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Dungarpur मजदूरी की मजबूरी, फिर भी बेटियां पढ़ाई से दूर नहीं रहीं

 
Dungarpur मजदूरी की मजबूरी, फिर भी बेटियां पढ़ाई से दूर नहीं रहीं

डूंगरपुर न्यूज़ डेस्क, डूंगरपुर आंधियों को जिद है जहां, बिजलियां गिराने की, हमे भी जिद है वहीं आशियां बनाने की...। ये पंक्तियां सटीक साबित होती है जिले की उन होनहार बेटियों पर जो इन दिनों मजबूरी के बीच मनरेगा में मजदूरी करने के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी कदम आगे बढ़ा रही हैं। विकट पारिवारिक हालात में दिहाड़ी मजदूरी के साथ उच्च शिक्षा से नाता जोड़े रखते हुए अब अब ये दूसरों के लिए भी नजीर बन रही है। इनका ख्वाब है कि वे प्रतियोगी परीक्षा पास कर अफसर बने। निराशाओं की धुंध में उम्मीदों की किरण जगाने वाली ये बेटियां डूंगरपुर की विभिन्न पंचायत समितियो में चल रहे रोजगार गारंटी योजना के काम में जुटी हैं। जिले की चकमहुड़ी गांव में इन दिनों कार्यरत ऐसी ही बेटियों के संघर्ष की पेश है रिपोर्ट...

शिल्पा डामोर

दसवीं में 62 फीसदी, 12वीं विज्ञान संकाय में बॉयोलोजी, केमेस्ट्री एवं फिजिक्स विषयों के साथ 63 फीसदी अंक प्राप्त किए और कॉलेज पूरी करने के बाद प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है। पिता सोमा और भाई गुजरात में मजदूरी करते हैं।

दुर्गा गमेती

दसवीं में 58 फीसदी, 12वीं में 81 फीसदी अंक प्राप्त करने के बाद कॉलेज अंतिम वर्ष की परीक्षा दी है। पिता रमेश गमेती जीप चलाते हैं। दुर्गा मां रमिलादेवी के साथ रोजगार गारंटी योजना में काम करती है। कहती है सरकारी नौकरी हर हाल में हासिल करुंगी।

भावना वरहात

दसवीं में 49 फीसदी, 12वीं में 77 फीसदी अंक प्राप्त करने के बाद कॉलेज अंतिम वर्ष की परीक्षा देने के साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी। पिता जीवालाल बीमार है। मां नर्वदा के साथ नरेगा में कार्य करती है। भाई अहमदाबाद है।

बेटियां संभाल रही चूल्हे-चौके और रोजगार के साथ शिक्षा की पतवार

दसवीं में 53 फीसदी, 12वीं में 79 फीसदी अंक प्राप्त करने के बाद कॉलेज शिक्षा पूरी की है। पिता घर पर ही है। मां धनुदेवी के साथ रोज नरेगा में काम करती है। घर का काम भी संभालते हुए इच्छा है कि बड़ी अधिकारी बनूंगी। जीवली बताती है कि कई बार हमारे पास पुस्तकें खरीदने के भी रुपए नहीं होते हैं, तो कई बार फीस भी बमुश्किल भरते हैं। लेकिन, हम गांव की बेटियां कॉलेज तक पढ़ गई है। अन्य बेटियों को प्रेरित कर रही हैं।