धौलपुर न्यूज़ डेस्क, धौलपुर चिकित्सा पद्धति अब झोलाछाप चिकित्सकों के लिए रुपए कमाने का जरिया बन कर रह गया है। यही कारण है कि शहर से लेकर देहात तक झोलाछाप डॉक्टर और आर्टिफिशियल अस्पताल फैल रहे हैं। इनकी भेंट हर साल मासूम लोग चढ़ते हैं, लेकिन इसके बाद भी इन स्वास्थ्य माफियाओं पर चिकित्सा विभाग कोई कार्रवाई नहीं करता, बल्कि मूक बना हाथ पर हाथ धर बैठ मरीजों की जान के साथ हो रहे खिलवाड़ को निहारते रहता है।देखा जाए तो स्वास्थ्य विभाग में केवल 30 निजी अस्पतालों का पंजीकृत ही है और अगर गिनती करें तो शहर सहित जिले भर में निजी अस्पतालों का आंकड़ा 200 से 250 बैठेगा तो वहीं झोलाछापों को तो रजिस्ट्रेशन से कोई मतलब ही नहीं है। वह तो एक दुकान किराए से ली और चालू कर देते हैं इंसान और इंसानियत से खिलवाड़ करना। खास बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग की होने वाली बैठकों में जिला कलक्टर झोलाछाप व अवैध अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लीनिक के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए जाते हैं। लेकिन कार्रवाई करने की फुरसत शायद इन जिम्मेदार अफसरों की पास है ही नहीं।
स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी पड़ रही भारी
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के चलते लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। आर्टिफिशियल अस्पताल शहर में सडक़ किनारे जगह-जगह संचालित हो रहे हैं। जिनमें ना तो कोई डाक्टर होता है ना ही प्रशिक्षित स्टाफ, और तो और इन पर अस्पताल संचालन से लेकर अग्निशमन और प्रदूषण नियंत्रण का भी पंजीकरण नहीं होता। लेकिन इन अस्पतालों पर स्वास्थ्य विभाग की कृपा भरपूर है। इससे ये मरीजों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। पैथी बदल कर इलाज करने वाले डॉक्टरों और झोलाछाप डॉक्टरों की इलाज की बजह से जिले में पिछले कुछ सालों में कई लोगों की जान जा चुकी है। कई बार तो घटनाओं के बाद ये लोग पुलिस के हत्थे भी नहीं आए। गोपनीय ढंग से काम करने वालों पर प्रशासन भी रोक नहीं लगा पाया है। डॉक्टरों पर सख्त कार्रवाई न होने से झोलाछाप डॉक्टरों में प्रशासन का खौफ नहीं है।