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Dholpur कठिन परिस्थितियों और सीमित संसाधनों के बीच निखर रहा है ‘हॉकी रत्न’

 
Dholpur कठिन परिस्थितियों और सीमित संसाधनों के बीच निखर रहा है ‘हॉकी रत्न’

धौलपुर न्यूज़ डेस्क, सीमित संसाधन और अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद देश को हॉकी के रत्न देना अकल्पनीय लगता है। लेकिन इस अकल्पनीय कार्य को अजय बघेल पिछले कई सालों से बखूबी कर रहे हैं। वह खुद न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी खेल चुके हैं बल्कि हॉकी और एथलेटिक्स में युवाओं की नई पौध को गढऩे का कार्य भी कर रहे हैं। जिसका ही नतीजा है कि उनके सिखाए खिलाड़ी आज राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिताओं में शिरकत कर रहे हैं।  अजय बताते हैं कि उन्होंने 1991 में पहली बार स्टिक पकड़ी थी। तब से आज तक स्टिक उनके जीवन का हिस्सा बन गई। 1995 में नेशनल स्तर पर आयोजित नेहरू हॉकी प्रतियोगिता मेें उनकी टीम धौलपुर विजेता रही थी। 1996 में अंडर 17 राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में वह सर्वश्रेष्ठ हॉकी प्लेयर बने। इसके बाद उन्होंने 1997 में फिरोजपुरए 98 में चंडीगढ़ में नेशनल स्तर पर हॉकी खेली।

बच्चों में देखा अपना कल : अजय पिछले 10 सालों से बच्चों को हॉकी और एथलेटिक्स के गुर सिखा रहे हैं। 22 साल पहले उनका हॉकी खेलना छूट गया। लेकिन वह अपना कल और सपना अन्य बच्चों में देखने लगे। जिस कारण उन्होंने राजकीय महात्मा गांधी विद्यालय में शारीरिक शिक्षक (पीटीआई) के पद पर कार्य प्रारंभ किया। और जुट गए हॉकी और एथलेटिक्स में युवाओं की नई पौध को गढऩे में। वह अभी तक 250 बच्चों को ट्रेनिंग दे चुके हैं।

अच्छे ग्राउण्ड और संसाधनों की आवश्यकता

स्कूलों में खेल संसाधनों पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि बच्चों की खेलों में रुचि बढ़ रही है। वह एथलेटिक्स और हॉकी को पसंद कर रहे हैं। लेकिन संसाधनों का अभाव होने के कारण बच्चे अधिक प्रगति करने में असफल रहते हैं। बच्चों को टीए, डीए तक नहीं दिया जाता है। अच्छे ग्राउण्ड से लेकर अच्छे कोच की बच्चों को जरूरत है। जिससे उनका भविष्य स्वर्णिम हो सके।