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Chittorgarh के इतिहास में बेहद खास है आठम, हुए कई शुभ काम

 
Chittorgarh के इतिहास में बेहद खास है आठम, हुए कई शुभ काम

चित्तौरगढ़ न्यूज़ डेस्क, चित्तौरगढ़   वैशाख शुक्ल अष्टमी चित्तौडग़ढ़ के इतिहास में विशिष्ट तिथि है। रियासतकाल में ज्यादातर शुभ कार्य इसी तिथि को हुए थे। इसीलिए, चित्तौडग़ढ़ को अष्ट सिद्धि का केन्द्र भी कहा जाता है। दुर्ग पर मंदिर, मूर्ति या सरोवर प्राण प्रतिष्ठा सहित कई नव निर्माण अलग-अलग कालखंड में इसी दिन शुरू किए गए थे। सबसे अधिक दृढ़ मान्यता सूर्य मंदिर की है। यहां इसी दिन कालिका माता की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा हुई थी। वैशाख शुक्ल तृतीया से अष्टमी तक उत्सव हुआ। इसीलिए इसे चित्तौड़ी आठम कहते हैं। आठम मूलत: दुर्गा की तिथि है। दुर्ग नाम दुर्गा और दुर्गम से ही निकला है। यानी जो कठिनाइयों से प्राप्त हो। विजय स्तंभ के शिखर पर आठ गज मूर्तियों के साथ लक्ष्मी प्रतिमा स्थापित हैं। हालांकि, चित्तौड़ की स्थापना कब हुई। इस बारे में कोई सटीक जानकारी या प्रामाणिक तथ्य किसी के पास नहीं हैं। संभवतया चित्रांगद मौर्य के कारण इसका प्राचीन नाम चित्रकूट था। चित्तौड़ दुर्ग के अतीत में कई नई शुरुआतें वैशाख शुक्ल आठम पर ही हुई थीं।

मुद्रा में भी अव्वल रहा हमारा चित्तौड़

महाराणा स्वरूपसिंह और सज्जनसिंह से लेकर देश की आजादी तक यहां ‘दोस्ती लंदन’ के सिक्के चलते थे। जो चांदी के और 17 आना यानी 100 प्रतिशत से अधिक मानक वाले थे। देशी रियासतों में चित्तौड़ दुर्ग ही ऐसा था, जिसके चित्र को सिक्के पर ढाला गया। ये सिक्के कोलकाता में ढले और सभी रियासतों में बराबर मूल्य पर चले। चित्तौड़ में आज भी दो जगह टकसाल होने का पता चलता है। पटवारी मोहल्ला और हजारेश्वर महादेव मंदिर के पास। सदियों पुराने नगरी के पंचमार्क और चित्तौड़ के महाराणा मोकल, कुंभा, रायमल, सांगा और बनवीर आदि के नाम वाले सिक्के आज भी कइयों के पास मौजूद है।

यह है चित्तौड़ी आठम का इतिहास

राणा हमीर ने 1326 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया था। हमीर ने दुर्ग पर कालिका माता मंदिर की स्थापना की जो कि पूर्व में सूर्य मंदिर हुआ करता था। मान्यता है कि दुर्ग स्थित बायण माता मंदिर, चतरंग मोरी तालाब की स्थापना भी वैशाख शुक्ल आठम को ही की गई थी। मेदपाट से चित्रकूट और कालान्तर में चित्तौड़ बनने तक के इतिहास में इस वैशाख शुक्ल पक्ष की आठम का विशेष महत्व रहा है। माना जाता है कि चित्तौड़ के स्थापना दिवस चित्तौड़ी आठम पर पहले दुर्ग की तलहटी स्थित मिठाई बाजार,जूना बाजार से लेकर दुर्ग के मुय मार्ग पर मेला लगता था। एकीकृत राजस्थान के कुछ साल बाद ये मेला बंद हो गया। चित्तौड़ी आठम मनाने का सिलसिला शुरू हुआ जो किन्हीं कारणों से वर्ष 1958 में बंद हो गया था। सातवीं से लेकर 14 वीं सदी तक इस तिथि को दुर्ग पर चतरंग मोरी, सूर्य मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, मां कालिका की प्रतिमा स्थापना, हमीर की चित्तौड़ विजय जैसे कार्य इसी दिन हुए थे। जय चित्तौड़ चित्तौड़ी आठम महोत्सव समिति की ओर से वर्ष 2008 से ये फिर से मनाया जा रहा है। समिति की ओर से इस मौके पर चित्तौड़ की गौरवमय विरासत की याद दिलाने वाले विभिन्न कार्यक्रम किए जाते हैं।