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Churu शहर में कुछ मंचों तक सिमट कर रह गया रामलीला मंचन

 
Churu शहर में कुछ मंचों तक सिमट कर रह गया रामलीला मंचन

चूरू न्यूज़ डेस्क, साहित्य, लोक कला संस्कृतिक, आध्यात्मिक और गीत संगीत के गढ़ रहे चूरू की वह धार अब नहीं रही। जिसके लिए इस छोटी काशी को जाना जाता था। एक वह दौर था जब चूरू शहर के पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक शारदीय नवरात्र पर कला के क्षेत्र से जुड़ी अनेक संस्थाएं रामलीला मंचन करवाया करती थी। शहर की रेलवे कॉलोनी से लेकर चांदनी चौक और गायत्री नगर तक महाराज जय शंकर की और लखनलाल प्यारे के जयकारे गूंजा करते थे। भगवान राम की लीला के साथ-साथ हांस्य-व्यंग की जहां फुलझड़ियां छूटती थी। वहीं नृत्य की छटा देखने लोग छटपटाया करते थे, लेकिन अब यह बीते दिन की बात हो गई।  शहर की सबसे पुरानी प्राचीन गढ़ के पास रामलीला कमेटी चूरू की होनेवाली रामलीला तो कब की सिमट गई। इस बार रेलवे कॉलोनी में होनेवाली हनुमान कला मण्डल की पुरानी रामलीला भी बंद हो गई। अब चूरू में अब केवल शिवकला मण्डल और भोलेनाथ कला मंच रामलीला की ध्वज पताका फहराएं हुए हैं। शेष का तो कोई अता पता भी नहीं हैँ।

कला के पारखी थे चूरू के कलाकार

कला के पारखी रहे चूरू के कलाकार हरिप्रसाद ओझा, चण्डीप्रसाद शर्मा, मोहनलाल मोटका, राजेन्द्र शर्मा मास्टर, मालचंद नाई, कानसिंह चौहान, दुर्गादत्त शर्मा, शिवचंद कल्ला, हीरालाल शर्मा आत्माराम गुरु, बिहारीलाल पनवाड़ी, श्यामसुन्दर दलाल, ठाकुर प्रसाद बंशिया, करणी सिंह खिंची, जैसे अनेक महारथी कलाकार और संयोजन कर्ता थे, जिन्होंने यहां की रामलीला को न केवल परवान चढ़ाया बल्कि दूसरी, तीसरी पीढ़ी तक के कलाकार तैयार किए लेकिन वर्तमान में ये नहीं है। इसी क्रम में आमोद प्रमोद कला केन्द्र में डेडराज माटोलिया, विनोद पीतर, श्रवण मास्टर, ओमप्रकाश शर्मा, रामस्वरूप शर्मा जैसे कलाकार व निर्दशक हुआ करते थे। लोग कहते हैं कि इन कलाकारों के साथ ही चूरू में कला के क्षेत्र में एक रिक्तता आ गई।

कभी ये संस्थाएं थीं सक्रिय

चूरू में रामलीला मंचन में रामलीला कमेटी चूरू, आमोद प्रमोद कला कमेटी, हनुमान कला मण्डल रेलवे कॉलोनी, शिवकला मंच, सुभाष कला मण्डल, चूरू कला मंच, ओम कला मंच, शिव शक्ति कला मंच, आजाद कला मंच, मिलजुल कला मंच, आदर्श कला कमेटी, बाल कला मण्डल तथा बाल कला मंच अग्रणीय रही लेकिन वर्तमान में इनकी ओर से रामलीला मंचन नहीं किया जा रहा है।

ये संस्थाएं हैं सक्रिय

आज चूरू के नया बास में शिवकला मण्डल और मनोरंजन क्लब में भोलेनाथ कला मंच के तत्वावधान में रामलीला मंचन किया जा रहा है। जिसको लेकर शहर के लोग संतोष व्यक्त करते हुए कहते हैं कला को प्रोत्साहित करना वर्तमान की आवश्यकता है।

रुझान कम नहीं ध्यान देना जरूरी

रामलीला से जुड़े कलाकरों का कहना है कि जिस समय रामलीला परवान चल रही थी तभी टीवी में रामायण सीरियल आना शुरू हो गया। हालांकि इसका ज्यादा तो इसका असर नहीं हुआ क्योंकि रामलीला मंचन साल में केवल 9 दिन का हुआ करता था। इसलिए भीड़ पर कोई असर नहीं पड़ा, लेकिन एक ओर संस्थाओं का टूटना और नई बनने से कला का बंटवारा हो गया। इससे मंचन का सिलसिला तो बढ़ा लेकिन कला के स्तर में गिरावट आ गई। दो दशकों में उतार पर आए रामलीला मंचन को मोबाइल के आगमन ने पीछे छोड़ दिया। मोबाइल आया ही था कि युवा इसमें खोने लगे, दूसरी ओर संस्थाएं कमजोर हो गई और आयोजकों को रामलीला आयोजन के लिए संघर्ष करना पड़ा। पिछले दो दशकों से रामलीला मंचन से जुड़ी संस्थाओं के कार्यकर्ता एक एक कर निष्क्रिय होते चले गए। जिसका रामलीला पर गहरा असर पड़ा।

दशहरा मैदान में बन रहे हैं क्वार्टर

रेलवे कॉलोनी में हनुमान कला मंदिर की वर्ष 1966 में शुरू हुई रामलीला कोविड के बाद दूसरी बार बंद हो गई। पांच दशक से अधिक समय तक आए अनेक झंझावतों के बाद भी कभी यह अवसर नहीं आया कि रामलीला का पर्दा नहीं खुला हो लेकिन इस बार यहां रामलीला नहीं हो रही है। संस्था के कोषाध्यक्ष रमेश शर्मा कहते हैं कि हालात चाहे कैसे भी रहे हो लेकिन रामलीला मंचन से कभी सदस्यों और कलाकारों ने मूंह नहीं मोड़ा। उन्होंने रामलीला बंद होने का सबसे बड़ा कारण एक यह भी रहा कि दशहरा मैदान पर रेलवे क्वाटर बन रहे हैं। इसके लिए रेल प्रबंधक को कहा भी था कि दशहरा मैदान के अलावा भी रेलवे की बहुत बड़ी जगह पड़ी वहां क्वाटर बना ले लेकिन रेलवे ने इसी मैदान पर क्वाटर बनाने शुरू कर दिए हैं जिससे यहां अवसाद का वातावरण बन गया और रामलीला स्थगित करनी पड़ी। शर्मा ने कहा कि संस्था में ज्यादातर सरकारी सेवारत लोग है जिनकी अपनी अपनी स्थिति है। युवा कलाकारों में रामलीला मंचन के प्रति रूची भी रही लेकिन नेतृत्व का भी आभाव रहा। शर्मा ने आगे कहा कि इस बार पता नहीं परमात्मा की क्या इच्छा थी लेकिन रामलीला का मंचन शुरू रहे इसका अगली बार प्रयास रहेगा।