Churu यहां रोहिड़ा के फूल धूल की आभा को रंगीन बना देते हैं
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चूरू न्यूज़ डेस्क, चूरू कही बालू के धोरे, कही पठार तो कही पर अरावली की पर्वतमाला। यहां की प्रकृति की रंगीन छटा भी पर्यटकों को बेदह आकर्षित करती है। इन सबके बीच मरूस्थल में एक ऐसा पेड़ है रोहिड़ा जिसके फूलों की आभा यहां धोरों में धूल की आभा को रंगीन बना रहा है। मरुधरा के इस मुख्य पेड़ पर चैत्र मास, राजस्थान दिवस और नव संवत्सर के आते ही फूल खिल जाते हैं जो अलग ही छटा बिखेरते हैं। वर्तमान में स्वर्णमयी बालू धरती के खेतों में जहां तहां दिखाई देनेवाला रोहिड़ा कसुमल रंगी फूलों से आच्छादित नजर आ रहा है।
मरुस्थला का गुलदस्ता
मरुस्थला के गुलदस्ते के माफिक दिखाई दे रहा रोहिड़ा के फूल और हवा के झौंकों से स्वर्णमयी बालू पर गिरते फूल यहां की धूल को भी आच्छादित कर रहा हैं। रोहिड़ा के पेड़ों से जब इसके लगे पुष्प वर्षा करते हैं तो मानों वे वसंती हवाओं सुगंधित कर देता हैं। हालांकि रोहिड़ा के फूलों में सुगंध नहीं होती, लेकिन माटी की सोंधी महक के बीच यह रिच पेड़ मरुमाटी को गर्व की अनुभूति करवाता हैं।
सूखी धरती का गहना
थळी अंचल की सूखी धरती का गहना है रोहिड़ा और उसके फूल। जो जिले के तारानगर, सादुलपुर, रतनगढ़, सरदारशहर तथा चूरू की धरती के किसी शृंगार से कम नहीं हैं। किसी जमाने में तो यह क्षेत्र रोहिड़ा का हब रहा है। कम पानी में भी यह हराभरा रहता है तो यह एक मजबूत पेड़ है इसकी तासीर शीतलता प्रदान करता हैं।
राजस्थान राज्य का पुष्प है यह
राजस्थान में रोहिड़ा बीकानेर, चूरू, सीकर, नागौर, जालौर, पानी, जैसलमेर आदि क्षेत्रों में अच्छी संख्या में है तो यह धोरों की धरती का राजा है। इसका पुष्प राजस्थान का राज्य पुष्प माना जाता है। जब इसके फूल खिलते हैं तो रंग लाल होता है और कुछ दिनों बाद यह केशरिया रंग में बदल जाता है। जिसके कसुमल रंग पर कई गीत भी गाए जाते हैं। इसे टीकोवेला अंडुलिका के वैज्ञानिक नाम से पुकारा जाता है।
आयुर्वेदिक दवा है यह
रोहिड़ा की लकड़ी की बेहद उपयोगी मानी जाती है। इसका इमारती लकड़ी और फर्नीचर बनाने में ज्यादा उपयोग किया जाता है। जबकि यह आयुर्वेदिक औषधि भी हैं। कहते हैं कि इसकी शाखा को पानी के गिलास में रात को रखकर सुबह पी ले तो शुगर और रक्तचाप रोगी के लिए लाभप्रद है। फोड़े-फुंसियों पर इसकी छाल को घिसकर लगाने से रोगी ठीक हो जाता हैं।