानी की कमी हुई तो वापस जमीन से पानी निकाल कर दिलाया तो अकबर को लगा कि यह कोई देवीय शक्ति है और अकबर ने माता के पैर पकड़ लिए और कहा कि माता मुझे खाना खिलाओ।

माताजी ने खाना खिलाया और आगे टोकरी रखी और कहा कि इसको हटाना मत एक ही जगह पड़ी रहने देना और इस प्रकार पूरी सेना को खाना खिला दिया।सरकार ने ब’लि पर जाने कब रोक लगा दी लेकिन गांवों में आज भी देवी-देवताओं आदि के ब’लिया चढ़ती है।ठीक वैसे ही भद्रकाली माता के मंदिर में ब’लि चढ़ने का परंपरा है।यहां मंदिर में श’राब भी चढ़ती है।हालांकि कागजों में ऐसा नहीं है लेकिन गैर कानूनी रूप से ही सही यहां पर ब’लि का चढ़ना शुभ माना जाता है।

माता के यहां पधारने का विशेष दिन चैत्र की अष्टमी और रामनवमी को होता है।इस दिन माता के यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।अपनी श्रद्धा अनुसार कोई नारियल चढ़ाता है।कोई श’राब चढ़ाता है।कोई ब’लि चढ़ाता है। प्रसाद घर पर भी बनाते हैं और यहां चढ़ावे के रूप में इसे लाया जाता है।पुजारी जी बताते हैं कि वे पुजारी वर्ग की चौथी पीढ़ी में हैं उनकी दादा परदादाओं को महाराजा गंगा सिंह लेकर आए थे और उसके बाद से हमारी परंपरा चली आ रही है। मंदिर में मूर्ति की पुनर्स्थापना महाराजा गंगा सिंह ने करवाई।भद्रकाली माता की दूसरी मूर्ति महाराजा गंगा सिंह ने लालगढ़ में स्थापित करवाई।यहां पर मूर्ति स्थापना करवाने के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है मुस्लिम आक्रांता होने की वजह से यहाँ कब्जा न कर लें।