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300 साल में पहली बार बेणेश्वर धाम में आदिवासियों के महाकुंभ में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आगमन

 
300 साल में पहली बार बेणेश्वर धाम में आदिवासियों के महाकुंभ में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आगमन

डूंगरपुर न्यूज़ डेस्क, संत मावजी महाराज की तपोस्थली, सोम-माही और जाखम का त्रिवेणी संगम, जहां पर हर साल हजारों आदिवासी अपने पूवर्ज को तर्पण देने आते हैं. आदिवासी समाज का हरिद्वार कहा जाने वाले बेणेश्वर धाम पर पहली बार भारत देश के राष्ट्रपति का कार्यक्रम हो रहा है. आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने के बाद पहली बार वो यहां पर आ रही हैं. देश की आजादी के बाद कोई भी राष्ट्रपति बेणेश्वर धाम पर नहीं आया है. यहां पर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  करीब 10 हजार से अधिक महिलाओं को संबोधित करेंगी. राजीविका का लखपति दीदी सम्मेलन में शिरकत रही है, जहां पर डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, सलुम्बर और उदयपुर जिले की चयनित महिलाओं को बुलाया जा रहा है. 

हर साल लगता है विशाल मेला

बेणेश्वर धाम का अपना सांस्कृतिक, आध्यात्मिक महत्व है. यहां पर हर साल माघ महीने की एकादशी को राष्ट्रीय स्तर का मेला भरता है. इस मेले में करीब दस से अधिक लोग विभिन्न राज्यों से आते हैं. यहां की तपोभूमि में संत मावजी महाराज को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. मावजी महाराज ने करीब 300 वर्ष पूर्व माही, सोम और जाखम नदी के संगम पर बेणेश्वर में तपस्या की थी. इनके द्वारा जनजाति समाज (आदिवासी) में सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए भी प्रयास किए. उनकी याद में हर वर्ष बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा पर सबसे बड़ा आदिवासी मेला भरता है. 

कौन हैं संत मावजी महाराज?

संत मावजी महाराज का विक्रम संवत 1771 को माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी), बुधवार को साबला में दालम ऋषि के घर माता केसरबाई की कोख से जन्म हुआ. इसके बाद कठोर तपस्या उपरांत संवत 1784 में माघ शुक्ल ग्यारस को लीलावतार के रूप में संसार के सामने आए. मावजी महाराज ने साम्राज्यवाद के अंत, प्रजातंत्र की स्थापना, अछूतोद्धार, पाखंड और कलियुग के प्रभावों में वृद्धि, परिवेश, सामाजिक एवं सांसारिक परिवर्तनों पर स्पष्ट भविष्यवाणियां की हैं, जिन्हें मशहूर नास्त्रोदमस से भी सटिक भविष्यवाणी आज भी लागू हो रही है. संत मावजी महाराज से आज से करीब 270 साल पहले अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ही मावजी महाराज ने कहा था कि 'गऊं चोखा गणमा मले महाराज' अर्थात गेहूं-चावल राशन से मिलेंगे. 

5 में से 4 चौपड़े आज भी सुरक्षित

मावजी महाराज ने चौपड़े लिखे हैं. मावजी महाराज के पांच चौपड़ों में से चार इस समय सुरक्षित हैं. इनमें 'मेघसागर' हरि मंदिर साबला में है. इसमें गीता ज्ञान उपदेश, भौगोलिक परिवर्तनों की भविष्यवाणियां हैं. 'साम सागर' शेषपुर में है. इसमें शेषपुर एवं धोलागढ़ के पवित्र पहाड़ का वर्णन तथा दिव्य वाणियां हैं. तीसरा 'प्रेमसागर' डूंगरपुर जिले के ही पुंजपुर में है. इसमें धर्मोपदेश, भूगोल, इतिहास तथा भावी घटनाओं की प्रतीकात्मक जानकारी है, जबकि चौथा चौपड़ा 'रतनसागर' बांसवाड़ा शहर के त्रिपोलिया रोड स्थित विश्वकर्मा मंदिर में सुरक्षित है. इसमें रंगीन चित्र, रासलीला, कृष्णलीलाओं आदि का मनोहारी वर्णन सजीव हो उठा है. 'अनंत सागर' नामक पांचवां चौपड़ा मराठा आमंत्रण के समय बाजीराव पेशवा द्वारा ले जाया गया, जिसे बाद में अंग्रेज ले गए. 

सच साबित हो रही भविष्यवाणियां

बताया जाता है कि इस समय यह लंदन के किसी म्यूजियम में सुरक्षित है, जिसमें ज्ञान-विज्ञान की जानकारियां समाहित हैं. गुजरात नो डको दिल्ली में वाजे संत मावजी महाराज ने अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि गुजरात नो डकों दिल्ली में वाजे, करे शासन. इस भविष्यवाणी को आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़ कर देखा जाता है. इसमें गुजरात के व्यक्ति की ओर से दिल्ली में शासन करते हुए भारत का वैभव आज पूरे विश्व में माना जा रहा है. ऐसी करीब कई भविष्यवाणी आज भी लोगों के जहन में रहती है. उनके लिखे ग्रन्थों में सही साबित हो रही है.