वीरो की भूमि Chittorgarh में स्थित श्रृंगार चवरी मंदिर के बारे में
चित्तौरगढ़ न्यूज़ डेस्क, चित्तौड़गढ़ दुर्ग में महाराणा कुम्भा के महल से पूर्व एक दीवार या परकोटा बना हुवा है जिसे नवकोठा या बनवीर की दीवार भी कहते है, की तरफ , थोडा अन्दर स्थित है श्रींगार चौरी मंदिर | मूर्ति शिल्प की दृष्टि से श्रृंगार चौरी चित्तौड़ दुर्ग का सबसे सुन्दर मंदिर है इसकी दीवारों पर उकेरी गई मुर्तिया आपको ठिठक कर खड़ा रहने को मजबूर कर देती है |
गौरीशंकर हीराचंद ओझा साहब के अनुसार " महलो के निकट उत्तर की तरफ सुन्दर खुदाई के काम वाला एक छोटा सा मंदिर है जिसको सिंगारचौरी (श्रृंगारचौरी) कहते है| इसके मध्य एक छोटी सी वेदी पर चार स्तम्भ वाली छत्री बनी हुई है | लोग कहते है की यहाँ पर राणा कुम्भा की राजकुमारी का विवाह हुवा था ,जिसकी यह चौरी है | वास्तव में इतिहास के अन्धकार में इस कल्पना की सृष्टि हुई है , क्योकि इसके एक स्तम्भ पर खुदे हुवे वि.स.१५०५ (इसवी सन 1448) के शिलालेख से ज्ञात होता है की राणा कुम्भा के भंडारी (कोषाध्यक्ष) वेलाक ने जो शाह केलहा का पुत्र था , शान्ति नाथ का ये जैन मंदिर बनवाया और उसकी प्रतिष्ठा खरतर गच्छ के आचार्य जिनसेनसूरी ने की थी | जिस स्थान को लोग चौरी बताते है वह वास्तव में उक्त मूर्ति की वेदी है और संभव है की मूर्ति चौमुख ( जिसके चारो और एक मूर्ति होती है )हो |"
ओझा साब के कथन के अनुसार ये स्पष्ट है की ये विवाह हेतु निर्मित वेदी न होकर एक जैन मंदिर है| मंदिर के दो प्रवेश द्वार है जिन पर मंडप बने हुवे है जिनके आगे दो दो कलात्मक स्तम्भ है| मंदिर के शिखर का पुन निर्माण किया गया प्रतीत होता है| मंदिर के बाहर उकेरी गई मूर्तियों को देख कर आपको नागदा के मंदिर अथवा देलवाडा के मंदिरों की याद आ सकती है | हालंकि ये मंदिर छोटा सा है किन्तु कला की दृष्टि से अद्भुत है किन्तु इसके प्रचार की कमी और इसकी दुर्ग में इसकी स्थिति इसे आने वाले पर्यटकों की दृष्टि से ओझल रखती है | पर अब ये मंदिर आपसे अपेक्षा करता है की आप इस एतिहासिक धरोहर को देखे और दिखाकर गौरवान्वित महसूस करे |
