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राजस्थान की गंगा कहलाने वाली इस नदी में बह रहा जहर, अगर भूल से भी पानी में लागा ली डुबकी तो जा सकती है जान

 
राजस्थान की गंगा कहलाने वाली इस नदी में बह रहा जहर, अगर भूल से भी पानी में लागा ली डुबकी तो जा सकती है जान

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले की गंभीरी नदी, जिसे कभी स्थानीय लोग "चित्तौड़ की गंगा" कहते थे, आज प्रदूषण और उपेक्षा के कारण गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। नदी का पानी हरा हो चुका है, उसमें जलकुंभी और कचरे के ढेर तैर रहे हैं और मरी हुई मछलियों की वजह से इतनी बदबू आ रही है कि इसके किनारों पर खड़ा होना भी मुश्किल हो गया है। यह नदी न केवल चित्तौड़गढ़ की शान थी बल्कि जयपुर की जीवन रेखा माने जाने वाले बीसलपुर बांध के जलग्रहण क्षेत्र का भी अहम हिस्सा है। लेकिन अब इसका जहरीला पानी बांध तक पहुंच रहा है, जो गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है। फिर भी जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिससे स्थानीय लोग और पर्यटक निराश हैं।

गंभीरी नदी की बदहाली का कारण

कभी गंभीरी नदी का साफ पानी चित्तौड़गढ़ के लोगों की प्यास बुझाता था। चित्तौड़गढ़ के ऐतिहासिक किले को देखने आने वाले पर्यटक इस नदी के किनारे रुककर इसकी खूबसूरती का लुत्फ उठाते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में नदी की हालत लगातार खराब होती गई है। नदी के किनारों पर कचरे का ढेर जमा हो गया है, जिसमें प्लास्टिक, घरेलू कचरा और औद्योगिक कचरा शामिल है। मरी हुई मछलियों के कारण नदी का पानी जहरीला हो गया है और दुर्गंध के कारण इसके घाटों पर खड़ा होना भी नामुमकिन हो गया है। हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुई पोस्ट में इस नदी की दुर्दशा को उजागर किया गया है। एक पोस्ट में कहा गया है कि पर्यावरण दिवस (5 जून 2025) के मौके पर भी मेले के आयोजकों ने नदी में प्लास्टिक कचरा फेंककर गंदगी फैलाई। यह घटना नदी की सफाई के प्रति लापरवाही को दर्शाती है।

बीसलपुर बांध को खतरा

गम्भीरी नदी का पानी बीसलपुर बांध के लिए महत्वपूर्ण है, जो जयपुर और आसपास के इलाकों के लिए पेयजल आपूर्ति का मुख्य स्रोत है। लेकिन नदी का प्रदूषित पानी अब बांध के जलग्रहण क्षेत्र में पहुंच रहा है, जिससे पेयजल की गुणवत्ता को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। जलकुंभी और कचरे ने नदी के प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया है, जिससे पानी का ठहराव बढ़ रहा है और बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक तत्व फैल रहे हैं। यह स्थिति न केवल स्थानीय पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि लाखों लोगों के स्वास्थ्य को भी खतरे में डाल रही है।

अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी
गम्भीरी नदी की दुर्दशा के बावजूद स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। नदी तट पर बने घाट, जो कभी पूजा और सामाजिक आयोजनों का केंद्र थे, अब कचरे और दुर्गंध का अड्डा बन गए हैं। स्थानीय लोगों की शिकायत है कि नगर पालिका और जिला प्रशासन समस्या की अनदेखी कर रहा है। कुछ सामाजिक संगठनों ने सफाई अभियान चलाए हैं, जैसे चित्तौड़गढ़ विधायक और सामाजिक संगठनों द्वारा 8 जुलाई 2024 को शुरू किया गया अभियान, लेकिन ये प्रयास छिटपुट हैं और स्थायी समाधान का अभाव साफ दिखाई देता है।