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राजस्थान में कब होगा Holika Dahan ? यहां जाने भद्रा काल से लेकर 30 साल बाद बन रहे दुर्लभ संयोग के बारे में सबकुछ

 
राजस्थान में कब होगा Holika Dahan ? यहां जाने भद्रा काल से लेकर 30 साल बाद बन रहे दुर्लभ संयोग के बारे में सबकुछ 

दौसा न्यूज डेस्क -  राजस्थान में होलिका दहन कब और किस समय होगा? अगर आप भी शुभ मुहूर्त के समय को लेकर असमंजस में हैं तो जान लें कि आमतौर पर होलिका दहन प्रदोष काल में किया जाता है, लेकिन अगर भद्रा का साया हो तो होलिका दहन का समय बदल जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार 13 मार्च को पूरे दिन भद्रा का साया रहेगा, इसीलिए होलिका दहन प्रदोष काल में नहीं बल्कि देर रात को किया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11.21 बजे से लेकर मध्य रात्रि 12.28 बजे तक रहने वाला है।

होलिका दहन पूजा विधि
होलिका जलाने के लिए लकड़ियों का ढेर तैयार किया जाता है। इस ढेर में नारियल, मक्का, अक्षत, गुलाल, गोबर, फूल, गेहूं की बालियां और बताशा आदि डाले जाते हैं। होलिका पर रोली बांधी जाती है और उसकी परिक्रमा की जाती है। इसके बाद होलिका जला दी जाती है। होलिका की अग्नि में सुपारी, नारियल और पान का पत्ता डाला जाता है। जलती होलिका के चारों ओर परिक्रमा कर परिवार की सुख-शांति की कामना की जाती है। होली की पूर्व संध्या पर मनाया जाने वाला यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

30 साल बाद बन रहा है दुर्लभ संयोग
इस साल ग्रहों की विशेष स्थिति के कारण एक दुर्लभ संयोग भी बन रहा है। गुरुवार को कुंभ राशि में सूर्य, बुध और शनि का होना और शूल योग का बनना एक विशेष खगोलीय संयोग को दर्शाता है, जो इससे पहले 1995 में बना था। ज्योतिष मान्यता के अनुसार, यह दिन मध्य रात्रि में तंत्र साधना के लिए विशेष महत्व रखता है। हालांकि, इस दिन लगने वाला चंद्रग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, जिसके कारण इसका सूतक भी भारत में मान्य नहीं होगा। इसके बावजूद, राजस्थान में धार्मिक परंपराओं और श्रद्धालुओं के उत्साह के साथ होली का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।

क्यों किया जाता है होलिका दहन?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी, जो हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद को लेकर जलती हुई लकड़ियों के ढेर में बैठ गई थी। होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती, लेकिन मासूम प्रह्लाद को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त था। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को मारना चाहता था, लेकिन भगवान विष्णु के आशीर्वाद से प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई। ऐसे में हर साल होलिका दहन पर लकड़ियों का ढेर जलाया जाता है और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा जाता है।

अगले दिन मनाया जाता है रंगों का त्योहार
होलिका दहन के बाद अगली सुबह धुलेंडी मनाई जाती है। इस दिन लोग एक-दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल आदि फेंकते हैं, ढोल बजाकर होली के गीत गाए जाते हैं और घर-घर जाकर लोगों को रंग लगाया जाता है। मान्यता है कि होली के दिन लोग अपने दिलों की कड़वाहट भूलकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक-दूसरे को रंग लगाने और नाचने-गाने का दौर दोपहर तक चलता रहता है। इसके बाद स्नान करके आराम करने के बाद लोग नए कपड़े पहनकर शाम को एक-दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाई खिलाते हैं।