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Churu पर्यटन विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों से पर्यटन विभाग अनजान

 
Churu पर्यटन विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों से पर्यटन विभाग अनजान

चूरू न्यूज़ डेस्क, भित्ति चित्रों से युक्त हवेलिया, आकर्षित करनेवाले प्राचीन मंदिर, छोटी मोटी पहाडिय़ा, द्रोणाचार्य की तपोस्थली गोपालपुरा पहाड़ी, रणधीसर डूंगरी, सालासर बालाजी, श्याम पाण्डिया और जाहरवीर गोगाजी की जन्मस्थली, स्यानण पहाड़ी, जैन मंदिर उपासरे, ताल छापर कृष्ण मृग अभयारण्य, लीलकी बीहड़, हवामहल युक्त हवेलियां सहित और न जाने ऐसी यहां कितनी पुरातात्विक विरासते हैं जिनसे पर्यटन उद्योग को पंख लग सकते हैँ । बस आवश्यकता है एक सकारात्मक पहल की। जिसके लिए अभी पिछले दिनों एक ऐसी ही पहल हुई ताल छापर से हुई। जहां जिला प्रशासन ने पर्यटन विकास के लिए एक कदम आगे बढ़ाया लेकिन पर्यटन विभाग इससे शायद बेखबर रहा। इसलिए दो दिवसीय पक्षी महोत्सव में आशा अनुरूप पर्यटक नहीं जुड़ पाए।

पर्यटन को बढ़ाव देने की कवायद

शिशिर ऋतु में यहां रहे परंपरागत शीतकालीन मौसम और देशी विदेशी पक्षियों का गढ़ ताल छापर कृष्ण मृग अभयारण्य में पंछी उत्सव का आयोजन हुआ। कृष्ण मृग की अटखेलिया, छोटे कीट पंतगों की भरमार के बीच नमक की खार का रसास्वादन करने आनेवाले पंछियों की आवाजाही इस अभयारण्य को रमणीय बना रही है। ऐसे में स्थानीय निकाय, वन विभाग और जिला प्रशासन का पर्यटकीय विकास के प्रयोजन के साथ उत्सव करवाना एक शुभ संकेत है।

छात्र शक्ति का जुड़ना महत्वपूर्ण

पक्षी महोत्सव से जहां पर्यटन की संभावना को एक लक्ष्य मिला वहीं स्थानीय और हरियाणा, तमिलनाडू, पंजाब के वन और वानिकी से जुड़े प्रतिनिधियों के आने से लोगों को वन्य जीवों के महत्व जानने का अवसर मिला। आयोजन में सबसे महत्वपूर्ण छात्र शक्ति का जुडऩा रहा। वन्य जीवों और पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभा रही ताल छापर की नेचर एनवायरमेंट एण्ड वाइल्डलाइफ सोसायटी का सांगोपांग प्रतिनिधित्व रहा।

काले हरिणों की नगर है अभयारण्य

ऐशिया के मानचित्र में अंकित ताल छापर अभयारण्य काले हरिणों की नगर है। यहां करीब तीन हजार कृष्ण मृग है तो अभयारण्य में सरीसूप प्रजातियां यहां निवास करती है। वन्य जीवों की संपदा वाले यह अभयारण्य देशी विदेशी सैलानियों के लिए हमेशा आकर्षण का केन्द्र रहा है। हालांकि विदेशी पर्यटकों बड़ी संया में नहीं आ रहे है लेकिन यदि इसे पर्यटकीय उद्यम में विकसित किया जाए तो यह राजस्थान के लिए सोने उगलनेवाला मुय पर्यटन केन्द्र बन सकता है।

विदेशी पंछी भरते हैं उड़ान

अभयारण्य ईस्टर्न इपीरियल इंगल, हैरियर, गौरया, शॉर्ट-टोड इंगल, डेमोइसेल क्रेन, ब्लैक आईबिस, ब्राउन डब्स, क्रेस्टेड लॉर्कस, स्काईलार्क्स जैसे अनेक देशी विदेशी पंछियों का गढ़ रहा है। सर्दी के मौसम में विदेशी मेहमान पक्षियों की रेलमपेल यहां देखते ही बनते हैं। प्रकृति सौन्दर्य को चार चांद लगानेवाले इन पक्षियों को यहां पर्याप्त भोजन मिलता है इसलिए पर्यटक भले की कम आए लेकिन विदेशी पंछी पर्यटक यहां प्रतिवर्ष हजारों की संया में आकर यहां निवास करते हैं।