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राजस्थान के इस जिले पूरे 13 दिन 'रंग तेरस' तक खेली जाती है होली, 457 साल पुराना है इतिहास

 
राजस्थान के इस जिले पूरे 13 दिन 'रंग तेरस' तक खेली जाती है होली, 457 साल पुराना है इतिहास 

चित्तौडगढ़ न्यूज़ डेस्क - राजस्थान का ऐतिहासिक शहर चित्तौड़गढ़ शहर वीरता और बलिदान की कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां होली के 13 दिन बाद रंग तेरस पर होली खेलने की परंपरा निभाई जाती है, जिसका संबंध 457 साल पहले हुए चित्तौड़ के तीसरे साके से है। 25 फरवरी 1568 को मुगल शासक अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़ पर भीषण आक्रमण किया था, जिसके बाद राजपूतों ने युद्ध के मैदान में वीरता का परिचय देते हुए खून की होली खेली थी। इस दिन की याद में आज भी चित्तौड़गढ़ के लोग रंग तेरस पर होली मनाते हैं और इस दिन शहर में छुट्टी भी रहती है।

कई साल पहले हुआ था साका
इतिहासकारों के अनुसार तीसरा जौहर और साका चैत्र कृष्ण एकादशी विक्रम संवत 1624 यानी 23 फरवरी 1568 की रात को हुआ था। अकबर ने किले में प्रवेश के लिए दक्षिणी क्षेत्र में एक टीला बनवाने की योजना बनाई थी, जो बाद में "मोहर मंगरी" के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जब किले की रक्षा करना असंभव हो गया तो रानी और हजारों महिलाओं ने जौहर करके अपनी जान दे दी। अगली सुबह केसरिया वस्त्र पहने राजपूत योद्धाओं ने अंतिम युद्ध के लिए किले के दरवाजे खोल दिए।

जयमल और कल्लाजी की वीरता की कहानी
जयमल राठौड़ और कल्लाजी राठौड़ ने इस महान युद्ध में अतुलनीय वीरता दिखाई। युद्ध में घायल होने के बावजूद जयमल कल्लाजी के कंधों पर बैठकर तलवार चलाते रहे। यह दृश्य इतना अद्भुत था कि इसे देखने वाला अकबर भी दंग रह गया। राजपूत योद्धाओं ने अपनी आखिरी सांस तक मुगलों से युद्ध किया, लेकिन अंततः वीरगति को प्राप्त हुए। जयमल और कल्लाजी के बलिदान की याद में चित्तौड़गढ़ में आज भी उनके स्मारक बने हुए हैं।

कई लोग मारे गए
जौहर और युद्ध के बाद भी चित्तौड़ की जनता ने हार नहीं मानी और अंतिम क्षण तक मुगल सेना से भिड़ती रही। इस संघर्ष से अकबर इतना क्रोधित हुआ कि उसने चित्तौड़गढ़ में भीषण नरसंहार का आदेश दे दिया। इस नरसंहार में लगभग 10,000 सैनिक और 30,000 निर्दोष नागरिक मारे गए थे। इस हृदय विदारक घटना ने चित्तौड़ की धरती को रक्त से भिगो दिया, और इसलिए इसे "खून की होली" कहा जाता है।