Dungarpur बेणेश्वर धाम हाइलेवल ब्रीज निर्माण मामले में संगम स्थल के सेतू बांधने में सुस्ती
डूंगरपुर न्यूज़ डेस्क, डूंगरपुर लाखों श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र वागड़ प्रयाग बेणेश्वर धाम हर साल वर्षा ऋतु में दो से तीन बार टापु बन जाता है। इससे प्रशासन और सरकार की सांसे अटक जाती हैं। वहीं, धाम में स्थायी रुप से रहने वाले श्रद्धालुओं के सामने भी थोड़ा बहुत संकट आ जाता है। कई बार धाम को जोडऩे वाले पुलों से पानी सप्ताह भर से अधिक दिन रहता है, तो दिक्कत और बढ़ जाती है। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए प्रदेश सरकार ने बेणेश्वर धाम पर हाइलेवल ब्रिज का स्वीकृत किया और कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी से उद्घाटन करवाया था। लेकिन, कमजोर राजनीतिक इच्छा शक्ति और प्रशासनिक उदासीनता के चलते हाइलेवल पुल का काम डेड़ वर्ष बाद भी एक चौथाई भी नहीं हुआ है। इसके चलते धाम एक बार फिर टापू बन गया है और श्रद्धालु, व्यापारी आदि फंस गए हैं।बेणेश्वर धाम के महंत अच्युतानंद महाराज चातुर्मास के हिसाब से बेणेश्वर धाम में थे और 31 जुलाई 2015 को गुरु पूर्णिमा थी। ऐसे में महंत को बेणेश्वर से साबला हरि मंदिर लाना था। लेकिन, धाम टापु बना हुआ था। इस पर माव भक्त स्थानीय गोताखोरों की सहायता से बड़े टायर-ट्यूब के सहारे महंत को माही की नदी पार करवा कर साबला कस्बे के हरि मंदिर लाए। इसके बाद गुरु पूर्णिमा के आयोजन हुए।
मांग तो की पूरी, पर नहीं हो रहा काम
बेणेश्वरधाम की महिमा वागड़ अंचल तक ही सीमित नहीं है। अपितु, इसकी महिमा राष्ट्रीय स्तर की है। बेणेश्वर धाम को जोडऩे वाले साबला, गनोड़ा व वालाई पुलों की ऊंचाई कम होने से धाम टापू में तब्दील होता है। इस समस्या के निराकरण के लिए प्रदेश सरकार ने गत वर्ष 132 करोड़ की लागत से हाइब्रिज पुल स्वीकृत किया। इसका शिलान्यास 16 मई 2022 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सांसद राहुल गांधी से करवाया। इससे लोगों को आस थी कि यह कार्य युद्ध गति से होगा। पर, यह कार्य कागजों में ही अटका हुआ है। डेढ़ वर्ष उपरांत भी आधे-अधुरे पिल्लर बने हैं।
बेणेश्वर धाम पर सोम, माही और जाखम नदियों का त्रिवेणी संगम स्थल है। वर्षा के दिनों में सोमकमला आम्बा एवं माही डेम के ओवर फ्लो होने तथा नदियों में अत्यधिक जल प्रवाह होने से बेणेश्वर धाम पानी से चारों ओर से घिर जाता है। ऐसे में धाम में तैनात पुलिसकर्मी, मंदिर के पुजारी, श्रद्धालु, दुकानदार एवं व्यापारी आदि कई-कई दिनों तक धाम पर ही फंसे रह जाते हैं। हालांकि, वहां रहने वाले लोगों को इस माहौल में ढल गए हैं। वह वर्षा के दिनों में पर्याप्त मात्रा में खाद्य-पेयजल आदि का प्रबंध रखते हैं। पर, अधिक दिनों तक टापु बने रहने पर समस्या बढ़ जाती है।